नई दिल्ली | राजधानी दिल्ली की चुनावी सियासत में महिलाओं की भूमिका लगातार मजबूत होती जा रही है। बीते 22 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो हर विधानसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा है। दिलचस्प बात यह है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी में तेजी से इजाफा हुआ है। इस बार भी महिला मतदाता पूरी मजबूती के साथ अपने अधिकार का प्रयोग कर रही हैं।
22 साल में छह बार बढ़ा महिलाओं का मतदान प्रतिशत
दिल्ली में 1998 से 2020 तक छह बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। हर बार महिलाओं का मतदान प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में अधिक रहा है। वर्ष 1998 में जहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत 46.41% था, वहीं 2015 में यह बढ़कर 66.49% तक पहुंच गया। इसी अवधि में पुरुष मतदाताओं की भागीदारी 50.89% से बढ़कर 67.63% हुई, यानी महिलाओं के मतदान में 20.08% और पुरुषों में 16.74% की वृद्धि हुई। हालांकि, 2020 के चुनाव में पुरुषों का मतदान प्रतिशत 62.62% और महिलाओं का 62.55% दर्ज किया गया, जो लगभग समान रहा।
महिला प्रत्याशियों की संख्या में भी बदलाव
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2008 के विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक 81 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। हालांकि, इसके बाद महिला प्रत्याशियों की संख्या में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। 1993 में 59, 1998 में 57, 2003 में 78, 2013 में 71, 2015 में 66 और 2020 में 79 महिलाओं ने चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमाई।
इस बार यानी 2025 के विधानसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़कर 96 हो गई है, जो अब तक के सभी चुनावों में सबसे अधिक है। इसके बावजूद 70 में से 21 विधानसभा क्षेत्रों में एक भी महिला प्रत्याशी नहीं है।
महिला वोटिंग ट्रेंड में तेजी
1993 में जब दिल्ली में मदनलाल खुराना के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, तब मतदान प्रतिशत 61.75% था। पुरुषों का मतदान 64.56% और महिलाओं का 58.27% रहा। लेकिन 1998 में मतदान 12.76% गिरकर 48.99% रह गया। इसके बाद से दिल्ली में हर चुनाव में मतदान दर में बढ़ोतरी देखी गई।
दिल्ली विधानसभा चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत
इस बार के चुनाव में सबसे ज्यादा महिला प्रत्याशी
2025 के विधानसभा चुनावों में 96 महिला उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रही हैं। वहीं, 699 कुल उम्मीदवार मैदान में हैं, जो 2013 के बाद सबसे ज्यादा हैं।
दिल्ली में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी यह साफ संकेत देती है कि वे अब न केवल अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रही हैं, बल्कि चुनाव लड़कर सरकार में भी अपनी हिस्सेदारी मजबूत कर रही हैं। यह महिलाओं के बढ़ते सशक्तिकरण और राजनीतिक जागरूकता का प्रमाण है।