कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉसिबिलिटी (CSR)

मिथिलेश कुमार पाण्डेय

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समृद्ध, स्वस्थ, सकारात्मक, सौहाद्रपूर्ण और सफल जिन्दगी जीना चाहता है l उपरोक्त को हाशिल करने के लिए यह जरुरी है कि व्यक्ति की मौलिक आवश्यकताएं पूरी हों l स्वस्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, पेय जल, आदि की गुणवत्ता और सुलभता मानव जीवन के रहन सहन पर काफी प्रभाव डालते हैं और इसको प्राप्त करने के लिए समृद्ध संसाधन की जरूरत होती है l सामान्यतः अपने नागरिकों को उत्तम साधन उपलब्ध कराना सरकार का काम माना जाता है l दुनिया के विभिन्न देशों की आर्थिक स्थिति में काफी असमानता है l गरीब देशों के लिए यह अत्यंत कठिन हो जाता है कि वे अपने नागरिकों को आवश्यक सुविधाएँ प्रदान कर सके l

सरकार की आमदनी का मुख्य श्रोत कर होता है परन्तु कर लगाने की एक सीमा होती है और परंपरागत रूप से गरीब देशों में कर संग्रह भी कम ही होता है l इन परिस्थितियों में देश यह अपेक्षा करता है कि सक्षम संस्थाएं अपने लाभ का कुछ हिस्सा समाज की बेहतरी के लिए खर्च करें क्योंकि बेहतर समाज के बिना अच्छी जिन्दगी संभव नहीं हो सकता है l कॉर्पोरेट व्यापारिक घराने अपना सामाजिक दायित्व पूरा करने के लिए अपने लाभ के हिस्से को मनुष्य के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाओं को जुटाने के लिए खर्च करते हैं जिसे कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (CSR) के रूप में जाना जाता है I अतः हम कह सकते हैं कि CSR एक व्यापारिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण है जिसमें व्यापरिक घराने/ कंपनियां अपने व्यवसाय का संचालन केवल अपने लाभ के लिए ही नहीं बल्कि समाज के कल्याण में योगदान के लिए भी करती हैं | CSR की परिकल्पना व्यापार को अपनी आर्थिक प्रगति के साथ साथ सामाजिक और पर्यावरणीय दायित्यों के प्रति उत्तरदायी बनती है l

CSR की परिकल्पना के मूलभूत घटक :

आर्थिक जिम्मेदारी : व्यापार का मुख्य उद्देश्य ही लाभ कमाना है , परन्तु स्वयं के लिए लाभ कमाने के साथ साथ समाज के अन्य लोगों के आर्थिक हितों का भी ध्यान रखना जरुरी है I

कानूनी जिम्मेदारी : व्यापार के दौरान कंपनियों को स्थानीय, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करना आवश्यक है l
नैतिक जिम्मेदारी : व्यापार को नैतिकता के साथ संचालित करना आवश्यक है जिसमे समाज का अनावश्यक शोषण न हो जिसके लिए व्यापार में पारदर्शिता और निष्पक्षता होना चाहिए l

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पर्यावरणीय जिम्मेदारी : प्रदुषण मुक्त पर्यावरण हर मनुष्य के लिए जरुरी है l कंपनियों को अपने व्यापार के दौरान पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की दिशा में सकारात्मक और परिणाम मूलक प्रयास करना चाहिए l

परोपकारी जिम्मेदारी : कंपनियों को शिक्षा, स्वास्थय, गरीबों की सहायता तथा अन्य सामाजिक कल्याणकारी कार्यों में योगदान करना चाहिए l

दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारों ने यह चाहा है कि व्यापारिक घराने बेहतर समाज की रचना में अपना सक्रिय सहयोग सुनिश्चित करे l इसके लिए कुछ देशों में कानून भी बनाये गए हैं जबकि कुछ देशों में CSR में सहयोग करने वाली संस्थाओं को कर में छूट तथा अन्य तरीके से लाभ पहुचाया जाता है l दुनिया के कुछ मुख्य देशों में CSR की कानूनी स्थिति निम्नवत है :

भारत : भारत दुनिया का पहला देश है जिसने CSR को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया है l कंपनी अधिनियम की धारा 135 के अनुसार जिन कंपनियों का टर्नओवर 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा, नेट वर्थ 500 करोड़ रुपये से अधिक, या सुद्ध लाभ 5 करोड़ रुपये से ज्यादा है तो उन्हें अपने पिछले 3 वर्षों के औसत शुद्ध लाभ का कम से कम 2% CSR गतिविधियों पर खर्च करना अनिवार्य है l CSR गतिविधियों की जानकारी निदेशक मंडल रिपोर्ट में देना जरुरी है l
है l
अमेरिका (USA) : अमेरिका में CSR अनिवार्य नहीं है। फिर भी कंपनियों को अपने सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाओं के बारे में पारदर्शिता बनाये रखनी होती है l बड़ी कंपनियां जैसे Microsoft, Google, Apple आदि अपनी CSR नीतियों के तहत बड़े स्तर पर सामाजिक कार्य करती हैं l

यूनाइटेड किंगडम (UK) : UK में भी CSR कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है लेकिन कंपनियों को सामाजिक, नैतिक, पर्यावरणीय दायित्यों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है l 2006 का कंपनी एक्ट सार्वजनिक और निजी कंपनियों को इसके लिए प्रेरित करता है l

जर्मनी : जर्मनी में सरकार और यूरोपीय संघ CSR को व्यापार रणनीति में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करते है l बड़ी कंपनियां सतत विकास और सामाजिक उत्तरदायित्व रिपोर्ट पेश करती है l हालाँकि CSR कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं हैं l
फ्रांस : फ्रांस ने 2017 में Corporate Duty of vigilance Law लागू किया है जिसके अंतर्गत फ़्रांसीसी कंपनियों को मानवाधिकार, श्रमिक अधिकार और पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित नीतियों का पालन करना अनिवार्य है l

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जापान : जापान सरकार Corporate Governance Code और Environmental Reporting Guidelines के तहत CSR को बढ़ावा देती है l

कनाडा : कनाडा में भी CSR क़ानूनी वाध्यता नहीं है, फिर भी Extractive Sector Transparency Measure Act (ESTMA) के अंतर्गत कंपनियों को पारदर्शिता सुनिश्चित करना जरुरी होता है l

ऑस्ट्रेलिया : यहाँ भी CSR क़ानूनी वाध्यता नहीं है लेकिन Australian Securities Exchange Corporate Governance Principles के अधीन कंपनियों को सामाजिक और पर्यावरणीय दायित्यों के पालन करने की सिफारिश करते हैं l

CSR अब एक वैश्विक अवधारणा है l भारत और फ्रांस को छोड़कर दुनिया के अन्य देशों में इसकी कानूनी वाध्यता नहीं है। फिर भी विकशित देशों की कंपनियां स्वेच्छा से इस क्षेत्र में काफी सराहनीय कार्य करती है l कंपनियां CSR को एक रणनीतिक व्यापार निर्णय के रूप में अपना रही हैं जिससे वे समाज और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ साथ ब्रांड मूल्य और ग्राहकों की निष्ठां भी बढ़ा रही हैं l भारत में सार्वजानिक और निजी कंपनियां क़ानूनी वाध्यता से ज्यादा भी CSR में खर्च कर रही है l उदाहरण के लिए बताना चाहता हूँ कि सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया पिछले 5 वर्षों से लगातार केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सबसे ज्यादा खर्च करने वाली कंपनी है l पिछले वित्त वर्ष में कंपनी ने 572 करोड़ रुपये CSR में खर्च किया है जबकि चालू वित्तवर्ष के 10 महीनो में अबतक 497 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है l

यह भी सच है कि कुछ मामलों में CSR फण्ड के दुरूपयोग की भी जानकारी मिलती है l कहीं कहीं कुछ अराजक तत्त्व NGO के माध्यम से CSR फण्ड का अनुचित उपयोग करने से बाज़ नहीं आते हैं और कागज़ी खानापूर्ति करके CSR फण्ड के एक बड़े हिस्से को इधर उधर करके व्यक्तिगत लाभ उठाते हैं l सरकार के तमाम प्रयासों के वावजूद CSR फण्ड पूर्ण रूप से अपने निर्धारित उद्देश्यों में निवेशित होने के वजाय अन्य कार्यों पर खर्च हो जाता है l बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के कारण पर्यावरण असंतुलन की स्थिति बन गयी है l इसके साथ ही अमीर और गरीब के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है l इनपर ध्यान देने की बहुत जरुरत है और CSR फण्ड के सही उपयोग से इस विषमता को कुछ हद तक दूर करने में सफलता पाई जा सकती है l
(लेखक पूर्व सहायक महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा एवं आर्थिक विश्लेषक हैं )

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