मिथिलेश कुमार पाण्डेय
ब्रिटेन के व्यापार और वाणिज्य सचिव जोनाथन रेय्नोल्ड दो दिवसीय भारत यात्रा और केंद्रीय मंत्री श्री पियूष गोएल से वार्ता पूरी करके दोनों देशों के बीच चल रहे मुक्त व्यापार समझौता वार्ता के प्रति काफी उत्साहित और आशान्वित लगे। यूँ तो ये वार्ता पहले से चल रही थी l ब्रिटेन के पूर्व पधान मंत्री ऋषि सुनक के कार्यकाल में काफी काम हुआ था l समझौते के 20 विंदुओं मे से 14 पर सहमति बन चुकी थी l इस दौरान ब्रिटेन के आम चुनाव में सत्ता परिवर्तन हुआ और फलस्वरूप लेबर पार्टी कीर स्तार्मेर के नेतृत्व में सत्ता में आयी l अब उस वार्ता को पुनः शुरू किया गया। यहाँ पर देखना होगा कि मौजूदा सरकार अपने पूर्व वर्ती सरकार द्वारा दी गयी सहमति को यथावत रखती है या उन विन्दुओं पर पूर्णतः नयी चर्चा करती है l
जोनाथन रेय्नोल्ड ने एक टीवी चैनल से कहा कि भारत एक काफी सशक्त और् अपार संभावनाओं वाला देश है और ब्रिटेन FTA के शीघ्र सम्पन्न होने के प्रति काफी उत्साहित है l वर्तमान में दोनों देशों के बीच द्विपक्ष्यीय व्यापार लगभग $ 2000 करोड़ का है जोकि एक अनुमान के अनुसार अगले 10 वर्ष 300% बढ़ सकता है l भारतीय केंद्रीय मंत्री पियूष गोएल भी मुक्त व्यापार समझौते के बाद द्विपक्षीय व्यापार में तेजी से बढ़ने के प्रति काफी उत्साहित हैं l जोनाथन रेय्नोल्ड ने बताया कि मुक्त व्यापार समझौता, द्विपक्षीय निवेश संधि तथा डबल कॉन्ट्रिब्यूशन कन्वेंशन तीनो पहलुओं पर साथ साथ चर्चा हो रही है जो कि काफी संतोषजनक है और शीघ्र ही सकारात्मक परिणाम सामने आएगा l
आईये हमलोग मुक्त व्यापार समझौता, द्विपक्षीय निवेश संधि तथा डबल कॉन्ट्रिब्यूशन कन्वेंशन के बारे में संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं l
मुक्त व्यापार समझौता : यह दो या अधिक देशों के बीच होने वाला एक व्यापारिक समझौता है, जिसका उद्देश्य आयात और निर्यात पर लगनेवाले शुल्कों, कोटा और व्यापारिक प्रतिबंधों को कम या समाप्त करना होता है l दूसरे शब्दों में कहें तो देशो के बीच व्यापार संवर्धन के लिए व्यापार को सरल और पारदर्शी बनाना होता है जिसके फलस्वरूप आर्थिक विकास को गति मिल सके l इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार संवर्धन, आर्थिक विकास, निवेश को बढ़ाना, उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाना तथा उद्द्योग में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है l दुनिया के विभिन्न देशो के बीच कई मुक्त व्यापार समझौते हैं जिसमें से USMCA ( यूनाइटेड स्टेट्स – मेक्सिको – कनाडा अग्रीमेंट ), यूरोपियन संघ का मुक्त व्यापार, AFTA ( आसिआन फ्री ट्रेड अग्रीमेंट ) मुख्य हैं l
भारत ने भी कई देशों के साथ FTA किये हैl जैसे भारत आसियान मुक्त व्यापार समझौता , भारत दक्षिण कोरिया ( CEPA Comprehensive इकनोमिक पार्टनरशिप अग्रीमेन्ट ), भारत जापान CEPA , भारत मौरीसस CECPA, भारत अरब देशो का FTA l इससे आर्थिक विकास को गति मिलती है, नए बाज़ार मिलते हैं, निर्यात बढ़ सकता है। नवाचार को बढ़ावा मिलता है और उपभोक्तायों को नए और अच्छे सामान कम दाम पर सुलभ हो जाते हैं l
हालाँकि इसके चुनौतियाँ भी है जैसे स्थानीय उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव, रोजगार के अवसर घट सकते है, कृषि क्षेत्र दुष्प्रभावित हो सकता है। देश के आयात पर निर्भरता बढ़ सकती है l लाभ हानि को अपने साथ लेकर चलने वाला यह व्यापारिक विचार आज के ज़माने में अन्तेर्राष्ट्रीय कारोबार के लिए आवश्यक है l
द्वीपक्षीय निवेश संधि ( Bilateral Investment Treaty – BIT)
विदेशी निवेश को बढ़ावा देने और और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दो देशों के बीच किए गये औपचारिक समझौते को द्वीपक्षीय निवेश संधि कहते हैं l इस संधि के तहत, एक देश दूसरे देश में किये गए निवेश की सुरक्षा, निष्पक्ष व्यव्हार और विवाद समाधान जैसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं l भारत ने विभिन्न देशों के साथ BIT समझौते हैं जिनमे से भारत – जापान BIT, भारत – UAE BIT, भारत- सिंगापुर BIT प्रमुख हैं l इनके अतिरिक्त भारत – यूरोपियन संघ BIT चर्चा में है, भारत-अमेरिका के बीच BIT संभावित है और भारत – UK के बीच भी BIT पर वार्ता चल रही है l BIT से विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलता है, आर्थिक विकास के साथ रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, वैश्विक व्यापार में सुधार होता है, संपत्ति और बौद्धिक सम्पदा का संरक्षण होता है l कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिसमे राष्ट्रीय हित, क़ानूनी विवाद, नीतियों में स्थिरता, पर्यावरण, श्रमिक अधिकार से जुड़े मुद्दे सामने आते हैं जिन्हें सँभालने में श्रम शक्ति और अर्थ शक्ति खर्च करना पड़ता है l BIT किसी भी देश की आर्थिक विकास में सहायक होती है l यह न केवल विदेशि निवेश को आकर्षित करती है बल्कि निवेशकों को सुरक्षा और क़ानूनी अधिकार भी प्रदान करती है l हालाँकि इसको लागू करने में सरकार को काफी संतुलन स्थापित करना होता है l
डबल कॉन्ट्रिब्यूशन कन्वेंशन (DCC)
यह कोई अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त आर्थिक या क़ानूनी संधि नहीं है l इसे प्रवाशियों के कराधान, सामाजिक सुरक्षा और पेंशन प्रणाली में दोहरा योगदान आदि के मामले में स्पष्टता प्रदान करना होता है l इसके अंतर्गत Totalization Agreement, Double Taxation Avoidance Agreement (DTAA) प्रमुख हैं l Totalization Agreement में यह तय किया जाता है कि एक व्यक्ति को दो अलग अलग देशों में सामाजिक सुरक्षा कर देने की जरुरत नहीं होगी जबकि DTAA यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति या कंपनी को दो अलग अलग देशों में एक ही आय पर दो बार टैक्स न देना पड़े l यह व्यवस्था अपने देश अनिवाशी नागरिकों और विदेशी कॉर्पोरेट निकाय, जो कि परोक्ष रूप से देश की सेवा और समृद्धि में अपना अमूल्य योगदान प्रदान कर रहे हैं, को कर सम्बन्धी अनिश्चयता को छोड़कर अपने मूल कार्य पर केन्द्रित रहने के लिए किया जाता है l