Special Festival Fagua: ” रंग डालो फेको गुलाल बोलो सररर….”

लोक संस्कृति ने पैदल यात्रा की है। नदी निर्झर पहाड़ों, जंगलों, गांवों में वह पांव पांव चलती रही। उसने ऋतुओं के साथ अपने अनेक रूप भी बदले हैं। कभी शरद की छिंटकती ज्योत्सना में वह निनाद भरती रही तो कभी बसंत की मादकताओं में उसने फाग (Fagua) और ददरिया रंग छिंटके। लोक की मादक उपस्थिति का नरम स्पर्श एवं पराग प्रेरित वसंती गंध का अनुभव दे जाती है फागुन माह में होली का त्योहार।

अमित श्रीवास्तव

WhatsApp Channel Join Now
Instagram Profile Join Now
Special Festival Fagua: " रंग डालो फेको गुलाल बोलो सररर...." Special Festival Fagua: " रंग डालो फेको गुलाल बोलो सररर...."

होली (Fagua) केवल मस्ती और आनंद का ही त्योहार नहीं है वरन सामाजिक समरसता को नवीनता देने वाला त्योहार भी है। इस पर्व में वर्जनाएं टूटती हैं और मर्यादाओं की नूतन प्रतिष्ठा बनती है। रिश्ते नाते नए रूप में अभिषेकित होते हैं। माघ उतरी फागुन लागा पेड़न की झर गई पाती।

https://benarasglobaltimes.com/banaras-ki-prem-kahani-blue-lassi-ki-deewan/


प्रकृति भी अपना परिधान बदलकर धानी से पीली हो जाती है। प्रकृति के सौंदर्य का क्या कहना खेतों में लहलहाती बसंती सरसों की अल्हड़ मस्त हवा और टेसू का पीला रंग रितु की यह मादकता मन की मादकता को एक नए रंग में सराबोर करके उसे इंद्रधनुषी बना देती है और मन का मयूर नाच उठता है और कहता है- ” फागुन रूत आई है सुन राधीके सुजान। साथ खुशियों के रंग लाई है मत बन तू अनजान।

https://benarasglobaltimes.com/banaras-ki-prem-kahani-blue-lassi-ki-deewan/

आज आलम यह है कि शहरों में बाशिंदो से ज्यादा पुलिस फोर्स नजर आती है। हादसों की आशंका ने होली को बदरंग कर दिया है। लोग पुराने हिसाब चुकाते हैं। मनचले हुड़दंग मचाते हैं। यह कैसी होली (Fagua) है जिसका रंग तो लाल है पर पलाश का नहीं बल्कि खून का सुर्ख लाल रंग है।

https://benarasglobaltimes.com/banaras-ki-prem-kahani-blue-lassi-ki-deewan/

एक तरफ अंधाधुंध गोलियां चल रही है होली (Fagua) का के साथ लगता है मानव दीपावली भी मान गई है।

सारे देश का यही हाल है। एक तरफ आतंक युद्ध का प्रहार है तो दूसरी ओर बजट की मार है। लगता है यूं की बजट आम आदमी से दूर है और आदमी यूं ही जीने को मजबूर है। त्यौहार तो महज एक औपचारिकता है। सबसे पहले तो हमें सांप्रदायिकता की जो आग देश में लगी है उसे बुझाना है।

हास परिहास और हंसी ठिठोली, मौज मस्ती के इस त्योहार को बदरंग होने से बचाए और सबसे पहले होली जो दिल में जल रही है और सांप्रदायिकता का जो आतंक दानव देश को निगल रहा है उसकी होली जलाओ।

जिस तरह बैंकों में पैसा जमा करने से पैसा बढ़ता है उसी तरह प्यार करने से परस्पर सौहार्द की भावना बढ़ती है। प्यार प्लस + है, माइनस- नहीं है यह गुणा है।

6 thoughts on “Special Festival Fagua: ” रंग डालो फेको गुलाल बोलो सररर….”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *