USSR के विघटन और चीन के आर्थिक महाशक्ति के रूप में अभ्युदय के पूर्व दुनिया एकध्रुवीय हो गयी थी l अमेरिका अकेला महाशक्ति था जो विश्व व्यवस्था को प्रभावित करने में समर्थ था l अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार (Trade) सभी पर अमेरिका का प्रभाव काफी था l
मिथिलेश कुमार पाण्डेय
दुनिया के विभिन्न देशों की बदलती जन आकांक्षा और सरकारों द्वारा आर्थिक विषमता को दूर करने के सार्थक प्रयास ने विश्व व्यापार (Trade) को एक नया आयाम दिया और दुनिया Globelization (वैश्वीकरण ) की ओर तेजी से बढ़ी और विश्व व्यापार में गजब की गतिशीलता देखी गयी l Trade के मामले में दुनिया एक वैश्विक गाँव में तब्दील हो गया l विश्व के बड़े अर्थव्यवस्था वाले देशों के नेतृत्व की सोच और आर्थिक नीतियाँ समूचे विश्व पर अपना प्रभाव डालते हैं l
अमेरिका की सत्ता में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी ने दुनिया के देशों खास करके Trade के क्षेत्र में हलचल मचा रखी है l ट्रम्प प्रसाशन की “अमेरिका फर्स्ट” नीति ने अन्य देशों को अपनी अपनी व्यापार नीति पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है l डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए “Make in America”, “ Be American, Hire American”, जैसे विचार को बढ़ने के लिए प्रयासरत हैं l इस प्रयास में अमेरिका में घरेलु उत्पादन बढाने, उद्योग को मजबूत करने के उद्देश्य से आयात होने वाले वस्तुओं पर टैरिफ बढाने का निर्णय ले रहे हैं l इसके प्रतिक्रियास्वरूप सम्बंधित देश भी अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ लगा/बढ़ा रहे हैं l वर्तमान परिस्थिति ने ट्रेड वार वाली हालत पैदा कर रही है l
इतिहास गवाह है कि “Trade War” ने विश्व अर्थव्यवस्था पर काफी नकारात्मक प्रभाव डाला है l आइये हम लोग ट्रेड वार के इतिहास और इसके आर्थिक और राजनीतिक प्रभावों को संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं l

ट्रेड वार कोई नया विचार नहीं है l बल्कि प्राचीन और मध्ययुगीन काल में भी इसकी उपस्थिति देखी गयी थी l नीचे दिए गए टेबल में इसके समय, सम्बंधित देश / संगठन और इसके प्रभाव को दर्शाया गया है :
क्रम संख्या | समय / काल | सम्बंधित देश/ संगठन | प्रभाव |
1. | 480 ईशा पूर्व से 307 ईशा पूर्व तक | यूनान और कार्थेज | स्थानीय अर्थव्यवस्था, व्यापार मार्गों, कृषि और वाणिज्य पर गहरा प्रभाव डाला जिससे व्यापार (Trade) मार्ग अस्थिर हो गए और वस्तुयों की कीमते बढ़ गयी l यूनानी राज्य कमजोर हुए l कार्थेज की शक्ति बढ़ी जो बाद में रोम के साथ संघर्ष का कारण बना जिसके कारण भूमध्य सागर का राजनितिक और व्यापारिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल गया l रोम नयी शक्ति के रूप में उभरा और कार्थेज का पतन हुआ l |
2. | मध्यकालीन यूरोप में व्यापारिक तनाव | हंसा लीग (जेर्मनी, नीदरलैंड, बाल्टिक, Scandineviayee देशों के व्यापारिक नगरो का समूह) और इंग्लैंड | इंग्लैंड ने wool (उन) के निर्यात पर भरी कर लगाया जिससे यूरोपीय व्यापार काफी प्रभावित हुआ l |
3. | 16वीं – १९वी शताब्दी | ब्रिटेन और स्पेन / फ्रांस के बीच व्यापार संघर्ष | समुद्री Trade और उपनिवेशों पर नियंत्रण के लिए यूरोपीय शक्तियों में संघर्ष हुआ / ब्रिटेन, फ्रांस और स्पेन ने व्यापार मार्गों और उपनिवेशों पर नियंत्रण के लिए आर्थिक नीतियाँ बनाई l |
ब्रिटेन और अमेरिकी उपनिवेशों के बीच व्यापारिक तनाव | 18 वीं शताब्दी में ब्रिटेन ने अमेरिकी उपनिवेशों पर चाय के निर्यात पर भारी कर लगाये जिससे 1773 का बोस्टन टी पार्टी आन्दोलन हुआ जो अमेरिकी क्रांति (1775-1783) का कारण बनी | ||
ब्रिटेन – फ्रांस ट्रेड वार | नेपोलियन बोनापार्ट ने 1806 ब्रिटेन के साथ व्यापार पर प्रतिबंध लगाया जिसके बदले में ब्रिटेन ने यूरोपीय बाजारों की नाकेबंदी कर दी l ब्रिटेन और फ्रांस की अर्थव्यवस्था में मंदी आयी और यूरोपिय व्यापार में 20% से अधिक की कमी आयी l | ||
4. | 19 वीं और 20 वीं शताब्दी | ब्रिटेन अमेरिका व्यापार तनाव | 19 वीं शताब्दी में ब्रिटेन और अमेरिका के बीच व्यापारिक शुल्कों को लेकर विवाद हुआ l अमेरिका ने अपने घरेलु उद्द्योगों को बचने के लिए 1828 में टैरिफ ऑफ़ abomination लगाया जिससे व्यापारिक तनाव काफी बढ़ा l अमेरिका ने ब्रिटिश आयातों पर 38% – 50% तक शुल्क बढ़ा दिया l अमेरिका के दक्षिणी राज्यों ने इस नीति का विरोध किया जिससे गृह युद्ध का माहौल बन गया l |
अमेरिकी नागरिक युद्ध और व्यापार | उद्योग प्रधान उत्तर अमेरिका और कृषि प्रधान दक्षिण अमेरिका के बीच व्यापार नीतियों पर तनाव था l उत्तर ने उच्च टैरिफ का समर्थन किया जबकि दक्षिण मुक्त व्यापार चाहता था l | ||
ब्रिटेन – जर्मनी आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा | 19 वीं शताब्दी के अंत में जर्मनी ने भारी औद्योगिक प्रगति की जिससे ब्रिटेन के व्यापारिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जिससे प्रथम विश्व युद्ध के पहले आर्थिक तनाव बढ़ा l | ||
5. | 20 वीं शताव्दी | अमेरिका और सोवियत संघ | सेकंड विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच व्यापार प्रतिबन्ध लगे l अमेरिका और सोवियत संघ के बीच का व्यापार 50% तक कम हो गया l अमेरिकी कंपनियों को उस समय 50 करोड़ डॉलर से ज्यादा का नुकशान हुआ था l USSR की औद्वौगिक उत्पादन दर में लगभग 30% की गिरावट दर्ज की गयी थी l 1980 तक अमेरिका ने USSR पर 600 से अधिक प्रतिबन्ध लगाये थे जिससे USSR की अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर हुई और 1991 में USSR का विघटन हुआ l |
ओपेक (OPEC) तेल संकट और व्यापार युद्ध (1973) | अरब देशों ने अमेरिका और पशिमी देशों पर तेल निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया जिससे तेल की कीमतों में 400% तक की वृद्धि देख गयी l अमेरिका में मंहगाई दर 11% तक पहुँच गयी और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी छा गयी l | ||
6. | 2018- 2020 | अमेरिका – चाइना व्यापार युद्ध | अमेरिका ने 250 अरब डॉलर के चीनी उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाया l जवाबी कार्यवाई करते हुए चाइना ने 110 अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिया जिससे 2019 में वैश्विक बाज़ार में वृद्धि दर 1% तक गिर गयी l अमेरिका – चाइना के बीच 15% कम व्यापार हुआ l अमेरिकी किसानों को 28 अरब डॉलर की सहायता देनी पड़ी l |
EU और अमेरिका ट्रेड वार | 2018 में अमेरिका ने स्टील और अल्लुमिनियम पर 25% तक टैरिफ लगाया l जवाब में EU ने अमेरिकी उत्पादों पर 3.2 अरब यूरो का टैरिफ लगाया l |
EU और अमेरिका ट्रेड वार
2018 में अमेरिका ने स्टील और अल्लुमिनियम पर 25% तक टैरिफ लगाया l जवाब में EU ने अमेरिकी उत्पादों पर 3.2 अरब यूरो का टैरिफ लगाया l
उपरोक्त सुचानाओं के आधार पर यह कह सकते हैं कि व्यापार युद्ध हमेशा ही अर्थव्यवस्था, भूराजनीतिक परिदृश्य, महंगाई, मुद्रास्फीति, रोजगार के अवसर, वैश्विक शांति आदि विषयों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है l हो सकता है कि किसी देश के लिए कुछ फायेदे दिखे परन्तु दीर्घ काल में समस्त विश्व के लिए अनुकूल प्रभाव डालने में असमर्थ ही रहा है l आज जब दुनिया समावेशी, सर्वस्पर्शी लोककल्यानकारी विचारों से प्रभावित होकर काम करना चाहती है तो किसी देश का आत्मकेंद्रित होना बहुत सराहनीय नहीं कहा जायेगा l
यह सच है कि प्रत्येक देश के शासनाध्यक्ष को अपने देशो के हित के लिए सजग होना ही चाहिए l राष्ट्रीय अस्मिता और राष्ट्र गौरव को सर्वोपरि मानकर व्यापारिक नीतिया बनाते समय अल्पकालिक और दीर्घ कालिक परिणामो पर अवश्य चिंतन होना चाहिए और globalization के इस दौर में व्यापारिक सिद्धांतों में व्यावहारिक लचीलापन अपनाकर समस्त विश्व के दीर्घकालिक भलाई के लिए कदम उठाए जाएँ l
समृद्ध राष्ट्रों से यह उम्मीद की जाती है कि वे केवल व्यापारिक लाभ हानि के साथ साथ दुनिया के प्रति जवाबदेही को भी ध्यान में रख कर अपनी व्यापार नीतियों का प्रतिपादन करे l यह सच है कि ट्रम्प की कार्यसूची में “अमेरिका फर्स्ट” सर्वोच्च है परन्तु इसके क्रियान्वयन के दौरान अतीत से शिक्षा लेकर विश्व के दीर्घकालिक भविष्य को ध्यान में रखकर वर्तमान में कदम उठाना श्रेयष्कर होगा l
(लेखक पूर्व सहायक महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा एवं आर्थिक विश्लेषक हैं )
