धर्म, कर्म, मोक्ष एवं अध्यात्म की नगरी काशी में अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। आज हम चर्चा करेंगे ऐसी गुफा (Cave) की जहां जाना मना है, जो सीधा पाताल लोक पहुंचती है जिसमें दफन है भीष्म पितामह का सबसे बड़ा राज। पातालपुरी मठ से गुफा तक, भीष्म पितामह से काशी नरेश तक, काशी से लेकर हस्तिनापुर तक, महाभारत काल से पाताल लोक तक गुफा में मिली काशी की नई दुनिया।
अमित श्रीवास्तव

पातालपुरी मठ में कदम रखते ही जिज्ञासु मन और नैना दोनों ही उस गुफा को ढूंढने लगते हैं जो पाताल लोक को जाता है। गुफा (Cave) के इस रहस्य को जानने के लिए हमारी संवाद पातालपुरी मठ के महंत बालक दास जी से होती है। महंत बालक दास जी ने बताया कि मुगल काल तक काशी ऐसे नहीं थी। यहां घना जंगल हुआ करता था और काशी ऋषियों की तपस्थली हुआ करती थी। इस गुफा का इतिहास करीब 5000 वर्ष पुराना है।
यह गुफा पाताल लोक को ले जाती है जहां दैत्य और दानव की दुनिया बस्ती है। पातालपुरी मठ में द्वापर युग की एक गुफा है जिसका वर्णन काशी खंड में मिलता है। काशी से हस्तिनापुर तक पाताल मार्ग कौरवों व पांडवों के पितामह भीष्म द्वारा बनाया गया है। इसका निर्माण उन्होंने अपने तीर से किया था। पाताल मार्ग का द्वार वहीं स्थित होने से सिद्धपीठ को पातालपुरी मठ कहा जाता है।

ऐसे हुआ था गुफा का निर्माण
इस पौराणिक काल की Cave का वर्णन पुराणों और मंत्रों में भी है। काशी खंड के मुताबिक काशी नरेश ने अपनी तीन बेटियों अंबा, अंबे और अंबालिका के स्वयंबर में सभी राजाओं को बुलाया था, लेकिन इस स्वयंवर में भीष्म पितामह को निमंत्रण नहीं गया था। इसके बाद वह बिना निमंत्रण के ही काशी नरेश की तीनों बेटियों का हरण कर यहां से ले जाने लगे।
काशी नरेश को शिव का अंश माना जाता है। इसलिए बीच में उनसे युद्ध नहीं करना चाहते थे और जब उनकी सेना ने भीष्म को घेरना शुरू किया, तो भीष्म पितामह ने अपनी धनुर्विद्या से तीर के जरिए एक विशाल गुफा का निर्माण किया जो काशी से सीधे हस्तिनापुर को जोड़ती थी। इसी गुफा के रास्ते भीष्म पितामह काशी से हस्तिनापुर के लिए निकल गए।

महाभारत काल से यह गुफा (Cave) आज भी मौजूद है। फिलहाल रहस्यमई इस गुफा से असलियत में पर्दा कब उठेगा, यह तो यहां रिसर्च कर रही बीएचयू और अन्य कई जगह के वैज्ञानिकों की टीम ही बता सकेगी, लेकिन काशी में मौजूद यह गुफा आज भी काशी आने वाले भक्तों और पर्यटकों के लिए काफी रहस्य का विषय है। यह भी मान्यता है कि काशी खंड में मौजूद इस गुफा का दर्शन किए बिना काशी यात्रा पूरी नहीं होती I

महंत बालक दास का कहना है कि उनके गुरु द्वारा उनको यह भी बताया गया था कि लगभग 30 साल पहले दो अंग्रेज काशी घूमने आए थे और वह इस रहस्यमई गुफा पर रिसर्च करने के लिए मठ पहुंचे थे। पूरे साजो सामान के साथ वह इस Cave में प्रवेश को कर गए ,लेकिन कई दिन बीतने के बाद वह लौटकर नहीं आये। इसके बाद जब प्रशासन को इस बात की जानकारी हुई तो प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस की मौजूदगी में इस गुफा को बंद करवा दिया गया। तब से अब तक यह गुफा बंद ही है.
भक्ति आंदोलन के महान संत रामानंद के 12 प्रमुख शिष्यों में नरहरि दास ने पाताल मार्ग द्वार के पास मठ की स्थापना की। नरहरिदास के शिष्य तुलसी दास ने अकबर के काल में वहीं काशी का पहला दक्षिणामुखी हनुमान मंदिर स्थापित किया। द्वापर की गुफा (Cave) मध्य काल का हनुमान मंदिर और नरहरिदास की समाधि व आधुनिक काल में अंग्रेजों के अत्याचार से बचाने वाला आश्रय स्थल पातालपुरी मठ तीन युगों के इतिहास का सेतु है।
महाभारत Cave के प्रामाणिक इतिहास का जीवंत उदाहरण पातालपुरी मठ में मौजूद है। मानस मराल की उपाधि से विभूषित वर्तमान पीठाधीश्वर बालक दास महाराज हिंदू धर्म की कुरीतियों को दूर करने में लगे हैं। वे अपने आदि गुरु रामानंद के बताए मार्ग पर चल रहे हैं जहां जाति धर्म, छुआछूत या अन्य भेदभाव नहीं है। सिद्धपीठ के कई शिष्य मुस्लिम भी हैं। हाल ही में कई मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक से मुक्ति के लिए 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ इस मठ में ही किया था।
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