भारतीय संसद (Parliament) की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने को लेकर एक नई किताब ने बड़ा सुझाव दिया है। किताब में प्रधानमंत्री प्रश्नकाल शुरू करने और साल में कम से कम 100 दिन संसद की कार्यवाही चलाने की सिफारिश की गई है। यह सुझाव संसद में हो रहे बार-बार के व्यवधान और नेताओं की बयानबाजी को रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

संसदीय प्रक्रियाओं और कार्य संस्कृति में सुधार की दिशा में एक अहम हस्तक्षेप करते हुए लोकसभा सचिवालय के पूर्व अतिरिक्त सचिव देवेंद्र सिंह की नई किताब The Indian Parliament संविधान सदन टू संसद भवन में कई साहसिक सुझाव दिए गए हैं।

किताब में भारतीय संसद की बहस प्रणाली में आमूलचूल बदलाव की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा गया है कि संसद को अधिक उत्तरदायी और प्रभावी बनाने के लिए प्रधानमंत्री प्रश्नकाल की शुरुआत होनी चाहिए। इसके तहत सप्ताह में एक दिन प्रधानमंत्री सीधे सांसदों के सवालों का जवाब दें, जिससे विपक्ष के सवालों का सीधा और स्पष्ट समाधान मिले और कार्यवाही बाधित होने की प्रवृत्ति पर लगाम लगे।
देवेंद्र सिंह लिखते हैं, प्रधानमंत्री प्रश्नकाल की व्यवस्था भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत होगी। इससे न केवल प्रधानमंत्री को नीति स्पष्टीकरण का अवसर मिलेगा, बल्कि सांसदों को भी प्रभावी ढंग से जनता के मुद्दे उठाने का मंच मिलेगा।

किताब में यह भी कहा गया है कि संसद में अक्सर नेताओं की बयानबाजी, शोरगुल और व्यवधान के कारण जनता में संसद को लेकर अविश्वास और निराशा का माहौल बनता है। इसलिए जरूरी है कि संसद की कार्यप्रणाली में तकनीक और नवाचार लाकर उसे अधिक सहभागी और पारदर्शी बनाया जाए।

किताब में साइबर इंटरफेस के माध्यम से संसद में आम लोगों की भागीदारी को बढ़ाने का भी सुझाव है। इसके साथ ही साल में कम से कम 100 दिन संसद की कार्यवाही सुनिश्चित करने की मांग भी की गई है, जिससे लोकतंत्र के इस सर्वोच्च मंच की गंभीरता बनी रहे और वास्तविक मुद्दों पर सार्थक चर्चा हो सके।
कुल मिलाकर यह किताब भारतीय संसद की छवि सुधारने, जवाबदेही बढ़ाने और राजनीतिक विमर्श को सार्थक दिशा में ले जाने की एक कोशिश के रूप में देखी जा रही है।