IIT BHU ने विकसित किए थ्रोम्बोसिस रोकने वाले नैनोकण, 48 घंटे तक असरदार

वाराणसी I IIT BHU के शोधकर्ताओं ने थ्रोम्बोसिस जैसी जानलेवा बीमारियों को रोकने के लिए KFeOx-NPs नैनोकण विकसित किए हैं, जो 48 घंटे तक रक्त के थक्के बनने से रोकने में सक्षम हैं। यह नई खोज रक्त के गुणों को बदले बिना थ्रोम्बोसिस से सुरक्षा प्रदान करती है।

दुनिया भर में थ्रोम्बोसिस से जुड़ी बीमारियाँ जैसे स्ट्रोक, हार्ट अटैक और पल्मोनरी एंबोलिज़्म मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। भारत में इसकी वार्षिक दर प्रति 1,000 व्यक्तियों पर 1–2 है। ऐसे में IIT BHU की यह पहल थ्रोम्बोसिस से होने वाली मौतों को कम करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।

IIT BHU के स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुदीप मुखर्जी और उनकी टीम द्वारा विकसित KFeOx-NPs नैनोमैटेरियल पारंपरिक दवाओं की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं। जबकि वारफारिन और हेपरिन जैसी दवाएं 20% तक मामलों में रक्तस्राव और हड्डियों की कमजोरी जैसे दुष्प्रभाव देती हैं, वहीं IIT BHU की तकनीक इन खतरों से मुक्त है।

मानव रक्त पर किए गए प्रयोग में IIT BHU द्वारा विकसित KFeOx-NPs ने 48 घंटे तक थ्रोम्बोसिस बनने से रोका और रक्त कोशिकाओं की संरचना पर कोई प्रभाव नहीं डाला। यह साबित करता है कि यह तकनीक थक्कों की रोकथाम में दीर्घकालिक समाधान बन सकती है।

चूहों पर हुए परीक्षणों में भी IIT BHU के इस नैनोकण ने प्रभावशाली नतीजे दिए। 10 में से 9 चूहों में थ्रोम्बोसिस को रोका गया, जो 90% सफलता दर को दर्शाता है। इससे इसके क्लिनिकल उपयोग की संभावनाएं और मजबूत हुई हैं।

इस शोध को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल ACS Applied Materials & Interfaces में प्रकाशित किया गया है। साथ ही, IIT BHU की टीम ने इस तकनीक के लिए एक पेटेंट भी फाइल किया है, जिससे भविष्य में यह चिकित्सकीय उपयोग के लिए उपलब्ध हो सकेगा।

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डॉ. सुदीप मुखर्जी ने बताया कि IIT BHU की यह खोज वर्तमान में प्रचलित एंटीकोआगुलेंट्स की सीमाओं को दूर करते हुए एक सुरक्षित विकल्प प्रदान करती है। आने वाले 2 वर्षों में इसका क्लिनिकल ट्रायल शुरू होने की उम्मीद है।

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