Mumbai : 2 जून 2025 को हफ्ते के पहले कारोबारी दिन भारतीय शेयर बाजार (Share Market) में बड़ी गिरावट देखी गई। सुबह 9:15 बजे बीएसई सेंसेक्स 644.76 अंक (0.74%) गिरकर 80,855.18 पर पहुंचा और बाद में 732.71 अंक की गिरावट के साथ 80,718.30 पर कारोबार करता देखा गया। एनएसई निफ्टी 50 भी 197.45 अंक (0.80%) फिसलकर 24,553.25 पर आ गया। यह गिरावट मजबूत जीडीपी डेटा के बावजूद वैश्विक चिंताओं और निवेशकों में अनिश्चितता के कारण हुई।
गिरावट के प्रमुख कारण
- वैश्विक व्यापार तनाव: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा स्टील आयात पर टैरिफ 25% से बढ़ाकर 50% करने की घोषणा ने मेटल स्टॉक्स में भारी गिरावट लाई। निफ्टी मेटल इंडेक्स 1.69% गिरा, जो सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला सेक्टर रहा। हिंदाल्को (-2.27%) जैसे स्टॉक्स में भारी बिकवाली देखी गई।
- वैश्विक बाजारों में कमजोरी: एशियाई बाजारों में भी गिरावट का रुख रहा। जापान का निक्केई 1.21%, टॉपिक्स 0.83% और ऑस्ट्रेलिया का एएसएक्स 200 0.1% नीचे बंद हुआ। हालांकि, दक्षिण कोरिया का कोस्पी 0.03% ऊपर रहा। मलेशिया, चीन और न्यूजीलैंड में अवकाश के कारण बाजार बंद थे।
- आईटी और ऑटो सेक्टर पर दबाव: निफ्टी आईटी (-1.12%) और ऑटो (-0.98%) सेक्टर में भी गिरावट रही। एचसीएल टेक (-1.81%), टेक महिंद्रा (-1.69%) और बजाज ऑटो (-3.10%) टॉप लूजर्स में शामिल रहे। वैश्विक मांग में कमी और निर्यात पर चिंताओं ने इन सेक्टरों को प्रभावित किया।
- तकनीकी स्तर: निफ्टी 24,677 के समर्थन स्तर से नीचे फिसला, जो मंदी का संकेत देता है। विश्लेषकों के अनुसार, 24,800 से नीचे टिकने पर 24,500 तक और गिरावट संभव है।

भारत का Q3FY25 जीडीपी विकास दर 6.2% रहा, जो उम्मीदों (6.5%) से थोड़ा कम लेकिन मजबूत माना गया। यह वृद्धि सरकारी खर्च और उत्सव सीजन के दौरान उपभोग में वृद्धि से प्रेरित थी। हालांकि, विनिर्माण और निर्माण में सुस्ती ने सालाना वृद्धि को प्रभावित किया। मजबूत जीडीपी डेटा और अनुकूल मानसून पूर्वानुमान के बावजूद, वैश्विक अनिश्चितताओं ने बाजार की तेजी को सीमित रखा।

मई 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय शेयर बाजार में 19,860 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया, जो अप्रैल के 4,223 करोड़ रुपये से काफी अधिक है। मजबूत घरेलू आर्थिक संकेतक, जैसे स्थिर मुद्रास्फीति (3.61% फरवरी में) और RBI की रेपो रेट कटौती (6% से 5.75%), ने निवेशकों का भरोसा बढ़ाया। फिर भी, 2 जून को FPI की बिकवाली और वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका ने बाजार पर दबाव बनाए रखा।