Varanasi: विश्व विख्यात संत और रामकथा वाचक मोरारी बापू शनिवार को काशी की पावन धरती पर बाबा विश्वनाथ धाम पहुंचे। यहां उन्होंने विधि-विधान से बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन-पूजन किए। काशी में उनके आगमन का मुख्य उद्देश्य उनकी 958वीं रामकथा का शुभारंभ है, जो आज से सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में शुरू हो रही है। यह कथा 22 जून तक चलेगी और इसका शीर्षक “मानस सिंदूर” रखा गया है, जो ऑपरेशन सिंदूर से प्रेरित है।
कथा का शुभारंभ और समय-सारणी
रामकथा का शुभारंभ आज शाम 4 बजे से होगा। इसके बाद 15 जून से 22 जून तक प्रतिदिन सुबह 10 बजे से कथा का आयोजन किया जाएगा। मोरारी बापू की यह कथा अपनी आध्यात्मिक गहराई और सामाजिक संदेशों के लिए जानी जाती है। इस बार भी कथा में मानवीय मूल्यों, भक्ति और रामचरितमानस की शिक्षाओं का अनूठा संगम देखने को मिलेगा।
वैश्विक प्रसारण और श्रोताओं की भागीदारी
कथा का सजीव प्रसारण यूट्यूब के माध्यम से विश्व के 170 देशों में किया जाएगा, जिससे वैश्विक स्तर पर श्रोता इससे जुड़ सकेंगे। कथा में देश के विभिन्न प्रांतों के साथ-साथ विदेशों से भी हजारों श्रोता हिस्सा लेंगे। काशी की यह कथा भक्ति और आध्यात्मिकता का एक अनूठा मंच बनेगा, जहां विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों के लोग एकत्र होंगे।
प्रभु प्रसाद और आयोजन की व्यवस्था

कथा स्थल के समीप सभी श्रोताओं के लिए प्रभु प्रसाद के रूप में खुला भंडारा उपलब्ध रहेगा। यह व्यवस्था श्रोताओं के लिए निःशुल्क होगी और कथा के दौरान भक्तों की सुविधा का विशेष ध्यान रखा जाएगा। कथा का आयोजन सेठ दीनदयाल जालान सेवा ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है, जो इस तरह के धार्मिक और सामाजिक आयोजनों के लिए जाना जाता है।
मानस सिंदूर: कथा का विशेष संदेश
मोरारी बापू ने कथा का शीर्षक “मानस सिंदूर” ऑपरेशन सिंदूर से प्रेरित होकर रखा है। यह शीर्षक न केवल आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और बलिदान की भावना को भी दर्शाता है। कथा के माध्यम से मोरारी बापू रामचरितमानस की शिक्षाओं को आधुनिक संदर्भों से जोड़कर श्रोताओं तक पहुंचाएंगे।
काशी में मोरारी बापू का विशेष लगाव
काशी के साथ मोरारी बापू का गहरा आध्यात्मिक जुड़ाव रहा है। बाबा विश्वनाथ की नगरी में उनकी कथाएं हमेशा से श्रोताओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रही हैं। इस बार भी काशीवासियों और बाहरी श्रोताओं में कथा को लेकर उत्साह देखा जा रहा है।
मोरारी बापू की यह 958वीं रामकथा न केवल आध्यात्मिकता का उत्सव होगी, बल्कि सामाजिक समरसता और भक्ति का संदेश भी विश्व भर में फैलाएगी। कथा के आयोजन से काशी एक बार फिर भक्ति और ज्ञान की नगरी के रूप में अपनी पहचान को और मजबूत करेगी।
