प्रकृति और मानवता के पवित्र संबंध का प्रतीक, जानिए क्यों और कैसे मनाया जाता है ये पर्व

पांच दिवसीय दीपोत्सव का उल्लास इस वर्ष भी पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। धनतेरस, दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा इस श्रृंखला का अहम हिस्सा है। इस साल गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। गोवर्धन पूजा का संबंध दिवाली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से है। इसे “अन्नकूट” भी कहा जाता है, जो प्रकृति और मानवता के बीच के मजबूत रिश्ते को दर्शाता है। यह पर्व खासकर उत्तर भारत के मथुरा-वृंदावन क्षेत्र में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है, जहां इसे भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जोड़ा जाता है। वहीं, गुजरात में इसे गुजराती नववर्ष के आगमन के रूप में भी देखा जाता है।

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गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवराज इंद्र के घमंड को तोड़ने और प्रकृति की महत्ता को स्थापित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पूजा का संदेश दिया। कथा के अनुसार, देवराज इंद्र ने अहंकार में आकर गोकुल में मूसलाधार बारिश कर दी, जिससे गोकुल के निवासी भयभीत हो गए। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर गोकुलवासियों को सुरक्षा दी। गोवर्धन पर्वत गोकुलवासियों के लिए प्राकृतिक आपदाओं से बचाव का प्रतीक बना और श्रीकृष्ण ने इसे संरक्षित करने का संदेश दिया। इस घटना के बाद, गोवर्धन पर्वत को हर साल पूजा और सम्मान में समर्पित किया जाता है, ताकि मानवता प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना सीखे।

अन्नकूट: गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत को छप्पन भोग अर्पित किए जाते हैं, जिन्हें “अन्नकूट” कहा जाता है। “अन्नकूट” का अर्थ है “भोजन का पहाड़,” और इसमें कई तरह की सब्जियों, कढ़ी-चावल, पूड़ी, रोटी, खिचड़ी, बाजरे का हलवा और अन्य पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं। गोकुलवासी इस आयोजन के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण का आभार प्रकट करते हैं और गोवर्धन पर्वत को श्रद्धा और सम्मान के साथ भोग अर्पित करते हैं।

गोवर्धन पूजा का प्रकृति संरक्षण में योगदान
गोवर्धन पूजा के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने मानवता को प्रकृति की अहमियत सिखाई। इस दिन, गोवर्धन पर्वत, गाय और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की पूजा की जाती है। गाय के गोबर से गोवर्धन का प्रतीकात्मक स्वरूप बनाकर उसकी पूजा की जाती है। इस पूजा का उद्देश्य समाज को प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और महत्व के प्रति जागरूक करना है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करना भी विशेष महत्व रखता है, जिसे श्रृद्धालु प्रकृति के प्रति अपनी आस्था और सम्मान के रूप में मनाते हैं।

इस बार गोवर्धन पूजा का दिन और तिथि
गोवर्धन पूजा का पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर दीपावली के अगले दिन पड़ती है। स्थानीय भाषा में इसे परेवा भी कहा जाता है। इस साल, दिवाली दो दिन मनाई जा रही है, जिसके चलते गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर 2024 को होगा।

समाज और धर्म के प्रति पवन कल्याण का संदेश
गोवर्धन पूजा का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी है। यह पर्व हमारे समाज को प्राकृतिक संसाधनों की कदर करना सिखाता है। जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत के माध्यम से गोकुलवासियों को प्रकृति के महत्व का संदेश दिया, वैसे ही आज के समय में गोवर्धन पूजा हमें अपने पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का संदेश देती है।

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