खाड़ी विकास परिषद् (GCC, Gulf Co-operation Council) से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में 800% से ज्यादा वृद्धि

मिथिलेश कुमार पाण्डेय

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भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी कुवैत की सफल यात्रा पूरी करके स्वदेश लौट आये हैं। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार पिछले 10 वर्षों में खाड़ी विकास परिषद् के देशों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 8 गुने से ज्यादा वृद्धि हुई है। अप्रैल 2000 से सितम्बर 2013 तक की अवधि में GCC से USD लगभग 305 करोड़ का FDI प्राप्त हुआ था वहीं अक्टूबर 2013 से सितम्बर 2024 तक की अवधि में यह रकम लगभग 2454 करोड़ USD तक पहुच गया है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि GCC से प्राप्त FDI का लगभग 89% पिछले 10 वर्षों में आया है। यह खाड़ी विकास परिषद् के सदस्य देशों का भारत की अर्थव्यवस्था में विश्वास को दर्शाता है।

आइये खाड़ी विकास परिषद् (GCC) के बारे में कुछ महवपूर्ण तथ्यों को जानने का प्रयास करते हैं:

GCC खाड़ी क्षेत्र के 6 देशो का एक राजनीतिक और आर्थिक गठबंधन है जिसके सदस्य देश हैं : बहरीन, क़तर, ओमान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत। जॉर्डन, मोरक्को और यमन भी इस संगठन में शामिल हो सकते हैं। GCC की स्थापना 25/ 05/1981 को हुई थी और इसका मुख्यालय सऊदी अरब की राजधानी रियाध में है। 1984 में संयुक्त सैन्य सुरक्षा के लिए पेनिन्सुला शील्ड फोर्स का गठन किया गया। GCC के सभी सदस्य देशों में राजतन्त्र है। बहरीन, कुवैत और क़तर में संवैधानिक राजतन्त्र है जहाँ के राजा की शक्ति संविधान में वर्णित कानूनों और बुनियादी सिद्धांतों के अनुसार होती है, सऊदी अरब और ओमान में पूर्ण राजशाही है जबकि संयुक्त अरब अमीरात में संघीय राजशाही की व्यवस्था है जिसमें आबूधाबी, दुबई, शारजाह, अजमान, अल कुवैन, रस अल खैमा और फुजैरह शामिल हैं।

GCC भारत के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है। बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी GCC क्षेत्र में रहते हैं और भारत में विदेशी मुद्रा भेजते हैं। भारत जीसीसी देशों को कृषि उत्पाद और अन्य वस्तुओं का निर्यात करता है और इनसे तेल और गैस का आयत करता है।


निम्नलिखित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए GCC की स्थापना की गयी है :

-सामान लक्ष्यों, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान के आधार पर सदस्य देशों के बीच एकता स्थापित करना।
-आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नीतियों में समन्वय बनाना।
-सदस्य देशों के बीच संबंधों को दृढ़ता प्रदान करना।
-सुरक्षा और रक्षा नीतियों में समन्वय बनाना।

GCC के सदस्य देशों के समक्ष चुनौतियाँ भी हैं जिसमें राजनितिक विवाद, आर्थिक विविधिकरण और क्षेत्रीय अस्थिरता प्रमुख हैं। इस संगठन के सभी देशों की अर्थव्यवस्था पेट्रोलियम केन्द्रित है जो निश्चित रूप से जोखिंम भरा है। विश्व के किसी भी क्षेत्र की भू-राजनीतिक घटना का गंभीर प्रभाव इस क्षेत्र की आर्थिक स्थिति पर पड़ती है। कोविड -19 के दौरान तेल की कीमतों में गिरावट और पर्यटन उद्योग में मंदी के कारण इस क्षेत्र की अर्थ व्यवस्था को काफी नुकसान हुआ है। यहाँ की सरकारें इस चुनौती को ध्यान में रख कर इस समय पर्यटन, नवीकरणीय उर्जा, उत्पादन, परिवहन आदि क्षेत्रों में काफी निवेश कर रही हैं। मानव संसाधन के क्षेत्र में भी काफी निवेश किया जा रहा है। आधारभूत संरचानाओं के विकास पर भी भरपूर जोर दिया जा रहा है। GCC देशों के बीच और क्षेत्र के अन्य देशों के साथ राजनीतिक प्रतिद्वंदिता भी स्पष्ट दिखाई पड़ती है। इस क्षेत्र में युवा बेरोजगारी, सामाजिक असमानता और धार्मिक उग्रवाद भी चुनौती प्रस्तुत करती हैं।


(लेखक पूर्व सहायक महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा एवं आर्थिक विश्लेषक हैं )

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