{"vars":{"id": "130921:5012"}}

मृत मानकर दी जाती रही 5 साल तक पेंशन, अचानक लौट आया कर्मचारी, BHU में सामने आया हैरान करने वाला मामला

बीएचयू में गंभीर प्रशासनिक चूक सामने आई है, जहां एक जीवित कर्मचारी के परिवार को पांच साल से अधिक समय तक पारिवारिक पेंशन दी जाती रही। कर्मचारी के अचानक लौटने पर मामला उजागर हुआ। विश्वविद्यालय ने पेंशन रोक दी है और रिकवरी व जांच की तैयारी की जा रही है।

 

वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में प्रशासनिक लापरवाही का चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक कर्मचारी के जीवित रहते हुए उसके परिवार को पांच साल से अधिक समय तक पारिवारिक पेंशन मिलती रही। यह खुलासा तब हुआ, जब स्वयं कर्मचारी ने कुलसचिव कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई। मामले के सामने आने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन में हड़कंप मच गया है और जांच की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

प्रकरण एबी हॉस्टल कमच्छा में वरिष्ठ सहायक पद पर कार्यरत रहे रमाशंकर राम से जुड़ा है। रमाशंकर सामान्य प्रशासन में टाइपिस्ट और वित्त विभाग में कैशबुक से जुड़े कार्य संभाल चुके हैं। वर्ष 2013 में वह अचानक लापता हो गए थे, जिसके बाद परिजनों ने 19 मई 2013 को लंका थाने में उनकी गुमशुदगी दर्ज कराई थी।

नियमों के तहत सात साल तक प्रतीक्षा के बाद बीएचयू प्रशासन ने रमाशंकर राम को मृत मानते हुए उनके परिवार के नाम पारिवारिक पेंशन स्वीकृत कर दी। लेकिन नवंबर 2025 में यह मामला उस वक्त पलट गया, जब रमाशंकर राम अचानक सामने आ गए। उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 के बाद उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था और शरीर के बाएं हिस्से में लकवा भी मार गया था। इस दौरान उन्हें अपने ठिकाने और बीते वर्षों की कोई स्पष्ट स्मृति नहीं थी।

स्वास्थ्य में सुधार के बाद जब याददाश्त लौटी तो उन्हें पता चला कि उनके नाम पर परिवार को पारिवारिक पेंशन मिल रही है। इसके बाद उन्होंने 7 नवंबर और 25 नवंबर 2025 को कुलसचिव कार्यालय को पत्र लिखकर खुद के जीवित होने का प्रमाण प्रस्तुत किया और पारिवारिक पेंशन तत्काल बंद कर रिकवरी की मांग की।

मामला सामने आने के बाद बीएचयू के सेवा पुस्तिका एवं पेंशन अनुभाग ने 29 नवंबर को पारिवारिक पेंशन पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन अब औपचारिक रूप से कर्मचारी के जीवित होने के सभी दस्तावेजों और पुराने अभिलेखों की जांच कर रहा है।

पेंशन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, किसी कर्मचारी की गुमशुदगी के मामले में सात साल तक प्रतीक्षा का प्रावधान है। इसके बाद पुलिस रिपोर्ट और न्यायालय के आदेश पर कर्मचारी को मृत मानकर परिवार को पेंशन दी जाती है। रमाशंकर राम के मामले में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई थी।