‘दक्षिण काशी’ माधोपुर में देव दीपावली की दिव्य छटा, शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर हजारों दीपों से जगमगाया
वाराणसी। देव दीपावली के पावन अवसर पर इस बार काशी का “दक्षिण द्वार” यानी माधोपुर गांव श्रद्धा और आस्था की रौशनी में नहाया हुआ है। गंगा तट पर स्थित प्रसिद्ध शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर परिसर हजारों दीयों से जगमगा उठा है। उत्तर प्रदेश की ग्रामीण पर्यटन योजना के तहत इस गांव को विशेष रूप से चुना गया है, जहां पारंपरिक तरीके से भव्य देव दीपावली उत्सव का आयोजन किया गया।
इस आयोजन का शुभारंभ मंगलवार शाम दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि शूलटंकेश्वर मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण के काशी खंड में भी मिलता है, जिससे इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता का पता चलता है। उन्होंने कहा, “इस मंदिर की पौराणिकता और सौंदर्य आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां जलने वाले सभी दीये स्थानीय कुम्हारों द्वारा तैयार किए गए हैं, जिससे ग्रामीण कारीगरों को भी प्रोत्साहन मिल रहा है।
हजारों दीयों से सजी ‘दक्षिण काशी’
देव दीपावली का यह भव्य आयोजन उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग और स्थानीय संस्था ‘बकरी छाप’ के सहयोग से किया गया। गांव के स्वयं सहायता समूहों, एनजीओ और होमस्टे लाभार्थियों ने मिलकर पूरे घाट और आस-पास के क्षेत्र को हजारों मिट्टी के दीयों से सजाया। पूरा इलाका दीपों की रौशनी से जगमगा उठा, जिससे यहां का दृश्य किसी आध्यात्मिक उत्सव से कम नहीं दिखा।
ICSSR और वसंत महिला महाविद्यालय का योगदान
भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR), नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम “काशी की मृत्तिका कला: अतीत, वर्तमान एवं भविष्य” के तहत वसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट (काशी हिंदू विश्वविद्यालय से संबद्ध) की ओर से 1001 दीपक प्रदान किए गए। इससे इस पारंपरिक उत्सव की भव्यता और अधिक बढ़ गई।
हेरिटेज स्टोरी टेलिंग से जुड़ी परंपराएं
दीपोत्सव के दौरान एक विशेष ‘हेरिटेज स्टोरी टेलिंग’ सत्र का भी आयोजन किया गया। इसमें शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं और माधोपुर गांव की पर्यावरण संरक्षण परंपराएं साझा की गईं। इसके साथ ग्रामीणों को ग्रामीण पर्यटन योजना और उससे होने वाले लाभों की जानकारी भी दी गई।
शूलटंकेश्वर मंदिर का महत्व
माधोपुर गांव में स्थित शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर को काशी का दक्षिण द्वार कहा जाता है। मान्यता है कि जब गंगा काशी में प्रवेश कर रही थीं, तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उनके वेग को रोकते हुए काशी की रक्षा की थी। उन्होंने गंगा से वचन लिया था कि वे भक्तों को हानि पहुंचाए बिना काशी से होकर प्रवाहित होंगी। यह मंदिर काशी के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है और देव दीपावली, महाशिवरात्रि तथा सावन में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
अन्य गांवों में भी दीपोत्सव की रौनक
माधोपुर के अलावा, चंद्रावती, कैथी, उमराह और रहती जैसे गांवों में भी पारंपरिक मिट्टी के दीयों से देव दीपावली मनाई जा रही है। चंद्रावती जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभु की जन्मस्थली है, जबकि कैथी का मार्कण्डेय महादेव मंदिर भी धार्मिक महत्व रखता है।
ग्रामीण पर्यटन को नई दिशा
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि “ऐसे आयोजनों का उद्देश्य ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देना और स्थानीय कारीगरों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। इन प्रयासों से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक पहचान भी मिलेगी।”