Varanasi: मुख्यमंत्री योगी 6 अक्टूबर को वाराणसी में, DSR कॉन्क्लेव में जलवायु-संवेदनशील धान खेती पर वैश्विक चर्चा
Varanasi: अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (इरी) अपने दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) में 5 से 7 अक्टूबर 2025 तक डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) कॉन्क्लेव 2025 का आयोजन करने जा रहा है। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में देश-विदेश से 300 से अधिक नीति-निर्माता, वैज्ञानिक, निजी क्षेत्र के नेता, गैर-सरकारी संगठन और किसान प्रतिनिधि शामिल होंगे। 6 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे।
यह सम्मेलन DSR तकनीक को व्यापक स्तर पर अपनाने की रणनीति पर केंद्रित होगा, जो धान उत्पादन में पानी, श्रम और लागत की बचत के साथ-साथ उत्पादकता बढ़ाने और मीथेन गैस उत्सर्जन को कम करने में सक्षम है। कार्यक्रम का एक प्रमुख आकर्षण 6 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश कृषि विभाग की 150वीं वर्षगांठ को समर्पित विशेष सत्र होगा।
इस सत्र में राज्य के कृषि नेतृत्व की ऐतिहासिक भूमिका और वर्ष 2030 तक उत्तर प्रदेश को “वैश्विक खाद्य भंडार” बनाने की दृष्टि पर Varanasi में चर्चा होगी। साथ ही, 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में डीएसआर अपनाने, धान आधारित प्रणालियों की उत्पादकता में 30% वृद्धि और जलवायु-खाद्य सुरक्षा लक्ष्यों पर विचार-विमर्श होगा।
इरी की महानिदेशक डॉ. इवोन पिंटो ने कहा, “डीएसआर ने उत्पादन, जल उपयोग और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में ठोस प्रभाव दिखाया है। अब इसे लाखों हेक्टेयर तक विस्तार देने की चुनौती है, जिसके लिए विज्ञान, नीति और साझेदारी जरूरी है। यह कॉन्क्लेव उस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।”
आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने बताया, “Varanasi में यह आयोजन वैश्विक विज्ञान को क्षेत्रीय प्रभाव में बदलने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उत्तर प्रदेश जैसे धान उत्पादक राज्य में डीएसआर अपनाने से कृषि प्रणाली में बड़ा परिवर्तन और किसानों की समृद्धि संभव है।”
डीएसआर कंसोर्टियम के समन्वयक डॉ. वीरेंद्र कुमार ने कहा, “पिछले एक दशक के शोध ने डीएसआर की एग्रोनॉमी, मशीनीकरण और संसाधन दक्षता पर ठोस प्रमाण दिए हैं। यह कॉन्क्लेव सार्वजनिक-निजी क्षेत्रों और किसानों को एक साझा दृष्टिकोण से जोड़ेगा।”
Varanasi में यह आयोजन भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और इरी के संयुक्त प्रयास से जलवायु-संवेदनशील, कम-उत्सर्जन और किसान-केंद्रित धान उत्पादन प्रणाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।