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भारत में बनेगी निपाह वायरस की दवा मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, हर सप्ताह 1 लाख खुराक का उत्पादन

 

नई दिल्ली I बार-बार लौट रहे निपाह वायरस की घातक चुनौती से निपटने के लिए भारत जल्द ही स्वदेशी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विकसित करने जा रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने इसकी उत्पादन क्षमता के लिए साझेदार कंपनियों से आवेदन मांगे हैं, ताकि देश के विभिन्न हिस्सों में हर सप्ताह कम से कम एक लाख खुराक का निर्माण हो सके। ये एंटीबॉडी कोरोना से कहीं अधिक घातक निपाह संक्रमण को कमजोर करने में सक्षम होंगी। पुणे स्थित आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने बीएसएल-4 स्तर की प्रयोगशाला में निपाह के खिलाफ यह स्वदेशी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी सफलतापूर्वक तैयार की है।

निपाह वायरस भारत के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा बना हुआ है। जुलाई 2025 तक केरल में कुल नौ मामले दर्ज किए गए हैं। आईसीएमआर के अनुसार, देश में पहला संक्रमण 2001 में सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) में सामने आया था। इसके बाद 2007 में नादिया में मामले रिपोर्ट हुए। 2018 में 23 लोग संक्रमित पाए गए, जिनमें से 91 प्रतिशत की मौत हो गई। 2019 में एक मरीज मिला, जबकि 2023 में दो मौतों सहित छह मामले सामने आए। 2024 में दो मामले दर्ज हुए।

ICMR की शर्तों के तहत साझेदार कंपनियों को हर सप्ताह कम से कम एक लाख खुराक उत्पादन की क्षमता रखनी होगी और 400-500 खुराक आपातकालीन उपयोग के लिए भंडारित रखनी होंगी। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विशेष प्रोटीन अणु होते हैं, जो वायरस के विशिष्ट हिस्से को लक्ष्य करके संक्रमण को रोकते हैं। वर्तमान में निपाह के लिए कोई टीका या दवा उपलब्ध नहीं है, इसलिए इसे सबसे प्रभावी जैव-चिकित्सीय उपाय माना जा रहा है।

भारत में निपाह का प्रभाव

निपाह एक जूनोटिक वायरस है, जो जानवरों से इंसानों में फैलता है। इसका प्राकृतिक वाहक फल खाने वाले चमगादड़ हैं। संक्रमण मुख्य रूप से दूषित फलों के सेवन, संक्रमित पशुओं (जैसे सूअर) या संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क से होता है। कोरोना की तुलना में यह अधिक घातक है, क्योंकि निपाह की चपेट में आए 75 प्रतिशत मरीजों को बचाया नहीं जा सका। मृत्यु दर 40 से 75 प्रतिशत तक है, जो इसे विश्व की सबसे खतरनाक वायरल बीमारियों में शुमार करती है।