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गोवर्धन पूजा – श्रद्धा और प्रकृति का संतुलन 

 

रचना- अमित श्रीवास्तव

गोवर्धन पूजा केवल पर्वत बनाना और देवी-देवताओं को अर्पित करना नहीं है, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान और संतुलन का पर्व है।

गोवर्धन पूजा – श्रद्धा और प्रकृति का संतुलन दीवाली की जगमग रात के बाद जब सुबह की पहली किरण धरती को छूती है, तो वातावरण में एक नई सादगी, एक नई सुगंध फैल जाती है। यही वह समय होता है जब घरों में गोवर्धन पूजा की तैयारी शुरू होती है। दीवाली की चकाचौंध के बाद यह दिन हमें सरलता, कृतज्ञता और प्रकृति के प्रति प्रेम की याद दिलाता है।

मुझे आज भी  याद है — जब घर की महिलाएं आँगन में गोबर से गोवर्धन बनाती थीं। मिट्टी, फूल, तुलसी की पत्तियाँ और कच्चे दूध की खुशबू पूरे वातावरण में फैल जाती थी। मैं और बूढी दादी के आस-पास बैठकर मंत्र-जैसी जिज्ञासाएँ पूछते — “दादी, ये गोवर्धन क्यों बनाते हैं?” वह मुस्कुरा कर कहतीं, “बेटा, ये हमारी धरती का पर्वत है, जिसे भगवान कृष्ण ने अपने नन्हें हाथों से उठाया था ताकि बारिश से सबकी रक्षा कर सकें। यह पूजा हमें याद दिलाती है कि प्रकृति हमारी रक्षक है, शत्रु नहीं।”

उनकी बात उस समय बालमन को कहानी-सी लगती थी, लेकिन अब समझ आता है कि गोवर्धन पूजा असल में प्रकृति और श्रद्धा के संतुलन का उत्सव है।

श्रद्धा की जड़ें मिट्टी में 

भारतीय संस्कृति में पर्वत, नदी, वृक्ष, पशु — सब देवत्व का रूप माने गए हैं। इसका कारण केवल आस्था नहीं, बल्कि एक गहरी जीवन-दर्शन की समझ है। गोवर्धन पूजा उसी दर्शन की याद दिलाती है कि मनुष्य और प्रकृति का रिश्ता साझेदारी का है, स्वामित्व का नहीं। जब भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़कर गोवर्धन पर्वत उठाया, तो संदेश यही था — “प्रकृति की पूजा करो, न कि उसके शोषण की।”

आज भी गोवर्धन के दिन गायों को सजाया जाता है, उनके सींगों पर रंग लगाया जाता है, और उनके गले में घंटियाँ बाँधी जाती हैं। बच्चे ‘अन्नकूट’ की थाली लेकर हर घर जाते हैं — जिसमें साग, दाल, चावल, मिठाई, फल सब कुछ मिलाकर अर्पित किया जाता है। यह दृश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामूहिकता और साझेदारी का प्रतीक है। गाँव के हर वर्ग के लोग — अमीर-गरीब, किसान-दुकानदार, बच्चे-बूढ़े — सब मिलकर भोजन बनाते हैं। यह परंपरा हमें सिखाती है कि जब भोजन साझा किया जाता है, तभी उसमें प्रसाद का भाव आता है।

प्रकृति का संतुलन और आधुनिक सन्दर्भ

आज जब हम पर्यावरण संकट, ग्लोबल वॉर्मिंग, और प्रदूषण की चर्चा करते हैं, तब गोवर्धन पूजा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक लगती है। इस दिन गोबर से पर्वत का निर्माण सिर्फ़ प्रतीकात्मक नहीं है — यह यह बताने का माध्यम है कि जो चीज़ें हम बेकार समझते हैं, वही प्रकृति के चक्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। गाय का गोबर, मिट्टी, जल, अन्न — ये सब हमारी धरती के “जीवित तत्व” हैं। इनकी पूजा कर हम धरती के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
मुझे याद है, कुछ साल पहले जब मैं शहर में रहने लगा, तो गोवर्धन पूजा बस कैलेंडर की तारीख़ रह गई थी। पर एक साल मैंने तय किया कि इस बार मैं गाँव जाकर दादी के साथ यह पर्व मनाऊँगा। जब मैंने देखा कि कैसे गाँव के बच्चे मिट्टी गूँधकर पर्वत बनाते हैं, कैसे औरतें गीत गाती हैं —

“गोवर्धन धरणी धरि लीनो, गिरधारी लाज रखी…”,

तो लगा कि यह केवल एक रीति नहीं, बल्कि एक जीवंत संवाद है — मनुष्य और प्रकृति के बीच।
भावनाओं का अन्नकूट 

गोवर्धन पूजा का सबसे सुंदर पहलू है “अन्नकूट” — यानी सैकड़ों व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित करना। यह परंपरा केवल भोजन की विविधता का प्रदर्शन नहीं, बल्कि समानता और समर्पण का प्रतीक है। मेरे घर में माँ सुबह से रसोई में लग जाती हैं। वे कहती हैं, “हर दाने में आशीर्वाद छिपा है, इसे बनाना भी पूजा है।” अन्नकूट के समय जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करता है, तो यह केवल भोजन नहीं, बल्कि रिश्तों का पुनर्स्थापन लगता है। शहरों में जहाँ लोग अकेलेपन में जीते हैं, गोवर्धन पूजा हमें याद दिलाती है कि सुख का स्वाद बाँटने में है, संग्रह में नहीं। यह पर्व इस बात का प्रमाण है कि आध्यात्मिकता केवल ध्यान या मंत्रों में नहीं, बल्कि कृतज्ञता के व्यवहार में बसती है।

आज की पीढ़ी के लिए संदेश 

अगर हम ध्यान दें तो गोवर्धन पूजा हमें तीन मुख्य बातें सिखाती है — 
1. प्रकृति का आदर करो, क्योंकि वही जीवन का आधार है।
2. अहंकार का त्याग करो, जैसे इंद्र का अहंकार भगवान कृष्ण ने तोड़ा।
3. साझेदारी की भावना रखो, क्योंकि सच्ची समृद्धि बाँटने से बढ़ती है।

आज जब जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ और संसाधनों की कमी हमारे सामने खड़ी हैं, तो गोवर्धन पूजा का अर्थ और गहरा हो जाता है। यह हमें याद दिलाती है कि पूजा केवल देवताओं की नहीं, धरती माता की भी होनी चाहिए।

जब मैं दादी की पुरानी तस्वीर देखता हूँ — हाथ में दीया, गोबर से बने पर्वत के सामने झुकी हुई — तो मन में एक अजीब सुकून भर जाता है। लगता है जैसे वह कह रही हों, “बेटा, जब तक धरती पर आस्था और संतुलन रहेगा, तब तक यह उजाला भी बना रहेगा।” गोवर्धन पूजा हमें सिखाती है कि श्रद्धा का सच्चा स्वरूप पर्यावरण की रक्षा में है। जब हम धरती को देवता समझते हैं, तब ही हम इंसान कहलाने के योग्य बनते हैं।
 और यही इस पर्व का सबसे सुंदर संदेश है — 
“गोवर्धन केवल पर्वत नहीं, यह वह विश्वास है कि प्रकृति झुकेगी नहीं, बल्कि हमें संभालेगी।”