वाराणसी। महाशिवरात्रि के अवसर पर काशी में अखाड़ों की पेशवाई निकाली गई। सबसे पहले हरिश्चंद्र घाट से जूना अखाड़े की पेशवाई प्रारंभ हुई। नागा साधु हाथ में त्रिशूल, तलवार और गदा लेकर हर-हर महादेव के जयघोष के साथ बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए रवाना हुए। इस शोभायात्रा का नेतृत्व जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि कर रहे हैं। काशी विश्वनाथ धाम के गेट नंबर 4 से अखाड़ों को प्रवेश दिया गया, जहां पुष्प वर्षा और माल्यार्पण कर संतों का भव्य स्वागत किया गया।

विभिन्न अखाड़ों के संतों का आगमन
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर विभिन्न अखाड़ों के संत, महंत और नागा साधु काशी पहुंचे हैं। हरिश्चंद्र घाट से शुरू हुई पेशवाई में सबसे पहले पंचदशनाम जूना अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा और आवाह्न अखाड़ा की शोभायात्रा निकली। इनके एक घंटे बाद श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा के साधु-संतों ने काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के लिए प्रस्थान किया।

महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि ने कहा कि परंपरा के अनुसार महाकुंभ के बाद जूना अखाड़ा भगवान विश्वनाथ के दर्शन के लिए आता है। इस परंपरा का निर्वहन करने के लिए हजारों नागा सन्यासी काशी में एकत्र हुए हैं। उन्होंने कहा, “लगभग आधा भारत महाकुंभ में उपस्थित था, जबकि शेष भारत महाकुंभ की अनुभूति कर रहा है। महाशिवरात्रि के दिन बाबा के दर्शन की परंपरा है और हम उसी का पालन कर रहे हैं।”

नागा साधुओं का अद्भुत कौशल प्रदर्शन
पेशवाई के दौरान नागा साधु गदा, तलवार और भाला से विभिन्न प्रकार के युद्ध कौशल का प्रदर्शन कर रहे थे। सबसे पहले पंच दशनाम जूना अखाड़ा की पेशवाई निकली, उसके लगभग एक घंटे बाद श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा के साधु-संतों की यात्रा प्रारंभ हुई। अंत में महानिर्वाणी अखाड़ा और अटल अखाड़े के साधु-महात्मा बाबा के दर्शन के लिए हरिश्चंद्र घाट से आगे बढ़े। इस दौरान जहां-जहां से साधु-संत गुजरे, वहां श्रद्धालु हर-हर महादेव के जयघोष और पुष्प वर्षा से उनका स्वागत करते नजर आए।

भक्तों के लिए सुरक्षा और यातायात व्यवस्था
बाबा विश्वनाथ के दर्शन और पूजन के उपरांत सभी नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाएंगे। पेशवाई के मार्ग पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी, और इस दौरान यातायात को पूरी तरह प्रतिबंधित रखा गया। स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को पेशवाई समाप्त होने के बाद ही घाटों तक जाने की अनुमति दी गई। उन्हें विभिन्न मार्गों से घाटों तक पहुंचाया गया, जिससे आयोजन की व्यवस्था सुचारू बनी रही।
