बंद किस्मत के ताले खोलती है ये देवी, भक्तजन माता को प्रसाद में चढ़ाते है ताला-चाबी

वाराणसी। भगवान को प्रसन्न करने के लिए भक्त मंदिरों में माला-फल फूल मिठाई व अन्य पदार्थों का भोग लगाते है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जहां जहां देवी को माला फूल की जगह ताला-चाबी चढ़ाया जाता है। जी हां, सुनकर थोड़ी हैरानी हुई न, लेकिन ऐसा ही है। दरअसल, इस मंदिर में माता को ताली-चाबी चढ़ाने के पीछे एक पौराणिक मान्यता छिपी हुई है। तो चलिए फिर जानते है कि ये मंदिर कहां है और देवी को क्यों भक्तजन ताला चाबी चढ़ाते है।

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यहां स्थित है मंदिर

दरअसल, हम जिस मंदिर की बात कर रहे है वो वाराणसी के विश्वप्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर स्थित बंदी देवी का मंदिर है। जिन्हें पाताल लोक की देवी भी माना जाता है। पूरे विश्व में माता का ये एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां ताला लगाने से माता अपने भक्तों के बंद किस्मत के ताले खोल देती है। जो भी भक्त सच्चे मन से 41 दिन मां से मुराद मांगता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

इस कारण चढ़ाते हा ताला-चाबी

माता को प्रसन्न करने के लिए यहां भक्त ताला और चाबी चढ़ाते हैं। बताया जाता है जिन लोगों का कोर्ट केस चल रहा होता है, अगर वह सच्चे मन से माता के दरबार में आकर चढ़ावा चढ़ाएं तो उसको जरूर विजय मिलती है और उन्हें कोर्ट कचहरी और मुकदमों के झंझट से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही अगर कोई जेल में बंद है तो भी मां सभी की समस्याओं का अंत करती हैं।

मान्यता है कि ताला और चाबी चढ़ाने से भक्तों को सभी बंधनों से मुक्ति मिलती है। साथ ही पारिवारिक कलह, भूत-प्रेत, मुकदमा और जेल में बंद सभी तरह के कष्टों का अंत होता है।

मंदिर के महंत के अनुसार, मशहूर फिल्म अभिनेता संजय दत्त ने भी जेल में रहते समय यहां चढ़ावा भेजवाया था, जिससे उन्हें जेल की यातनाओं से मुक्ति मिल सके।

मां ने की थी भगवान राम की मदद

भगवान विष्णु की आज्ञा से ही बंदी देवी ने यहां वास किया था। कहा जाता है जब अहिरावण ने भगवान राम और लक्ष्मण का अपहरण किया था तब बंदी देवी की सहायता से उनको कैद मुक्त किया था। तभी से माता को बंदी देवी के नाम से जाना जाता है।

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