कोलकाता। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने Bangladesh की मौजूदा स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है और कहा है कि उनके मित्र एवं पड़ोसी देश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस अहम कदम उठा रहे हैं, लेकिन संकट के समाधान तक पहुंचने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
सेन ने कहा कि बांग्लादेश की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियां उन्हें प्रभावित कर रही हैं और वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि देश इन चुनौतियों से कैसे निपटेगा। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश ने जमात जैसी सांप्रदायिक ताकतों को नियंत्रण में रखा है और उसे धर्मनिरपेक्षता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखनी चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की स्थिति मुझे गहराई से प्रभावित करती है, क्योंकि मेरी जड़ें बंगाली पहचान से जुड़ी हुई हैं। सेन ने अपने बचपन के अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा ढाका में शुरू की थी और अक्सर माणिकगंज व बिक्रमपुर जैसे इलाकों में जाया करते थे।
सेन ने बांग्लादेशी सेना की प्रशंसा की और कहा कि अन्य देशों की तुलना में उसने सैन्य शासन लागू करने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने बांग्लादेश में महिलाओं के अधिकारों में सुधार और स्वतंत्र मीडिया के बने रहने को सकारात्मक संकेत बताया।
अमर्त्य सेन ने आगाह किया कि अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने से वही गलतियां दोहराई जाएंगी जिनका आरोप अन्य पार्टियों ने अवामी सरकार पर लगाया था। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश को समावेशी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और सभी गुटों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में मोहम्मद यूनुस की भूमिका को लेकर पूछे गए सवाल पर सेन ने कहा कि यूनुस मेरे पुराने मित्र हैं। वे अत्यधिक योग्य हैं और एक असाधारण व्यक्तित्व के धनी हैं। उन्होंने कहा कि यूनुस बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर प्रतिबद्ध हैं और उनके पास विभिन्न राजनीतिक गुटों को साथ लेकर चलने की क्षमता है।
सेन ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों और मंदिरों में तोड़फोड़ की कड़ी निंदा की और कहा कि ऐसी हिंसा को रोकना सरकार और जनता दोनों की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश को ऐतिहासिक रूप से अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि पर गर्व रहा है। सेन ने यह भी कहा कि भारत में भी मस्जिदों पर हमले हुए हैं और ऐसी घटनाओं को हर हाल में रोका जाना चाहिए।
सेन ने चेतावनी दी कि चुनिंदा घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना और सांप्रदायिकता को हवा देना बेहद खतरनाक हो सकता है। उन्होंने 1940 के दशक के हिंदू-मुस्लिम दंगों का जिक्र करते हुए कहा कि इतिहास से सबक लेकर भविष्य की दिशा तय करनी चाहिए।
अमर्त्य सेन ने कहा कि बांग्लादेश को समावेशी नीति अपनाकर आगे बढ़ना चाहिए और उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में वहां के चुनाव अधिक स्वतंत्र और निष्पक्ष होंगे। उन्होंने कहा कि मैं बांग्लादेश को लेकर चिंतित जरूर हूं, लेकिन निराश नहीं हूं।