नई दिल्ली। लोक सभा ने मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बैंकिंग कानूनों में सुधार संबंधी विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। यह विधेयक ग्राहकों को बेहतर सेवाएं प्रदान करने और बैंकों के प्रशासन को अधिक सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से लाया गया है।
विधेयक में भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934, बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949, भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम 1955, और बैंकिंग कंपनियों से जुड़े 1970 और 1980 के कानूनों में संशोधन किया गया है।
मुख्य प्रावधान :-
- नॉमिनेशन सुविधा में बदलाव :- खाताधारक अब अपने बचत और सावधि खातों के साथ-साथ लॉकर में अधिकतम चार नामांकित व्यक्तियों को जोड़ सकते हैं। इसके साथ ही, खाताधारक उनके हिस्से निर्धारित कर सकते हैं या लाभ पाने की क्रमवार व्यवस्था कर सकते हैं। यह संशोधन कानूनी अड़चनों से बचने में मदद करेगा।
- अप्राप्त धन की वापसी का अधिकार :- निवेशक शिक्षा और सुरक्षा कोष में स्थानांतरित लाभांश, ब्याज और शेयर जैसे अप्राप्त धन की वापसी अब खाताधारक मांग सकते हैं।
- डेटा रिपोर्टिंग प्रणाली में सुधार :- बैंकों को वैधानिक रिपोर्ट जमा करने के लिए शुक्रवार के बजाय पखवाड़े, महीने, या तिमाही के अंतिम दिन तक का समय दिया गया है। इससे आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार होगा और बैंकों के कार्य में सहूलियत होगी।
- ऑडिटर शुल्क का निर्धारण :- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अब अपने विवेक के आधार पर ऑडिटर्स के पारिश्रमिक का निर्धारण कर सकते हैं।
- सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल में बदलाव :- सहकारी बैंकों के निदेशकों का कार्यकाल 8 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। साथ ही, केंद्रीय सहकारी बैंकों के निदेशक अब राज्य सहकारी बैंकों में भी निदेशक बन सकते हैं।
यह विधेयक बैंकिंग व्यवस्था को अधिक ग्राहक-केंद्रित और प्रशासनिक रूप से सक्षम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे बैंकों की कार्यक्षमता बढ़ेगी और ग्राहकों को अधिक सुविधाएं मिलेंगी।