आज की तेजी से बदलती वैश्विक व्यवस्था में ब्रिक्स (BRICS) एक ऐसा संगठन बनकर उभरा है, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एकजुट कर पश्चिमी प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से शुरू हुआ यह समूह अब 11 देशों तक विस्तार कर चुका है और वैश्विक भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया है। लेकिन इसके बढ़ते प्रभाव से कुछ देशों में असुरक्षा की भावना भी पैदा हो रही है। आइए, ब्रिक्स के उद्देश्य, कार्यप्रणाली, सदस्य देशों और इसके विस्तार से उत्पन्न होने वाली चिंताओं पर एक नजर डालें।
ब्रिक्स क्या है?

ब्रिक्स (BRICS) पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं—ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका—का एक समूह है, जिसकी स्थापना 2009 में रूस के येकातेरिनबर्ग में हुई थी। शुरुआत में इसे BRIC के नाम से जाना जाता था, लेकिन 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद यह ब्रिक्स बन गया। इसका मुख्य लक्ष्य वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा देना, विकासशील देशों (ग्लोबल साउथ) के हितों को समर्थन देना और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसे पश्चिमी-प्रभुत्व वाले संस्थानों के प्रभाव को संतुलित करना है। यह संगठन बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करता है, जहां कोई एक देश या समूह वैश्विक शासन पर हावी न हो।ब्रिक्स कैसे काम करता है?
ब्रिक्स कोई औपचारिक अंतरराष्ट्रीय संगठन नहीं है, बल्कि एक सहयोगी मंच है, जो तीन प्रमुख क्षेत्रों में काम करता है:

राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग:
ब्रिक्स (BRICS) देश वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद विरोध, साइबर सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हैं। यह संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर बहुपक्षीयता को बढ़ावा देता है और वैश्विक शांति के लिए काम करता है।
आर्थिक और वित्तीय सहयोग:
ब्रिक्स (BRICS) ने कई महत्वपूर्ण वित्तीय तंत्र स्थापित किए हैं, न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) 2014 में शुरू हुआ यह बैंक, जिसका मुख्यालय शंघाई में है, बुनियादी ढांचा और सतत विकास परियोजनाओं के लिए वित्त प्रदान करता है। सभी सदस्यों का इसमें समान मताधिकार है।
आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (CRA):
यह 100 बिलियन डॉलर का एक आपातकालीन कोष है, जो आर्थिक संकटों में सदस्य देशों को वित्तीय सहायता देता है।

BRICS पेमेंट सिस्टम:
यह स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देता है, जिससे अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम होती है और SWIFT जैसी पश्चिमी प्रणालियों का विकल्प मिलता है।
लोगों से लोगों का संपर्क:
ब्रिक्स सांस्कृतिक, शैक्षिक और खेल गतिविधियों को बढ़ावा देता है, जैसे BRICS फिल्म फेस्टिवल, युवा शिखर सम्मेलन और अकादमिक मंच।
ब्रिक्स की गतिविधियां वार्षिक शिखर सम्मेलनों के जरिए संचालित होती हैं, जहां सदस्य देश बारी-बारी से मेजबानी करते हैं। 2025 में ब्राज़ील इसकी अध्यक्षता कर रहा है। निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं और संगठन खुलापन, समावेशिता और तटस्थता जैसे सिद्धांतों पर आधारित है।
ब्रिक्स के सदस्य देशवर्तमान में ब्रिक्स में 11 देश शामिल हैं इनमे मूल सदस्य ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका हैं I
नए सदस्य (2024-2025): मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), इंडोनेशिया

आंशिक सदस्य: सऊदी अरब, जो औपचारिक रूप से शामिल नहीं हुआ लेकिन ब्रिक्स की गतिविधियों में हिस्सा लेता है।
कौन से देश शामिल हो सकते हैं?

2024 के कज़ान शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स (BRICS) ने “पार्टनर देश” की एक नई श्रेणी बनाई। इसमें बेलारूस, बोलीविया, क्यूबा, कजाकिस्तान, मलेशिया, नाइजीरिया, थाईलैंड, युगांडा, उज्बेकिस्तान और वियतनाम शामिल हैं। इसके अलावा, 40 से अधिक देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है, जिनमें अल्जीरिया और तुर्की प्रमुख हैं। हालांकि, अर्जेंटीना ने 2023 में शामिल होने से इनकार कर दिया था। यह विस्तार ब्रिक्स को और अधिक वैश्विक प्रभाव देता है, लेकिन आंतरिक समन्वय को और जटिल भी बनाता है।
ब्रिक्स के विस्तार से असुरक्षित देश
ब्रिक्स (BRICS) का बढ़ता प्रभाव, खासकर इसकी “डी-डॉलराइजेशन” रणनीति और पश्चिमी संस्थानों को चुनौती देने की कोशिश, कुछ देशों और समूहों के लिए चिंता का विषय है। और भी कई देश इससे असुरक्षित महसूस कर सकते हैं I

संयुक्त राज्य अमेरिका: ब्रिक्स का स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देना और NDB जैसे तंत्रों का विकास अमेरिकी डॉलर के वैश्विक प्रभुत्व को कमजोर कर सकता है। डॉलर वैश्विक व्यापार और वित्तीय प्रणाली का आधार है और ब्रिक्स की समानांतर प्रणालियां इसे चुनौती देती हैं। हाल ही में, अमेरिका ने भारत जैसे ब्रिक्स देशों पर रूसी तेल आयात को लेकर दबाव बढ़ाया है, जो इस असुरक्षा को दर्शाता है।

पश्चिमी यूरोपीय देश और G7: G7 देश (अमेरिका, कनाडा, यूके, जर्मनी, फ्रांस, इटली, जापान) वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर हावी हैं। ब्रिक्स को उनके भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता है, जो IMF और विश्व बैंक जैसे संस्थानों के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहा है। हाल के बयानों में, पश्चिमी नेताओं ने ब्रिक्स देशों के रूस के साथ संबंधों पर चिंता जताई है।


अन्य पश्चिमी सहयोगी: ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देश, जो अमेरिका के नेतृत्व वाली व्यवस्था का हिस्सा हैं, ब्रिक्स के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं, खासकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जहां चीन और भारत का प्रभाव बढ़ रहा है। इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों के ब्रिक्स में शामिल होने की संभावना क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बदल सकती है।
चुनौतियां और आलोचनाएं
ब्रिक्स (BRICS) की राह आसान नहीं है। इसके सदस्य देशों के बीच भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों में अंतर है। उदाहरण के लिए, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और व्यापार असंतुलन संगठन की एकजुटता को कमजोर कर सकते हैं। भारत एक तरफ अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी रखता है, तो दूसरी तरफ रूस और चीन के साथ ब्रिक्स में सहयोग करता है। इसके अलावा, कुछ आलोचक ब्रिक्स को चीन-केंद्रित मंच मानते हैं, क्योंकि चीन इसका सबसे बड़ा आर्थिक योगदानकर्ता है। संगठन की प्रभावशीलता पर भी सवाल उठते हैं, क्योंकि इसके सदस्यों की अर्थव्यवस्थाएं और राजनीतिक व्यवस्थाएं बहुत भिन्न हैं।

ब्रिक्स (BRICS) वैश्विक व्यवस्था में ग्लोबल साउथ की आवाज को मजबूत करने वाला एक महत्वपूर्ण मंच है। यह न्यू डेवलपमेंट बैंक, CRA और BRICS पे जैसे तंत्रों के जरिए पश्चिमी वित्तीय प्रणालियों का विकल्प पेश करता है। इसके 11 सदस्य और 10 पार्टनर देश इसे एक वैश्विक शक्ति बनाते हैं। हालांकि, इसका विस्तार और प्रभाव अमेरिका, G7 और उनके सहयोगियों के लिए असुरक्षा का कारण बन रहा है। फिर भी, ब्रिक्स की आंतरिक विभिन्नताएं और क्षेत्रीय तनाव इसकी एकता और प्रभाव को सीमित कर सकते हैं। भविष्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि ब्रिक्स वैश्विक व्यवस्था को कितना प्रभावित कर पाता है और क्या यह अपनी आंतरिक चुनौतियों से पार पा सकता है।