बुंदीपारकोटा घाट: काशी और बुंदी राजवंश के सांस्कृतिक संबंधों की अनमोल धरोहर

वाराणसी, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है, अपने प्राचीन घाटों, मंदिरों और सांस्कृतिक विरास के लिए प्रसिद्ध है। गंगा नदी के किनारे स्थित बुंदीपारकोटा घाट भी इन्हीं ऐतिहासिक घाटों में से एक है, जो अपनी समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और आध्यात्मिक महत्व के कारण विशेष स्थान रखता है।

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बुंदीपारकोटा घाट का इतिहास :-

यह घाट अपने नाम के पीछे छिपे इतिहास के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि यह घाट राजस्थान के बुंदी राज्य के शासकों द्वारा बनवाया गया था। बुंदी के राजाओं का काशी से गहरा संबंध था और उन्होंने यहाँ घाट तथा धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। इसी कारण इस घाट का नाम “बुंदीपारकोटा घाट” पड़ा।

इस घाट का संस्कृति और इतिहास से गहरा नाता है। वाराणसी में कई राजस्थानी राजपरिवारों ने धार्मिक गतिविधियों और गंगा स्नान की परंपरा को बनाए रखने के लिए घाटों और मंदिरों का निर्माण करवाया था। माना जाता है कि यह घाट बुंदी के राजाओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था, जहां वे धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करने के लिए आते थे।

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वाराणसी के अन्य घाटों की तरह, बुंदीपारकोटा घाट भी गंगा स्नान, ध्यान और योग के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। प्राचीन काल से ही यह घाट संतों, तपस्वियों और श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र स्थल रहा है। यहाँ आने वाले तीर्थयात्री गंगा में स्नान कर पुण्य अर्जित करने की मान्यता रखते हैं।

बुंदीपारकोटा घाट अपनी विशिष्ट राजस्थानी स्थापत्य कला और मजबूत पत्थरों से बने घाट के लिए जाना जाता है। यहाँ बनी सीढ़ियाँ और आसपास की इमारतें राजस्थानी शैली की स्थापत्य कला को दर्शाती हैं।

आज यह घाट वाराणसी आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। घाट की प्राचीनता और सांस्कृतिक विरासत इसे वाराणसी के महत्वपूर्ण घाटों में से एक बनाती है। इसके साथ ही घाट की दीवारों पर बनी हुई चित्रकलाएँ लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं।

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