“ किसी की विरासत को पाना आसान है , पर उसे बनाए रखना और बढ़ाना – एक कला “
मिथिलेश कुमार पाण्डेय (लेखक पूर्व सहायक महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा एवं आर्थिक विश्लेषक हैं )
भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पारिवारिक व्यवसाय (Business) अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है l इसका न केवल व्यावसायिक महत्व है बल्कि यह सामाजिक परम्पराओं का अभिन्न अंग रहा है l FICCI की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 85% से अधिक व्यवसाय पारिवारिक ही हैं l कोई व्यक्ति जब अपने माता–पिता के द्वारा अपनाए गए कार्य क्षेत्र में ही पदार्पण करता है और उसमें ही अपने करिअर को समर्पित करता है तो उसे भी लोग पारिवारिक विरासत मानते हैं, चाहे वह व्यापारिक हो या व्यावसायिक l
आज के व्यापारिक (Business) घराने से लेकर डॉक्टर, वकील, खिलाड़ी, कलाकार, राजनेता आदि सभी क्षेत्रों में यदि अगली पीढ़ी भी उसी काम में संलग्न होती है तो उसे विरासत में काफी कुछ प्राप्त हो जाता है जो कि उस क्षेत्र में प्रथम प्रवेशी को काफी संघर्ष करके हासिल करना होता है l विरासत पाना आसान है और इसके साथ काफी संभावनाएं सुलभ हो जाती हैं परंतु ध्यान रहे इसमें चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं l भारत ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास और वर्तमान ऐसे अनेक उदाहरणों से भरे हैं जहां पर सफल और विफल विरासत देखे जा सकते हैं l
सफल Business और व्यवसाय का उत्तराधिकारी बनना दो धारी तलवार के बीच रोप वाक करने जैसा है l उन्हें लोक अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए परंपरा का निर्वहन और नवोन्मेषण के मध्य संतुलन बना कर विरासत में मिली सफलता की रफ्तार को न केवल बनाए रखना है बल्कि उससे तेज करने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले कर चलना है l
अपने पूर्ववर्ती के साये से बाहर निकलकर अपनी व्यक्तिगत पहचान बनाने की चुनौती सदैव उनके साथ होती है l उनके हर प्रदर्शन को उनके पूर्ववर्ती के प्रदर्शन से तुलनात्मक कसौटी से गुजरना होता है l व्यवसाय (Business) और कला के क्षेत्र में यह और महत्वपूर्ण हो जाता है और शायद यही कारण है कि महानतम स्तर पर पहुँच गए कलाकारों और खिलाड़ियों के पुत्र –पुत्रियाँ अपने माता –पिता के कार्य क्षेत्र में ज्यादा सफल नहीं रहे l

किसी की भावना को आहत किए बगैर मैं कुछ उदाहरण देना चाहता हूँ जैसे राज कुमार – पुरू राजकुमार, मनोज कुमार – कुणाल गोस्वामी, महमूद – लकी अली, राज बब्बर – आर्य बब्बर, डैनी देनजोगपा – रिजिंग देनजोगपा, मोहिन्दर अमरनाथ – दिग्विजय अमरनाथ, बिसन सिंह बेदी – अंगद बेदी, सैयद किरमानी – साबिक किरमानी, क्रिस ब्रॉड – जॅक ब्रॉड, रोजर बिन्नी – स्तुवार्ट बिन्नी, सुनील गावस्कर – रोहन गावस्कर आदि l
उपरोक्त असफल विरासती उदाहरणों के साथ साथ सफल विरासत के भी अनेकों उदाहरण हैं जैसे डॉक्टर नरेश त्रहन – डॉक्टर मेघा त्रहन, डॉक्टर मोहन दास पई – डॉक्टर देवी शेट्टी, डॉक्टर अरुण कोठारी – डॉक्टर मनीष कोठारी, राज कपूर – कपूर खानदान, जे आर डी टाटा – रतन टाटा, धीरूभाइ अंबानी – मुकेश अंबानी, राहुल बजाज – राजीव एण्ड संजीव बजाज आदि l
दूरस्थ मूल्यांकन से ऐसा प्रतीत होता है कि समृद्ध विरासत एक स्वर्ण सिंहासन है जिसपर भाग्यवान विराजते हैं और वे एक चुनौती मुक्त जिंदगी जीते हैं l यह सच है कि उस क्षेत्र में काम करने के लिए आवश्यक साधन और वातावरण उनको सहज ही सुलभ हो जाता है जिसके लिए अन्य उद्यमी को काफी संघर्ष करना होता है परंतु इस लाभकारी स्थिति के साथ एक अलग किस्म की चुनौती भी साथ में आती है और वह होती है अपनी व्यक्तिगत पहचान स्थापित करने की और उनके प्रदर्शन को पूर्ववर्ती के प्रदर्शन से तुलना l आकाश, अनंत और ईशा अंबानी को सदैव अपने पिता मुकेश अंबानी जिन्होंने 25000 करोड़ डॉलर का साम्राज्य खड़ा किया है, से तुलना के दौर से गुजरना होगा l
इसी तरह गोदरेज, बजाज, अदानी यदि समूह के उत्तराधिकारियों को चाहे न चाहे अपने आप को अपने पूर्ववर्तियों से बेहतर भविष्यद्रष्टा और कार्यकुशल होने की चुनौती का सामना करना होगा l अपने पूर्ववर्ती के साये से बाहर निकलकर अपनी पहचान स्थापित करना इनके लिए बहुत कठिन होता है l
इनकी शिक्षा दीक्षा दुनिया के बेहतरीन संस्थानों में होती है, इन्हें गहन प्रशिक्षण सुलभ हो जाता है और अपेक्षित गुणों का बीजारोपन बचपन से ही होता रहता है जो कि सफलता के दरवाजे तो खोलता है परंतु भूल करने की कोई जगह नहीं देता है l इन्हें ऐतिहासिक परंपराओं का निर्वहन करते हुए समकालीन वैश्विक स्थिति के साथ समायोजन स्थापित करके प्रगति के पथ पर अग्रसर रहने की जिम्मेदारी निभानी होती है l
व्यापारिक घराने शुरू से ही Business Succession Plan को ध्यान में रखते हैं और अपने संभावित उत्तरधिकारी की यथोचित Grooming की उचित व्यवस्था कर लेते हैं l कुमार मंगलम बिरला ने अपने बच्चों को अपने ही कंपनी विभिन्न कार्यों में गहन प्रशिक्षण कराया l इसी तरह अंबानी, अदानी समूह भी भविष्य के लिए तैयारी कर लिए हैं l व्यापारिक लाभदायक स्थिति में होने के बावजूद इन्हे एकाकीपन, सक्रिय मीडिया के कारण निजता के अभाव, भावनात्मक कमजोरी आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है l

सफल उत्तराधिकार के लिए आवश्यक है कि पारिवारिक टकराव से बच कर सहयोग के रास्ते पर चला जाय जिसके लिए सामूहिक विषयों पर व्यतिगत निर्णय के बजाय सम्बद्ध व्यक्तियों से रचनात्मक चर्चा के बाद सर्वसम्मति से फैसला किया जाय ताकि सामूहिक विवेक का लाभ मिल सके तथा प्रत्येक सदस्य गौरवान्वित महसूस करे l इसके लिए आवश्यक है कि पारस्परिक टकराव से बचकर संवाद के साथ उचित माहौल स्थापित किया जाय l जहां वैकल्पिक उत्ताधिकारी उपलब्ध हों वहाँ पर प्रतिभा का सम्मान करते हुए निर्णय लिए जाने चाहिए l बजाज समूह और टाटा समूह इसके उदाहरण हैं l
Business में प्रतिभा के अनुसार लिए गए निर्णय से ही राहुल बजाज के दोनों उत्तराधिकारी राजीव और संजीव बजाज ने बजाज ऑटो और बजाज फिनसर्व को सफलता के नए सोपान पर लेकर चल रहे हैं l इस तरह की सोच को ताकतवर बनाने के लिए आवश्यक है कि एक स्वतंत्र, सक्षम और निष्पक्ष सलाहकार समिति का गठन किया जाय जोकि पारदर्शितापूर्ण ढंग से उचित निर्णय लेने का मार्ग प्रसस्त कर सके l बहुलवादी नेतृत्व की सोच में अगली पीढ़ी को अपने प्रतिभा और जुनून के अनुरूप कार्य क्षेत्र का चुनाव का अवसर मिलता है और क्षमता को निखर कर आगे आने का प्रचुर अवसर प्राप्त होता है l
भारतवर्ष के बड़े व्यापारिक घरानों मे अगली पीढ़ी नेतृत्व करने को तैयार है l इस कड़ी में अंबानी समूह में आकाश, ईशा और अनंत अंबानी, अदानी समूह के लिए करण, जीत और प्रणव अदानी, गोदरेज समूह में पिरोजशा गोदरेज,न्यारिका होल्कर, बजाज समूह में ऋषभनयन बजाज, नीरव बजाज, टाटा समूह में माया टाटा, लीह टाटा, बिरला समूह में अनन्य बिरला, आर्यमान विक्रम बिरला जैसे सितारे भारत के व्यापारिक (Business) आकाश में चमक बिखेरने के लिए तैयार हैं और इनसे उम्मीद की जाएगी कि वे सभी सफलता के नए मानदंड स्थापित करने में सफल होंगे l
विरासत को सफलतापूर्वक आगे ले जाने के लिए व्यावसायिक (Business) निर्णय, प्रतिस्पर्धा और कर्ज के संबंध में सदैव सजगता आवश्यक है l इन मामलों में हल्की चूक भी भारी पड़ सकती है l 2005 में जब स्वर्गीय धीरुभाई अंबानी की विरासत का बटवारा मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच हुई उसके लगभग 5 वर्ष के बाद से ही अनिल अंबानी का साम्राज्य बिखरने लगा और 2020 तक आते आते उनका नेट वर्थ शून्य हो गया l अपनी व्यापारिक सूझबूझ के सहारे मुकेश अंबानी ने अप्रतिम सफलता अर्जित की l
उत्तराधिकारी को यह ध्यान में रखना होगा कि उत्तराधिकार एक उत्तरदायित्व भी है l विरासत जब केवल नाम नहीं बल्कि संस्कार बनकर अगली पीढ़ी को सौंपी जाती है तो उसका विस्तार होता है l संस्कार के अभाव में विरासत अमंगलकारी भी हो सकता है l बच्चों को मंच के साथ दृष्टि भी दिया जाय तो हर क्षेत्र में उत्तराधिकारी न केवल नाम रोशन करता है बल्कि नया इतिहास भी रचता है l
