मिथिलेश कुमार पाण्डेय
पुराने समय की कहावत है कि “कैश इज किंग” जो आज भी उतना ही सच है जितना कि पहले था, परन्तु समय के साथ साथ इसकी चमक थोड़ी कम हुई है। आज से लगभग एक दशक पूर्व अर्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता खर्च केवल कैश में ही होता था। पिछले दशक में वित्तीय समावेशन और इन्टरनेट की उपलब्धता के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार आज देश के 80 % व्यस्क आबादी के पास औपचारिक बैंक खाता हैं। बैंकों ने 53 करोड़ जनधन खाते खोले हैं जिनमें करीब 2.31 लाख करोड़ की धनराशि जमा है। इन खातों में करीब दो तिहाई खाते ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में खोले गए थे। इन्टरनेट की मजबूत उपलब्धता और सक्रिय बैंक अकाउंट ने फिनटेक कंपनियों का काम आसान बना दिया है। पहले लोग बचत करके पर्याप्त धन होने पर उपभोग की वस्तु खरीदते थे। उपभोग के लिए ऋण लेना आम जनता की सोच में शामिल नहीं था, परन्तु अब स्थिति तेजी से बदल रही है। उत्पादक कंपनियों ने बाज़ार विस्तार करने के लिए EMI संस्कृति को खूब बढ़ावा दिया है जो आज के नवयुवकों को काफी पसंद आ रहा है। एक समय था ( लगभग 25–30साल पहले ) जबकि बैंक केवल व्यापार करने के लिए ही लोन देते थे। उपभोग की वस्तुओं के लिए बैंक से ऋण नहीं मिलते थे परन्तु अब स्थिति बदल गयी है और बैंकों तथा NBFC में इनके लिए लोन देने की होड़ लगी है। उत्पादक कंपनियां भी व्याज मुक्त EMI पर अपने उत्पाद सुलभ करा रहे हैं।
उदहारण के लिए यह बताना जरुरी है कि वर्तमान वित्त वर्ष में ग्रामीण क्षेत्र में 62% दो पहिया वाहन लोन लेकर ख़रीदे गए हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 58% है। इसके साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 40% इलेक्ट्रॉनिक्स और स्मार्ट फोन EMI के तहत खरीदे गए हैं। इसके अलावा दो पहिया वाहनों के नए और महंगे मॉडल की मांग भी बढ़ी है। देश के दोपहिया वाहनों के बड़े निर्माता हीरो मोटोकार्प और होंडा मोटरसाइकिल और स्कूटर इंडिया के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार महंगे मॉडल की विक्री चालू वित्त वर्ष में 55% बढ़ी है जबकि एंट्री लेवल मॉडल्स की विक्री केवल 2% ही बढ़ी है। होंडा मोटरसाइकिल और स्कूटर की विक्री और विपणन निदेशक योगेश माथुर के अनुसार डिजिटल बैंकिंग की बेहतर सुविधा, त्वरित ऋण स्वीकृति तथा आकर्षक लोन विकल्प ने दोपहिया वाहन खरीदना आसान बना दिया है जिसके फलस्वरूप EMI विकल्प चुनकर वाहन खरीदने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है।
अपने देश में परंपरागत रूप से घरेलू बचत एक आम बात रही है जो आजकल कुछ कम होती जा रही है। एक ओर घरेलू बचत कम हो रहे हैं और समाज में बढ़ती उपभोक्तावादी प्रवृति के कारण जरूरतों के वजाए इच्छाओं की पूर्ति के लिए लोन लेने वालों की संख्या काफी बढ़ गयी है। NBFC और Microfinance कंपनियों ने महंगे दरों पर लोन बांटते हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने समय समय पर अपनी चिंताओं को प्रकट करते हुए सावधानी बरतने की सलाह भी दी है। अत्यधिक जोखिम को ध्यान में रखकर पूर्ण सावधानी से कदम उठाने की जरूरत पर रिज़र्व बैंक ने जोर दिया है। असंगठित क्षेत्र के कामगार, कृषि से जुड़े लोगों, छोटे व्यापारी, आदि लोगों को वित्तीय अनुशासन के अधीन ही उपभोक्तावादी कदम उठाना चाहिए अन्यथा गैरानुपतिक ऋण बड़े समस्या के कारण भी बनते हैं।
(लेखक पूर्व सहायक महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा एवं आर्थिक विश्लेषक हैं )