वाराणसी। संतान की रक्षा के लिए भगवान सूर्य की उपासना का पर्व छठ गंगा की गोद में उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही पूरा हुआ। छ्ठ को महापर्व इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि सूर्य ही एकमात्र प्रत्यक्ष देवता हैं और छठ पूजा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। अथर्ववेद में छठ पर्व का उल्लेख है जो इसकी महानता और प्राचीनता को दर्शाता है। यह एकमात्र पर्व है जिसमें उदयमान सूर्य के साथ-साथ अस्ताचलगामी सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है।
सप्तमी को प्रातः पुनः षष्ठी की संध्या की ही तरह ही पूर्व गंगा के घाटों के किनारे रात भर खड़े होकर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती महिलाओं ने अपने व्रत अनुष्ठान को पूर्ण किया। इस कामना के साथ की भगवान भास्कर और छठी मैया उनके घर आँगन को एक अलोकिक रौशनी और ख़ुशी से भर देंगे ।
पूरे चकाचौंध और भक्तिभाव से की जाने वाली इस पूजा को न सिर्फ बिहार में बल्कि पूरे देश के लोग पूरी निष्ठां और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। माँ गंगा के किनारे तो इस पर्व की अलग ही छटा देखने को मिलती है। ऐसी मान्यता है कि दशाश्वमेध घाट पर अर्ध्य देने पर अश्वमेध यज्ञ का पुण्य मिलता है।
शुक्रवार को सूर्य के उगने के इंतज़ार में व्रती महिलाओं ने मां गंगा की गोद में बिताया तो उनके साथ आये परिवार के लोगों ने घाट पर भोर में आतिशबाज़ी का लुत्फ़ उठाया।