मंडलायुक्त और DM ने ‘ज्ञान-प्रवाह’ संग्रहालय का किया दौरा, प्राचीन धरोहरों को बताया सांस्कृतिक संपदा

Varanasi : सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण और अध्ययन के लिए कार्यरत संस्था ‘ज्ञान-प्रवाह’ के संग्रहालय और परिसर का शनिवार को मंडलायुक्त एस. राजलिंगम और DM सत्येंद्र कुमार ने दौरा किया। सामने घाट स्थित इस सांस्कृतिक अध्ययन एवं शोध केंद्र के भ्रमण के दौरान अधिकारियों ने ताम्रपत्रों, प्राचीन सिक्कों और दुर्लभ पांडुलिपियों का अवलोकन किया। दोनों अधिकारियों ने संस्था के कार्यों की भूरी-भूरी प्रशंसा की और इसे सांस्कृतिक विरासत संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया।

संग्रहालय भ्रमण: ताम्रपत्र और पांडुलिपियों पर विशेष ध्यान

  • निरीक्षण:
    • मंडलायुक्त और जिलाधिकारी ने संग्रहालय में प्रदर्शित प्राचीन ताम्रपत्र, मुद्राएँ (प्राचीन सिक्के), और दुर्लभ पांडुलिपियाँ देखीं।
    • ताम्रपत्र: प्राचीन शिलालेखों और दस्तावेजों के रूप में महत्वपूर्ण, जो ऐतिहासिक और धार्मिक जानकारी प्रदान करते हैं।
    • प्राचीन सिक्के: विभिन्न राजवंशों (जैसे गुप्त, मौर्य, कुषाण) के सिक्के, जो आर्थिक और सांस्कृतिक इतिहास को दर्शाते हैं।
    • पांडुलिपियाँ: संस्कृत, प्राकृत और अन्य प्राचीन भाषाओं में लिखित ग्रंथ, जैसे वेद, पुराण, और ज्योतिष शास्त्र।
  • प्रशंसा:
    • अधिकारियों ने इन धरोहरों में गहरी रुचि दिखाई और ज्ञान-प्रवाह के संरक्षण प्रयासों को महाकुंभ 2025 और काशी की सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देने वाला बताया।
    • मंडलायुक्त ने कहा कि ऐसे प्रयास भारतीय संस्कृति को विश्व मंच पर ले जाने में सहायक हैं।
मंडलायुक्त और DM ने ‘ज्ञान-प्रवाह’ संग्रहालय का किया दौरा, प्राचीन धरोहरों को बताया सांस्कृतिक संपदा मंडलायुक्त और DM ने ‘ज्ञान-प्रवाह’ संग्रहालय का किया दौरा, प्राचीन धरोहरों को बताया सांस्कृतिक संपदा

यज्ञशाला का अवलोकन

  • विवरण:
    • अधिकारियों ने परिसर में स्थित यज्ञशाला का दौरा किया।
    • ज्ञान-प्रवाह के कार्यकारी प्रशासक ललित कुमार और सहायक निदेशक डॉ. नीरज कुमार पांडेय ने यज्ञशाला की संरचना, ऐतिहासिक महत्ता और धार्मिक उपयोग (वैदिक हवन, अनुष्ठान) की जानकारी दी।
  • महत्व:
    • यज्ञशाला वैदिक परंपराओं का प्रतीक है, जो पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र है।
    • महाकुंभ 2025 के दौरान यज्ञशाला में विशेष अनुष्ठान होने की संभावना।
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शिल्पशाला: अष्टधातु मूर्तियों का निर्माण

  • निरीक्षण:
    • शिल्पशाला समन्वयक डॉ. प्रमोद गिरि ने अष्टधातु मूर्तियों और हस्त-निर्मित कलाकृतियों की निर्माण प्रक्रिया समझाई।
    • अष्टधातु: आठ धातुओं (स्वर्ण, रजत, ताम्र, आदि) का मिश्रण, जो मूर्तियों में शास्त्रीय और सांस्कृतिक महत्व रखता है।
    • अन्य कलाकृतियाँ: पत्थर की नक्काशी, लकड़ी की मूर्तियाँ, और कांस्य शिल्प
  • प्रशंसा:
    • अधिकारियों ने परंपरागत शिल्प को जीवित रखने के लिए संस्था की सराहना की।
    • जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने कहा कि यह शिल्पशाला स्थानीय कारीगरों को रोजगार और पहचान दे रही है।
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मंडलायुक्त का आश्वासन

  • प्रशासनिक सहयोग:
    • मंडलायुक्त एस. राजलिंगम ने ज्ञान-प्रवाह की जरूरतों को प्रशासन के समक्ष रखने का निर्देश दिया।
    • आश्वासन दिया कि संस्कृति संरक्षण के कार्यों को हरसंभव सहायता मिलेगी, जैसे:
      • वित्तीय सहायता: संग्रहालय रखरखाव और शोध के लिए।
      • जागरूकता अभियान: महाकुंभ और पर्यटन के दौरान प्रचार।
      • सुरक्षा: संग्रहालय की धरोहरों के लिए अतिरिक्त व्यवस्था।
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ज्ञान-प्रवाह का परिचय

  • स्थापना और उद्देश्य:
    • ज्ञान-प्रवाह वाराणसी में सांस्कृतिक अध्ययन और शोध केंद्र के रूप में कार्यरत है।
    • मिशन: प्राचीन भारतीय ज्ञान, कला और संस्कृति का संरक्षण और प्रचार।
    • संग्रहालय: ताम्रपत्र, सिक्के, पांडुलिपियाँ और शिल्प का संग्रह।
  • पिछले कार्य:
    • 2024: भारत कला भवन (BHU) के साथ मिलकर पांडुलिपि प्रदर्शनी।
    • 2023: सारनाथ संग्रहालय के सहयोग से बौद्ध पांडुलिपियों का डिजिटलाइजेशन।
    • X पोस्ट: @GyanPravah ने महाकुंभ 2025 के लिए सांस्कृतिक प्रदर्शनी की योजना साझा की।
  • महत्व:
    • सामने घाट पर स्थिति के कारण पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए सुलभ।
    • काशी की सांस्कृतिक राजधानी की पहचान को मजबूत करता है।
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ज्ञान-प्रवाह संग्रहालय का मंडलायुक्त एस. राजलिंगम और जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार का दौरा वाराणसी की सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण के प्रति प्रशासन की प्रतिबद्धता दर्शाता है। ताम्रपत्र, प्राचीन सिक्के, पांडुलिपियाँ, यज्ञशाला और शिल्पशाला के निरीक्षण से स्पष्ट है कि यह संस्था काशी की वैदिक और सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

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