डोनाल्ड ट्रम्प की अमेरिका फर्स्ट नीति से विश्व अर्थव्यवस्था पर संकट की आशंका

मिथिलेश कुमार पाण्डेय

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने चुनाव अभियान के दौर से ही “ अमेरिका फर्स्ट “ की नीति को काफी प्रमुखता से उठाया है l अब उनका राष्ट्रपति का दूसरा कार्यकाल शुरू हो गया है, तो अपने वादे के अनुरूप ही वे अमेरिका फर्स्ट को ध्यान में रख कर न केवल नीतिगत घोषणाएँ कर रहे हैं बल्कि उन पर अमल भी करना शुरू कर दिया है l

अपने दूसरे कार्यकाल के 1 महीने के अन्दर ही लिए गए महत्वपूर्ण फैसलों, चाहे अनधिकृत प्रवासियों को अमेरिका से हटाना हो या अपने देश को ध्यान में रखकर आयात शुल्क बढ़ाना, कनाडा पर अपना दावा प्रस्तुत करना, कनाडा को दिये जानेवाले अनुदान को रोकना, मेक्सिको के साथ सम्बन्धों की पुनर्व्याख्या करना, मेक्सिको की खाड़ी को अमेरिकी खाड़ी कहना, USAID को बंद करना, रूस – उक्रेन युद्ध को समाप्त कराने के प्रयास के साथ उक्रेन से बहुमूल्य खनिज सम्पदा के लिए समझौता करना आदि उठाये गए कदमों से ट्रम्प प्रशासन ने अपना इरादा स्पष्ट कर दिया है l


अपने पहले कार्यकाल में भी डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका फर्स्ट को प्रमुखता देते हुए काफी कुछ किया था जिसका प्रभाव न केवल अमेरिका पर बल्कि पूरी दुनिया की आर्थिक, राजनितिक और सामरिक स्थिति पर पड़ा था तथा अमेरिका और चीन के मध्य “ ट्रेड वार “ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी l
वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में विश्व के समस्त देश आर्थिक रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं l

किसी एक देश के आर्थिक और व्यापार नीति का प्रभाव केवल उसी देश तक सिमित नहीं रहता बल्कि उससे जुड़े अन्य देश भी इससे प्रभावित होते हैं l अन्तेर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रभाव दृष्टिगोचर होता है l ऐसी स्थिति जब दो या अधिक देश व्यापार में एक दूसरे पर प्रतिबन्ध लगाते हैं या भारी टैरिफ लगाते हैं तो इसे “ट्रेड वार” कहा जाता है l इसका उद्देश्य अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा करना या विरोधी देश पर आर्थिक दबाव बनाना होता है l “ट्रेड वार” के कई कारण हो सकते हैं जैसे व्यापार घाटा, डंपिंग, राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनीतिक तनाव, आर्थिक प्रभुत्व की लड़ाई आदि l इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था, उपभोक्ताओं, निर्यातकों, स्थानीय उद्योगों, मुद्रा बाज़ार आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है l

डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने पहले चुनाव प्रचार के दौरान भी “अमेरिका फर्स्ट” का नारा दिया था जिसका मूल उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों की रक्षा करना, घरेलु रोजगार बढ़ाना और अमेरिका को वैश्विक व्यापार में फ़ायदा दिलाना था, भले ही इसके लिए दूसरे देशों के साथ कड़े व्यापारिक कदम उठाने पड़े l ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में चीन के खिलाफ “ट्रेड वार” शुरू करते हुए चीन से आयातित 370 अरब डॉलर मूल्य के वस्तुओं पर टैरिफ लगाया l टैरिफ दर को 10% से बढाकर 25% तक की गयी l विशेष रूप से स्टील, अल्युमिनियम, इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल और उपभोक्ता वस्तुयों पर भरी शुल्क लगाया गया l चीनी कंपनियों ( Huawei, ZTE) को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता कर अमेरिकी बाज़ार से बाहर करने की मुहीम शुरु की l

इसके परिणामस्वरूप 2019 तक चीन से अमेरिकी आयात में 16% की गिरावट आयी l अमेरिकी कंपनियों को चीन में उत्पादन शिफ्ट करना महंगा पड़ा जिससे लागत में वृद्धि हुई l चीन ने जवाबी कदम उठाते हुए अमेरिकी कृषि उत्पादों पर टैरिफ लगाया जिससे अमेरिकी किसानों को 28 अरब डॉलर के नुकसान होने की बात बताई गयी l वैश्विक सप्लाई चेन वाधित हुई जिसके कारण वैश्विक GDP में 0.8% की कमी दर्ज की गयी l

इनके अलावा NAFTA ( North America Free Trade Agreement) को USMCA( United States – Mexico – Canada Agreement ) से रिप्लेस किया और अमेरिका ने अधिक सख्त श्रम मानक, बौद्धिक सम्पदा सँरक्षण और औटोमोबाइल उत्पादन के लिए 75% स्थानीय सामग्री की अनिवार्यता जोड़ी जिसका कारण ऑटो इंडस्ट्री में मेक्सिको और कनाडा की हिस्सेदारी घट गयी, वाहनों की कीमत बढ़ गयी l बहुपक्षीए संस्थाओं जैसे पेरिस जलवायु समझौते से दुरी बनाई, WHO की फंडिंग कम कर दी l यूरोप पर व्यापारिक दबाव बनाया l यूरोप से आयातित स्टील और अल्लुमिनियम पर 25% टैरिफ लगाया, जर्मनी और फ्रांस की ऑटोमोबाइल कंपनियों को अमेरिका में फैक्ट्री लगाने का दबाव दिया, यूरोपियन यूनियन के कई उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाये l

अमेरिका में उद्योगों की वापसी के लिए “Buy Amirican, Hire American” नीति लागू की और VISA और Immegeration पर सख्ती की l ट्रम्प के इन फैसलों के कारण 2017-19 में अमेरिकी GDP वृद्धि दर 2.9% रही , 2016-20 में FDI में 30% की गिरावट दर्ज की गयी, बेरोजगारी दर जो 2017 में 4.7% थी घट कर 2019 में 3.5% रह गयी, वैश्विक व्यापार वृद्धि दर जो 2018 में 3.8% थी 2019 में 1% रह गयी l अमेरिका फर्स्ट की नीति के चलते वैश्विक मंदी बढी, वैश्विक स्तर पर अमेरिका के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठे, लम्बी अवधि में अस्थिरता और व्यापारिक तनाव बढे l

उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट है कि “अमेरिका फर्स्ट” नीति से अमेरिका को कुछ फ़ायदा हुआ लेकिन वैश्विक स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव भी देखने को मिले l डोनाल्ड ट्रम्प अपने दूसरे कार्यकाल में कुछ ज्यादा ही आक्रामक ढंग से “अमेरिका फर्स्ट” को लागू कराना चाहते हैं और ऐसा लगता है कि वैश्विक परिणामो की चिंता किये बगैर ट्रम्प प्रशासन अपनी नीतियों को आगे बढ़ने के लिए कृतसंकल्पित है l 2025 के संभावित फैसले निम्नवत है और उनके वैश्विक प्रभाव भी नीचे दिए गए है l

चीन के प्रति टैरिफ 30% या अधिक हो सकता है जिसके कारण अनुमानतः 2025-28 के दौरान चीन-अमेरिका व्यापार में 15% तक की कमी हो सकती है जो लगभग 100-120 अरब डॉलर के व्यापार को प्रभावित करेगा l

यदि 2025 में ट्रेड वार छिड़ता है तो 2026 तक वैश्विक GDP में 1.2% तक की गिरावट की सम्भावना है जो करीब 1,00,000 करोड़ डॉलर के आर्थिक नुकसान के बराबर होगा l

अमेरिकी चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के अनुसार अगले चार साल में चीन में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों को 70 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है l कंपनियों को वापस अमेरिका लाने की लागत 10% से 15% अधिक हो सकती है जिससे उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत में वृद्धि करेगा l

2025 के बाद अमेरिका में FDI में 40% तक की कमी आ सकती है और वैश्विक स्तर पर FDI में 10% की गिरावट की सम्भावना है l

यदि ट्रम्प भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाते हैं तो भारतीय निर्यात में 5% से 7% तक गिरावट हो सकती है जिसका सीधा असर 6-9 अरब डॉलर के बराबर होगा l IT कंपनियों की आय में 8% तक की कमी की सम्भावना है और भारत से दवा का निर्यात 10% तक घट सकता है l

यूरोपिय देशो पर 30% टैरिफ का असर 20-25 अरब डॉलर के निर्यात पर पड़ेगा l जापान और दक्षिण कोरिया के साथ तनाव बढ़ने पर एशियाई निर्यात में 3% से 5% तक की कमी का अंदेशा रहेगा l

2025-28 में संभावित नए ट्रेड वार के कारण युवान और यूरो में 8% से 12% तक की गिरावट का अनुमान है l

2025 में यदि ट्रम्प प्रशासन चीन की तकनिकी कंपनियों पर प्रतिबन्ध लगाती है तो वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार में 10% तक की अस्थिरता आ सकती है l

अमेरिका और चीन के बीच AI और क्लाउड कंप्यूटिंग में होड़ से दोनों देशो में टेक (टेक्नोलॉजी) निवेश में 15% तक गिरावट संभव है l

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में उथल पुथल की सम्भावना बनी रहेगी जिसका असर दुनिया के स्टॉक मार्केट में भी रहेगा l

यह कहा जा सकता है कि 2025 में डोनाल्ड ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट 2.0” नीति वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े भूचाल की तरह साबीत हो सकता है l कुल मिलाकर “अमेरिका फर्स्ट 2.0” नीति न सिर्फ अमेरिका बल्कि वैश्विक व्यापार और निवेश के माहौल को अस्थिरता और गहरे संकट में डाल सकती है l

(लेखक पूर्व सहायक महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा एवं आर्थिक विश्लेषक हैं )

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