नई दिल्ली I केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को लोकसभा में सड़क हादसों पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि सड़क दुर्घटनाओं को लेकर भारत का रिकॉर्ड इतना खराब है कि उन्हें अक्सर विश्व सम्मेलनों में मुंह छिपाना पड़ता है। गडकरी ने यह भी बताया कि उनके मंत्रालय के तमाम प्रयासों के बावजूद सड़क हादसों में कमी नहीं आई, बल्कि इसमें वृद्धि हो रही है।
गडकरी ने कहा कि जब तक समाज मदद नहीं करेगा, मानवीय व्यवहार नहीं बदलेगा और कानून का डर नहीं होगा, तब तक सड़क हादसों पर अंकुश नहीं लगेगा। उन्होंने कहा कि हर साल 1.7 लाख से अधिक लोग सड़क हादसों में मरते हैं, जो अन्य किसी कारण से नहीं मरते। गडकरी ने यह भी कहा कि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, सड़क हादसों के शिकार 30 प्रतिशत लोगों की मौत जीवन रक्षक उपचार नहीं मिल पाने के कारण होती है। इसे ध्यान में रखते हुए, सरकार ने उत्तर प्रदेश में एक पायलट परियोजना शुरू की है, जिसके तहत सड़क दुर्घटना पीड़ितों के उपचार के लिए कैशलैस योजना लाई गई है।
गडकरी ने भारत में ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने की प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत में ड्राइविंग लाइसेंस पाने की प्रक्रिया इतनी आसान है, जबकि कई देशों में यह बहुत सख्त होती है। उन्होंने बताया कि सरकार इस प्रणाली में सुधार कर रही है।
सड़क हादसों में युवा वर्ग की भूमिका
गडकरी ने बताया कि सड़क हादसों में मरने वालों में 60 प्रतिशत लोग 18-34 आयु वर्ग के होते हैं। इनमें से कई लोग बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चलाते हैं और कुछ लोग लाल बत्ती का उल्लंघन करते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ता है।
राज्यवार सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े
गडकरी ने चौंकाने वाला आंकड़ा प्रस्तुत किया और बताया कि सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। यहां हर साल 23,000 से अधिक लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं, जो कुल मौतों का 13.7 प्रतिशत है। तमिलनाडु में 18,000 से अधिक, महाराष्ट्र में 15,000 से अधिक और मध्य प्रदेश में 13,000 से अधिक मौतें होती हैं। दिल्ली में शहरों के हिसाब से सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जहां 1,400 से अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी सांसदों से कहा कि वे सड़क हादसों को रोकने के लिए प्रयास करें और समाज को जागृत करने का काम करें।