Dumping in World Trade: विश्व कारोबार में Dumping एक गम्भीर समस्या

वैश्वीकरण के दौर में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (World Trade) का महत्व बढ़ गया है l दुनिया एक वैश्विक गाँव (Global Village) की तरह हो गया है जिसमें एक देश के उत्पाद आसानी से दूसरे देशों में बेचे जा सकते हैं l व्यापारिक घराने और कंपनियां नए बाजार की तलाश में पूरी दुनिया पर नजर रखते हैं और व्यापार संवर्धन के लिए प्रयासरत रहते हैं l

विभिन्न सरकारें भी अपने व्यापार (Trade) नीति को इस तरह से निर्धारित करते हैं कि उनके देश को लाभ की स्थिति मिले l ऐसे में कंपनियां व्यापार वृद्धि के लिए अनैतिक तरीके भी अपनाती हैं और कुछ देश और कंपनियां प्रतिस्पर्धा को कमजोर करने और बाजार पर एकाधिकार के लिए अपने उत्पादों को दूसरे देश में अत्यधिक कम दामों ( कभी कभी लागत से भी कम दाम पर ) बेचती हैं l व्यापार के दूरगामी लाभ के लिए तत्कालिक घाटा उठाकर दूसरे देशों में बहुत कम दामों पर सामान बेचने की प्रक्रिया को डम्पिंग (Dumping ) कहते हैं l

Dumping in World Trade: विश्व कारोबार में Dumping एक गम्भीर समस्या Dumping in World Trade: विश्व कारोबार में Dumping एक गम्भीर समस्या

डम्पिंग वैश्विक Trade में एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है जिसने विकासशील अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया है l इसने व्यापारिक नैतिकता को भी कठघरे में खड़ा करने का काम किया है l वर्तमान समय में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की MAGA ( Make America Great Again) नीति के तहत दागे गए टैरिफ बम के कारण पूरी दुनिया ट्रैड वार के मुहाने पर खड़ी है और संभवतः सामरिक युद्ध की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है l जब समूचे विश्व में व्यापारिक अनिश्चयता का दौर हो तो डम्पिंग की संभावना बढ़ जाती है l

आइए हमलोग डम्पिंग के बारे में संक्षेप में कुछ जानने का प्रयास करते हैं l
डम्पिंग का शब्दार्थ होता है “ फेंकना “ या “ किसी अनुपयुक्त स्थान पर डाल कर अवांछित वस्तु से पिंड छुड़ाना” l यदि व्यापारिक (Trade) भाषा में कहना हो तो अपने उत्पादन लागत से भी कम कीमत पर दूसरे बाजार में वस्तु को बेचने को डम्पिंग कहते हैं l यह एक अनैतिक और असामान्य व्यापारिक नीति है जो विशेष रूप से प्रतियोगिता को खत्म करके एकाधिकार स्थापित करने के लिए प्रयोग मे लाया जाता है l डम्पिंग 3 प्रकार के होते हैं :

स्थायी डम्पिंग : लंबे समय तक कम कीमत पर निर्यात करना

शिकारी डम्पिंग : पहले कम दाम पर निर्यात करना और फिर प्रतियोगिता खत्म करके दाम बढ़ा देना

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आकस्मिक डम्पिंग : अधिक स्टॉक को जल्दी बेचने के लिए निर्यात करना

Dumping की शुरुआत 19 वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में हुई जब विकसित देशों में औद्योगिक क्रांति के दौरान उत्पादन घरेलू खपत की तुलना में बहुत ज्यादा हुआ l खपत से अधिक उत्पादन को बेचने के लिए विदेशी बाजार में उतारा गया और लागत वसूलने के उद्देश्य से कम कीमतों पर बेचा जाने लगा ताकि भंडारण की समस्या से बचा जा सके और कम से कम उत्पादन लागत की वसूली हो सके l

20 वीं शताब्दी के शुरुआत में जर्मनी, ब्रिटेन, फ़्रांस, अमेरिका जैसे देशों पर डम्पिंग के आरोप लगे थे l इससे बचने के लिए देशों ने एंटी डम्पिंग कानून बनाए और विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) भी डम्पिंग की निगरानी के लिए एंटी डम्पिंग अग्रीमेंट लागू किया l इस समझौते के तहत सदस्य देशों को यह अधिकार दिया गया है कि उचित जांच के बाद वे डम्पिंग के विरुद्ध आवश्यक कदम उठा सकते हैं, जैसे :

  • एंटी डम्पिंग ड्यूटी लगाना
  • आयात प्रतिबंध
  • जांच और निगरानी प्रणाली विकसित करना

विश्व Trade संगठन यह सुनिश्चित करता है कि एंटी डम्पिंग अग्रीमन्ट का उपयोग भेदभावपूर्ण या मनमानी पूर्वक न हो l इसके अंतर्गत कदम उठाने के लिए ठोस साक्ष्य के आधार पर औपचारिक जांच पूरी होनी चाहिए l

भारत जैसे विकासशील देशों मे डम्पिंग किए जाने की संभावना ज्यादा होती है, क्योंकि इन देशों मे घरेलू उद्योग तकनीकी और वित्तीय रूप से कमजोर होते हैं l भारत में चीन, कोरिया, अमेरिका, थायलैंड यदि देशों से डम्पिंग की शिकायतें ज्यादा आती हैं l स्टील और लौह उत्पाद, एलेक्ट्रॉनिक सामान, दवा और रसायन, सरैमिक और टाइल्स, खिलौने, मोबाईल उपकरण आदि क्षेत्रों मे डम्पिंग की शिकायत ज्यादा रही है l भारत सरकार ने डम्पिंग की रोकथाम के लिए Directorate General Of Trade Remedies ( DGTR) की स्थापना की है, जोकि डम्पिंग की जांच करता है और जरूरत के हिसाब से एंटी डम्पिंग ड्यूटी की सिफारिश करता है l

डम्पिंग के दुष्परिणाम : जिस देश में डम्पिंग की जाती है उसकी अर्थव्यवस्था पर इसका व्यापक दुष्परिणाम होता है l
घरेलू उद्योगों को भारी नुकसान होता है l सस्ते विदेशी उत्पादों के कारण घरेलू कंपनियां अपना माल नहीं बेच पाती हैं जिससे इन्हे घाटा होता है और कुछ उद्योग, कल कारखाने बंद हो जाते हैं l

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बेरोजगारी में वृद्धि : उद्योगों के बंद होने से श्रमिकों की छटनी होती है तथा भविष्य में रोजगार सृजन की संभावना बहुत क्षीण हो जाती है l

राजस्व में कमी : घरेलू कंपनियों के लाभ कम होने से सरकार को कम कर मिलता है l उत्पादन कम होने से सरकार को मिलने वाला अप्रत्यक्ष कर भी कम हो जाता है l कम राजस्व मिलने से सरकार की विकासोन्मुख योजनाएं तथा अन्य जनहित कार्यक्रम रुक जाते हैं l

बाजार पर विदेशी नियंत्रण : जब विदेशी कंपनियां प्रतिस्पर्धा खत्म कर देती हैं तो फिर अपने सामानों की कीमत मनमाने ढंग से बढ़ा देती है और उपभोक्ताओं का शोषण करती हैं l

दीर्घकालिक निर्भरता : स्थानीय उद्योगों के बंद होने और उत्पादन घटने से देश आयात पर निर्भर हो जाता है और विदेशी मुद्रा भंडार के ऊपर दबाव बना रहता है l देश हमेशा व्यापार घाटे की समस्या से ग्रसित रहता है l

आज डम्पिंग एक अंतर्राष्ट्रीय रणनीतिक हथियार बन गया है l विशेष रूप से चीन डम्पिंग के लिय कुख्यात रहा है l 2001 में चीन विश्व Trade संगठन का सदस्य बना l स्टील, सोलर पैनल, इलेक्ट्रानिक्स, खिलौने, कपड़े आदि का उत्पादन चीन ने बड़े पैमाने पर किया और सरकारी सब्सिडी के कारण विश्व बाजार में कीमतों को नीचे गिरा दिया l अमेरिका और यूरोपीय देश इससे बुरी तरह प्रभावित हुए l

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अमेरिका ने चीन पर डम्पिंग का आरोप लगाते हुए 2018 में चीनी सामानों के आयात पर टैरिफ लगाना शुरू कर दिया l जवाब में चीन ने भी टैरीफ लगाए जिससे Trade वार शुरू हुआ जो पूरी दुनिया पर प्रतिकूल प्रभाव छोड़ने में सफल रहा l वैश्विक बाजार में अस्थिरता बढ़ी और अन्तर्राष्ट्रीय Trade संबंध तनावपूर्ण हो गए l भारत भी इस समस्या से जूझ रहा था और 100 से अधिक एंटी डम्पिंग ड्यूटी चीन पर लगायी l ध्यान देने की बात है कि सन 2000 में एंटी डम्पिंग केस लगभग 20 थे जो चीन की व्यापारिक आक्रामकता के फलस्वरूप 2018-2020 के कालखंड मे 270 तक पहुँच गई l

डोनाल्ड ट्रम्प की आक्रामक और संरक्षणवादी Trade नीति वर्तमान समय में विश्व व्यापार में जबरदस्त अस्थिरता और अनिश्चयता का माहौल बना रखा है जो कि वैश्वीकरण के सामान्य सिद्धांत की परिकल्पना के विपरीत प्रतीत होती है l अन्य देशों द्वारा भी संरक्षणवादी कदम उठाए जाने की प्रबल संभावना है l अन्य देश भी अमेरिका पर टैरीफ लगा रहे हैं या लगाएंगे जो विश्व व्यापार को निश्चित ही प्रभावित करेंगे l इस समय हर एक देश Trade के पारंपरिक बाजार के अलावा भी अन्य बाजार की तलाश करेंगे जिससे डम्पिंग की संभावना बढ़ सकती है l इस समय विकासशील देशों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत होगी l

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