युद्ध का अर्थशास्त्र (Economics of War)

मिथिलेश कुमार पाण्डेय (लेखक आर्थिक विश्लेषक एवं पूर्व सहायक महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा हैं )

सामान्यतः युद्ध (War) को ऐतिहासिक और राजनीतिक नजरिए से देखा जाता है और युद्ध के परिणाम को सामरिक शक्ति की स्थापना के रूप में परिभाषित किया जाता है l यूं तो युद्ध में कोई विजेता नहीं होता है फिर भी सामरिक रूप से मजबूत देश का नुकसान कम और दूसरे का ज्यादा होता है और कम नुकसान वाले देश को दुनिया विजेता मान लेती है परंतु यह सच है कि दोनों पक्षों का नुकसान होता जरूर है l युद्ध का आर्थिक पक्ष भी काफी महत्वपूर्ण और पेचीदा है l

War के आर्थिक पहलू को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि हम यह जाने कि इसका राष्ट्रीय बजट, उद्योग, श्रम बाजार, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, मूलभूत सुविधाएं, नागरिकों के स्वास्थ्य और अन्य दीर्घकालिक विकास आदि पर कैसा और कितना दुसप्रभाव पड़ता है l युद्ध के दौरान होने वाले खर्चे और युद्ध के उपरांत पुनर्निर्माण में होने वाले खर्चों और प्रभावों के माध्यम से हम लोग इसे समझने का प्रयास करते हैं l

निम्नलिखित विंदुओं को केंद्र में रखकर युद्ध के अर्थशास्त्र को आसानी से समझा जासकता है :

  1. युद्ध का आर्थिक लागत ( प्रत्यक्ष और परोक्ष )
  2. युद्ध का अवसर लागत
  3. युद्ध के लिए वित्त ( राजकोषीय और मौद्रिक लागत ) कर, कर्ज, मुद्रास्फीति
  4. मौलिक ढांचागत और मानव संपदा के पुनर्निर्माण पर प्रभाव
  5. व्यापार ( स्वदेशी और अंतर्राष्ट्रीय ) और निवेश पर प्रभाव
  6. युद्धोपरांत का पुनर्निर्माण
  7. सेना पर गैरसमानुपातिक व्यय और युद्ध की पुनरावृत्ति की संभावना

युद्ध (War) का आर्थिक लागत ( प्रत्यक्ष और परोक्ष) : युद्ध के दौरान सर्वप्रथम सेना के तीनों अंगों पर होने वाला सीधा खर्च सामने आता है जो हथियार, गोला बारूद, परिवहन, रखरखाव, वेतन भत्ता आदि पर होता है l

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उदाहरण के लिए : ब्राउन यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार 2001 – 2021 के दौरान अफगानिस्तान, इराक़ में सैन्य ऑपरेशन के दौरान अमेरिका ने लगभग 8 लाख करोड़ डालर खर्च किए थे l अमेरिका का रक्षा बजट करीब 90,000 करोड़ डॉलर हो गया जो कि उनके सकल घरेलू उत्पाद का 3.5% है l
2011 से 2016 के बीच सीरिया के जीडीपी में 60% की गिरावट दर्ज की गई और विश्व बैंक के डाटा ( 2017) के अनुसार सीरिया को लगभग 12,000 करोड़ डॉलर के समतुल्य ढांचागत नुकसान हुआ l उक्रेन के साथ चल रहे युद्ध के लिए रूस ने लगभग 13000 करोड़ डॉलर सैन्य खर्चे का प्रावधान किया है l उक्रेन ने लगभग 4000 करोड़ डालर अबतक खर्च किए हैं l इस्राइल हमास युद्ध के कारण इस्राइल की अर्थव्यवस्था 2023 में 21% सिकुड़ गई, व्यापार और निवेश में करीब 68% की कमी हुई l प्रथम विश्व युद्ध ( 1914 – 1918) के दौरान लगभग 20,800 करोड़ डॉलर खर्च हुए थे जो आज के मूल्य के हिसाब से लगभग 5,00,000 करोड़ डॉलर होता है l इसके दौरान लगभग 1 करोड़ सैन्य कर्मी और 60 लाख से ज्यादा नागरिक मारे गए थे l इनके अलावा 2 करोड़ से ज्यादा लोग घायल हुए थे l

द्वितीय विश्व युद्ध ( 1939 – 1945 ) का खर्च लगभग 1,10,000 करोड़ डॉलर था जो कि आज के हिसाब से लगभग 15-20 लाख करोड़ डॉलर के बराबर होगा l 2 करोड़ से ज्यादा सैनिक तथा 4.5 करोड़ से ज्यादा नागरिक मारे गए थे l द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान का 40% शहरी क्षेत्र तबाह हो गया था, जापान के 30% से ज्यादा भवन नष्ट हो गए थे l भारत और पाकिस्तान के बीच हुए वर्तमान सैन्य कार्यवाई के खर्चे के बारे में आधिकारिक आँकड़े उपलबद्ध नहीं हैं l

युद्ध का अवसर लागत :
युद्ध में खर्च किया गया प्रत्येक रुपया स्वास्थ्य, शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं की कीमत पर होता है l विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वे के अनुसार वैश्विक सैन्य खर्चे ( 2 लाख करोड़ डॉलर 2021 में ) के मात्र 10% रकम से वैश्विक टीकाकरण और अत्यंत गरीबी को दूर करने का काम पूरा किया जा सकता है l विश्व बैंक के 2023 के रिपोर्ट के अनुसार रूस – उक्रेन युद्ध में उक्रेन को लगभग 40,000 करोड़ डॉलर से ज्यादा का बुनियादी ढांचे की क्षति हो चुकी है l

युद्ध के लिए वित्त
युद्ध के लिए वित्त की व्यवस्था करने के लिए सरकार को कर्ज लेने की जरूरत पड़ती है। कर अधिभार लगाना पड़ता है जिससे राष्ट्रीय कर्ज में वृद्धि होती है और कर में वृद्धि के कारण जनता को तकलीफ होती है। देश में मुद्रास्फीति के बढ़ने से महंगाई बढ़ती है जो आम नागरिकों के लिए काफी कष्टप्रद होता है l द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने 18,600 करोड़ डॉलर बॉन्ड के जरिए जुटाए थे l सैन्य खर्चे के लिए बॉन्ड के माध्यम से धन जुटाने के कारण अमेरिका का राष्ट्रीय कर्ज जो सन 2000 में 5,70,000 करोड़ डॉलर था वह सन 2022 में बढ़कर 30,00,000 करोड़ डॉलर हो गया था l प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत बेलगाम मुद्रास्फीति के कारण जर्मनी की मुद्रा लगभग मूल्यहीन हो गई थी l बैंक ऑफ इस्राइल के अनुमान के अनुसार युद्ध का खर्च 1,450 करोड़ डॉलर के अमेरिकी सहायता के अतिरिक्त 2025 तक लगभग 6700 करोड़ डॉलर होगा l

मौलिक ढांचा और मानव संपदा के पुनर्निर्माण
विश्व बैंक के 2016 के रिपोर्ट के अनुसार इराक में युद्ध के दौरान लगभग 15,000 करोड़ डॉलर के समतुल्य इन्फ्रस्ट्रक्चर का नुकसान हुआ था l सीरिया में गृह युद्ध के कारण लगभग 1,20,00,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए थे l रूस के आक्रमण के कारण उक्रेन विद्युत उत्पादन और वितरण संसाधन को लगभग 1000 करोड़ डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है जिससे करोड़ों लोगों की विद्युत आपूर्ति वधित हो गई l मार्च 2024 तक फिलीस्तिनी क्षेत्र में बेरोजगारी में 57% की वृद्धि होने के कारण 5,00,000 से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए l गाजा की अर्थव्यवस्था 80% सिकुड़ गई l

व्यापार और निवेश पर प्रभाव
युद्ध के कारण सम्वन्धित देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कम हो जाता है और मुद्रा भंडार में कमी हो जाती है क्योंकि अशांत क्षेत्र से निवेशक दूर होने लगते हैं l विश्व बैंक के आँकड़े के अनुसार युद्ध के कारण उक्रेन का निर्यात 35% कम हो गया जिससे विश्व में खाद्यान के मूल्य में अस्थिरता का माहौल बन गया l अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमान के अनुसार वैश्विक जीडीपी में सन 2022 में लगभग 0.5% की गिरावट दर्ज केवल युद्धजनीत परिस्थितियों के कारण देखी गई l युद्ध में शामिल देशों पर लगने वाले आर्थिक प्रतिबंधों के कारण भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कम हो जाता है जिसका प्रभाव देश के आंतरिक व्यापार पर भी पड़ता है l रूस उक्रेन युद्ध के कारण सन 2022 में रूस से विदेशी निवेशकों ने 9,900 करोड़ डॉलर से ज्यादा वापस ले लिए जिसके कारण रूस की मुद्रा रूबल का अवमूल्यन हुआ और आयात महंगा होने से महँगायी बढ़ी l युद्ध क्षेत्र में पर्यटन उद्योग बहुत कमजोर हो जाता है l इस्राइल के पर्यटन में जनवरी 2024 में 80% की गिरावट देखी गई l

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युद्धोपरांत पुनर्निर्माण

युद्ध आर्थिक तौर पर विनाशकारी होते हैं और विनाश के बाद पुनर्निर्माण एक सामान्य प्रक्रिया है जिसमें तटस्थ देश और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं मदद के लिए आगे आते हैं और आर्थिक मदद उपलबद्ध करते हैं जिससे आर्थिक गतिविधियां तेजी से होती हैं l जैसे द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत मार्शल प्लान के अंतर्गत पश्चिमी यूरोप में उस समय 1,300 करोड़ डॉलर ( आज के हिसाब से 15,000 करोड़ डॉलर ) दिया गया था जिससे पुनर्निर्माण की प्रक्रिया तेज हुई और आर्थिक विकास हुआ l विश्व युद्ध में हारे हुए दोनों देश जापान और जर्मनी ने योजनवद्ध निवेश और तकनीकी नवोन्मेष के सहारे अपने आप को आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया l यह सच है कि आर्थिक पुनर्निर्माण की प्रक्रिया सार्वभौमिक नहीं रही l अफगानिस्तान के मामले में कहा जा सकता है कि 14,500 करोड़ डॉलर का अनुदान पाने के बावजूद वहाँ भ्रष्टाचार के कारण विकास नहीं हुआ और अनुदान पर आश्रित रहने की प्रवृति बनी रही l

सेना पर गैरसमानुपतिक व्यय और युद्ध की पुनरावृत्ति की संभावना
युद्ध के कारण विभिन्न देश सुरक्षा के नाम पर अपना सैन्य व्यय बढ़ाने लगते हैं और कुछ देश हथियारों, गोला बारूद आदि का उत्पादन बढ़ाने लगते हैं और सैन्य सामग्री के लिए नए बाजार की तलाश में अग्रसर हो जाते हैं l स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के सर्वे के अनुसार सन 2022 में हथियार व्यापार लगभग 11,800 करोड़ डॉलर था l

युद्ध केवल एक सामरिक और रणनीतिक घटना नहीं है बल्कि यह एक बहुआयामी आर्थिक घटनाक्रम है जिसका ज्यादा प्रभाव विध्वंसात्मक है l यह सम्बद्ध देशों के ऊपर दीर्घकालिक असर छोड़ता है जिससे ऊपर से नीचे तक, बृहद से सूक्ष्म स्तर तक प्रभाव देखा जा सकता है l युद्ध में किया जानेवाला प्रत्येक खर्च मानवीय मूल्यों की कीमत पर होता है l
यह सच है कि संसार में कभी कभी युद्ध अपरिहार्य हो जाता है जब किसी देश को अपनी संप्रभुता, आर्थिक हितों, भौगोलिक सीमाओं की रक्षा के लिए युद्ध के मार्ग पर जाना पड़ता है l परंतु ज्यादातर युद्ध को आपसी बातचीत से टाला जा सकता है l थोड़ी सी समझदारी से बड़े विनाश से बचा जा सकता है l केवल विश्वयुद्धों में हुए खर्चे से समस्त दुनिया को कुपोषण, अशिक्षा और निर्धनता से बचाया जा सकता था l

एक ओर जहां दुनिया के कुछ हिस्से में घनघोर गरीबी है, बच्चे कुपोषित हैं, अशिक्षा व्याप्त है, स्वास्थ्य सेवा दुर्लभ है, नवजात शिशु की मृत्यु चिकित्सकीय देखरेख की कमी के कारण हो रही है, वहाँ पर युद्ध की अग्नि में लाखों करोड़ डॉलर स्वाहा हो रहे हैं l दुनिया ने परमाणु हथियार की विभीषिका को देखा है जिससे जापान न केवल युद्ध के समय बल्कि उसके दशकों बाद तक अपने नागरिकों को तड़पते देखा है l जापान के विनाश को केवल याद करने से रोंगटे खड़े हो जाते है l केवल वीडियो गेम में युद्ध के दृश्य देखना रोमांचकारी लगता है l यथार्थ में सैनिकों और आम नागरिकों के जानमाल की क्षति देखकर मानवता न केवल रोती है बल्कि शर्मसार भी होती है l लाखों लोग बेघर, बेसहारा बनकर भटकने को मजबूर हो जाते है और अपना जीवन शरणार्थी शिविरों में बिताने के लिए अभिशापित हो जाते है l

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किसी भी युद्ध का रुकना अलग अलग राजनीतिक नजरिए से अलग अलग संदेश दे सकता है परंतु मानवीय और आर्थिक दृष्टिकोण से यह कहा जा सकता है कि युद्ध को जितनी जल्दी रोका जाय उतना ही अच्छा है l युद्ध हो ही नहीं, यह तो सबसे अच्छी बात है l दुनियाके समस्त प्रबुद्ध और शक्तिशाली नेताओं से मानवता की उम्मीद करती है कि दुनिया को युद्ध की विभीषिका से बचाएं और अपने आने वाली पीढ़ी को एक विकसित, समृद्ध, सुंदर और शांत समाज प्रदान करें।

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