वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में बुधवार को काशी: संस्कृति, परंपरा एवं परिवर्तन विषयक पंद्रह दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। इस कार्यशाला का आयोजन काशी कथा न्यास, भारत अध्ययन केंद्र, बीएचयू, और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य वक्ता हनुमन्निवास, अयोध्या धाम के पीठाधीश्वर आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि ज्ञान ही उपाधियों का निरसन कर सकता है।
काशी का स्वभाव ही है आनंद – आचार्य शरण
कार्यशाला को संबोधित करते हुए आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि काशी को एक ही शब्द में परिभाषित किया जा सकता है, और वह है – आनंद। उन्होंने कहा कि काशी की परंपरा विद्वत्ता की है, जबकि इसकी संस्कृति समन्वय पर आधारित है। उन्होंने कहा,”दुनिया भर के विषाद के विषय यहाँ आनंद में बदल जाते हैं। काशी वेदमूलक नगरी है, और इसका स्वभाव ही निरंजन (निर्मल) है।”
काशी में हो रहे सांस्कृतिक परिवर्तन पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इन परिवर्तनों का मूल कारण बाजार है।उन्होंने काशी के सुधिजनों से ग्राह्य परिवर्तन को स्वीकार करने और अवांछनीय बदलावों को अस्वीकार करने की अंतरदृष्टि विकसित करने का आह्वान किया।
संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के प्रयास तेज करने की जरूरत – प्रो. सिद्धनाथ उपाध्याय
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता आईआईटी बीएचयू के पूर्व निदेशक प्रो. सिद्धनाथ उपाध्याय ने की। उन्होंने कहा कि काशी ने हमेशा से पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया है, और इसकी संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के प्रयासों को और तेज करने की जरूरत है।
कार्यक्रम में विद्वानों की रही उपस्थिति
उद्घाटन समारोह में भारत अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो. सदाशिव द्विवेदी ने अतिथियों का स्वागत किया, जबकि शुभकामना संदेश इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, वाराणसी केंद्र के प्रमुख डॉ. अभिजीत दीक्षित ने दिया।
इस अवसर पर दृश्य कला संकाय की संकाय प्रमुख प्रो. उत्तमा दीक्षित के निर्देशन में तैयार काष्ठजिह्वा स्वामी के तैल चित्र का लोकार्पण भी किया गया।
काशी कथा न्यास के कार्यों पर भी हुआ विमर्श
कार्यशाला के विषय प्रवर्तन के तहत काशी कथा न्यास के अध्यक्ष व आईआईटी बीएचयू के प्रो. पी. के. मिश्र ने न्यास द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुजीत चौबे ने किया, जबकि आयोजन सचिव डॉ. अमित कुमार पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यशाला का संयोजन काशी कथा न्यास के सचिव डॉ. अवधेश दीक्षित ने किया।
देशभर के विद्वानों की उपस्थिति
इस अवसर पर उमाशंकर गुप्ता, प्रो. राणा पी. बी. सिंह, प्रो. अवधेश प्रधान, डॉ. प्रभाकर सिंह, डॉ. हरेंद्र राय, डॉ. त्रिलोचन प्रधान, डॉ. रजनीकांत त्रिपाठी, डॉ. सुनील जैन, प्रकाश पांडेय, डॉ. निरंजन श्रीवास्तव, डॉ. महेंद्र कुशवाहा, अभिषेक यादव, मृत्युंजय मालवीय, अभिषेक मिश्र, बलराम यादव सहित कई विद्वान और शोधार्थी उपस्थित रहे।
25 मार्च तक चलेगी कार्यशाला
यह कार्यशाला 5 से 25 मार्च तक चलेगी, जिसमें देशभर के विद्वान, शोधार्थी और संस्कृति से जुड़े विशेषज्ञ शामिल होंगे। इस दौरान काशी की संस्कृति, परंपरा और परिवर्तन पर गहन विमर्श किया जाएगा।