वॉशिंगटन I अमेरिका में एच-1बी वीजा नीति को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। इस नीति के तहत उन बच्चों को 21 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद अमेरिका छोड़ना होगा, जिनके माता-पिता को ग्रीन कार्ड नहीं मिला है। इस नीति की आलोचना अमेरिकी संसद की न्यायिक समिति के वरिष्ठ डेमोक्रेटिक सदस्य जेरोल्ड नैडलर ने की है। उन्होंने इसे बच्चों और उच्च-कुशल आप्रवासियों के लिए अनुचित बताया।
क्या है एच-1बी वीजा नीति?
एच-1बी वीजा एक गैर-आव्रजक वीजा है, जो अमेरिकी कंपनियों को कुशल विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है। यह वीजा हर साल हजारों भारतीय और चीनी कर्मचारियों के लिए अमेरिका में नौकरी के रास्ते खोलता है। लेकिन ट्रंप सरकार ने इस वीजा में नए नियम जोड़े हैं। यदि एच-1बी वीजा धारक माता-पिता को ग्रीन कार्ड नहीं मिला है, तो उनके बच्चे 21 साल की उम्र पूरी होने के बाद अमेरिका में नहीं रह सकते। उन्हें अमेरिका में रहने के लिए अलग से आवेदन करना होगा।
जेरोल्ड नैडलर की प्रतिक्रिया
जेरोल्ड नैडलर ने इस नीति की आलोचना करते हुए कहा कि ग्रीन कार्ड प्रक्रिया में बड़ा बैकलॉग है, जिससे एच-1बी धारकों को दशकों तक इंतजार करना पड़ता है। उन्होंने कहा, “जो बच्चे अपना पूरा जीवन अमेरिका में बिता चुके हैं, उन्हें 21 साल की उम्र के बाद ऐसे देश भेजना गलत है, जिन्हें वे नहीं जानते और जहां उनका कोई समर्थन नहीं है।”
जन्मसिद्ध नागरिकता को खत्म करने पर विवाद
नैडलर ने ट्रंप सरकार द्वारा जन्मसिद्ध नागरिकता को खत्म करने के फैसले की भी निंदा की। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अमेरिका में जन्मे बच्चों को ऐसे देशों में भेजना सही है, जहां उनका कोई नेटवर्क या पहचान नहीं है।
CATO संस्थान की चेतावनी
CATO संस्थान के डेविड बियर ने भी इस नीति की आलोचना करते हुए कहा कि यह न केवल कानूनी आप्रवासन को हतोत्साहित करती है, बल्कि देश को कमजोर बनाती है। उन्होंने इसे उच्च-कुशल आप्रवासियों के लिए एक नकारात्मक कदम बताया।
समाज और नीति विशेषज्ञों का विरोध
विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति से न केवल अमेरिका में प्रतिभाशाली लोगों की कमी हो सकती है, बल्कि यह उन परिवारों के लिए भी मुश्किलें खड़ी करेगी, जो दशकों से अमेरिका में रह रहे हैं।