India-US Relations: भारत – अमेरिका संबंध; एक सिंहावलोकन

मिथिलेश कुमार पाण्डेय (लेखक आर्थिक विश्लेषक एवं पूर्व सहायक महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा हैं )

India-US Relations: किन्हीं भी दो देशों के संबंध को परस्पर व्यापारिक, कूटनीतिक, राजनयिक, सांस्कृतिक, सामरिक, सांस्कृतिक आदि विंदुओं के सापेक्ष देखा जाता है और तदनुसार संबंधों का मूल्यांकन करके वैश्विक स्तर पर राय बनाई जाती है l उपरोक्त सभी पैमानों पर व्यापारिक संबंध सबसे ज्यादा व्यापक है क्योंकि यह दोनों देशों की आर्थिकी से गहराई से जुड़ा होता है और जनमानस के ऊपर तत्काल गहरा प्रभाव डालने में सफल होता है l अतः जब भी दो देशों के संबंध की बात होती है तो व्यापारिक संबंध सबसे ऊपर स्थान पाता है क्योंकि इसमें शाश्वतता होती है और यह दीर्घकालिक परिणाम दायक होता है l

भारत और अमेरिका के संबंध (India-US Relations) को भी इसी सामान्य पैमाने से देखना होगा l 15 अगस्त 1947 के पहले भारत ब्रिटेन का उपनिवेश था और अंतर्राष्ट्रीय संबंध ब्रिटेन के द्वारा ही निर्धारित किए जाते थे l सामान्य तौर पर ब्रिटेन अपने सभी उपनिवेशों को कच्चे माल के श्रोत और अपने उत्पादों के बाजार के रूप में इस्तेमाल करते थे l अतः हमलोग भारत और अमेरिका के संबंधों को भारत के स्वतंत्रता के उपरांत से देखेंगे और उसका मूल्यांकन करने का प्रयास करेंगे l

1947- 1960 के दौरान दोनों देशों (India-US) के बीच सैद्धांतिक दूरी थी और सावधानीपूर्वक संबंधों को आगे बढ़ाने का प्रयास हो रहा था l भारत की आजादी के बाद अमेरिका ने इसे एक देश के रूप में मान्यता देकर कूटनीतिक संबंध स्थापित किया l भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू गुटनिरपेक्षता के प्रबल समर्थक थे और शीतयुद्ध के दौरान किसी समूह में शामिल होने के वजाय समदुरस्थ भाव से अपने देश को मजबूती देने का प्रयास कर रहे थे जबकि अमेरिका की चाहत थी कि भारत साम्यवादी चीन के विकल्प के रूप में एक प्रजातान्त्रिक शक्ति की तरह उभरे l

अपने समाजवादी आर्थिक विचारों और नीति के कारण भारत सोवियत संघ के ज्यादा नजदीक होता गया जिससे अमेरिका ने भारत से दूरी बनाकर पाकिस्तान के ज्यादा नजदीक होता गया l इस दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ न केवल एक मजबूत संबंध स्थापित किया बल्कि पाकिस्तान को सैन्य तथा आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया l 1950 – 60 के बीच विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन और केन्द्रीय संधि संगठन के माध्यम से पाकिस्तान को अमेरिका ने आर्थिक मदद पहुंचाई l आपसी सैद्धांतिक मतभेदों के बावजूद अमेरिका ने भारत को खाद्यान सहायता जारी रखा जो उस समय भारत में भुखमरी की समस्या को कम करने के लिए अत्यंत आवश्यक था l इसके अतिरिक्त कृषि और उद्योग को बढ़ावा देने में भी अमेरिकी सहायता मिलती रही l

भारत के दूसरे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी अपने पूर्ववर्ती की तरह ही गुटनिरपेक्षता के पक्ष में रहे परंतु 1965 के पाक युद्ध के दौरान उनका झुकाव अमेरिका की ओर हो रहा था l शास्त्री जी का कार्यकाल छोटा रहा फलतः उसमें कुछ विशेष नहीं हो सका l लगभग 1980 तक भारत की संरक्षणवादी सोच, समाजवादी आर्थिक परिकल्पना, आयात प्रतिस्थापन, विदेशी मुद्रा नियंत्रण आदि के कारण भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंध (India-US Relations) केवल खाद्यान और विकास सहायता तक सीमित रहा l

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1971 भारत पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के निर्माण के दौरान भारत और अमेरिका के संबंध (India-US Relations) काफी खराब स्थिति में पहुच गए थे l यह जानते हुए कि पाकिस्तान अपने ही पूर्वी हिस्से में वृहद नरसंहार के कुकृत्य में संलग्न है तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने पाकिस्तान का साथ दिया l तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिकी दबाव को नकारते हुए न केवल दृढ़ता से स्थिति का सामना किया बल्कि पूर्वी पाकिस्तान को अलग देश के रूप में स्थापित कराके सोविएत संघ के साथ शांति, सहयोग और दोस्ती की संधि पर हस्ताक्षर किए जिससे भारत की अमेरिका से दूरी बढ़ती गई l

भारत द्वारा 1974 में किया गया परमाणु परीक्षण भी अमेरिका को पसंद नहीं आया l मोरारजी देसाई ( 1977-79) अमेरिका से संबंधों (India-US Relations) को लेकर सजग थे और चाहते थे कि संबंधों को पुनर्स्थापित किया जाय l उन्होंने परमाणु कार्यक्रम पर असहजता दर्शाते हुए अमेरिका से कूटनीतिक संबंध को पुनः शुरू की l वे सोविएत संघ पर भारत की निर्भरता को कम करना चाहते थे l उनका भी कार्यकाल छोटा रहा तथा 1980 में फिर से श्रीमती इंदिरा गांधी की वापसी हुई और उनका अमेरिका के प्रति रुख पूर्ववत ही रहा l

1984 में श्रीमती गांधी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद राजीव गांधी सत्ता के शिखर पर विराजमान हुए l युवा राजीव गांधी एक टेकनोक्राट और अग्रसोची थे जिन्होंने आधुनिकीकरण और तकनीकी विकास के लिए अमेरिका में अपार संभावना देखी और विज्ञान तथा तकनीक के क्षेत्र में सहयोग स्थापित करने की शुरुआत की l उन्होंने अमेरिका की यात्राएं की और राष्ट्रपति रीगन से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करके संबंधों को नया आयाम देने की शुरुआत की l दूरसंचार और आईटी के क्षेत्र में उदारीकरण प्रारंभ किया जिसमे अमेरिका को व्यापार का अवसर दिखने लगा l

राजीव गांधी की दुखद हत्या के उपरांत दो वर्ष ( 1989-1991) भारत के केन्द्रीय नेतृत्व में अस्थाईत्व रहा और दो अल्पकालिक प्रधान मंत्री श्री वी पी सिंह और श्री चंद्रशेखर रहे l इस दौरान कोई दूरगामी नीतिगत फैसले नहीं लिए जा सके l हाँ एक महत्वपूर्ण घटना जरूर हुई जब खाड़ी युद्ध के दौरान चंद्रशेखर जी के कार्यकाल में अमेरिकी युद्धक विमानों को भारत में ईंधन भरने की सुविधा प्रदान की गई जिसका भारत के अंदर भी विरोध हुआ था l

भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को नई दिशा और दशा तब मिली जब नरसिंहाराव के नेतृत्व में केंद्र में बनी सरकार ( 1991-96) ने आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू किया और भारतीय बाजार को दुनिया के खोल दिया l अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए आवश्यक नीतिगत फैसले लिए गए l अमेरिका को भी व्यापार का अवसर दिखा और परमाणु मुद्दों पर मतभेद के बावजूद रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग को मजबूती दिया जाने लगा l

अमेरिकी कंपनियों ने आइ टी, दूरसंचार, ऊर्जा और उपभोक्ता सामग्री के क्षेत्र में व्यापार के अवसर तलाशे l यह दौर संबंधों के लिए मील का पत्थर साबित हुआ और व्यापार के लिए मजबूत आधार बनाया जिसका परिणाम हुआ कि द्विपक्षीय व्यापार में 1990 – 2000 के मध्य 300% की वृद्धि दर्ज की गई ( 500 करोड़ डॉलर से बढ़कर 1500 करोड़ डॉलर ) l

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अटल विहारी बाजपेई के नेतृत्व में गठित केन्द्रीय सरकार( 1998-2004) ने प्रतिकूलता को अवसर में बदला और 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किया जिसके फलस्वरूप अमेरिका ने भारत के ऊपर प्रतिबंध लगाए l बाजपेई की कुशल कूटनीति ने इस दौर में सराहनीय काम करते हुए क्लिंटन के साथ मधुर संबंध स्थापित किए और सन 2000 में राष्ट्रपति क्लिंटन का ऐतिहासिक भारत दौरा सम्पन्न हुआ जो भारत में आइ टी क्रांति का आधार बना l बेंगलुरू और हैदराबाद सॉफ्टवेयर के महत्वपूर्ण केंद्र बने l भारत ने अमेरिका से रक्षा सामग्री और वायुयान का आयात शुरू किया l 2008 आते आते द्विपक्षीय व्यापार 4000 करोड़ डॉलर तक पहुँच गया l

9/11 की पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी आक्रमण ने अमेरिका और भारत को आतंकवाद के मुद्दे पर एकजुट होने का अवसर प्रदान किया l भारत में व्यापार का अवसर और आतंक का दर्द अमेरिका को भारत के प्रति दृष्टिकोण बदलने के लिए मजबूर कर रहा था l अफगानिस्तान में संघर्ष के दौरान भारत ने अमेरिका को खुफिया और लजिस्टिकल सहयोग प्रदान किया l
श्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनी केन्द्रीय सरकार ( 2004- 2014) ने आर्थिक सुधारों को जारी रखा भारत के वैश्विक आकांक्षा को पूरा करने के लिए अमेरिका को एक आवश्यक भागीदार के रूप में देखा l

2005 में भारत ने अमेरिका से असैन्य परमाणु समझौता किया जिससे परमाणु क्षेत्र में भारत के एकाकीपन को खत्म करने में सहायक हुआ l इस दौरान रक्षा, ऊर्जा, शिक्षा, आतंकनिरोधक यदि क्षेत्रों में सहयोग को मजबूती प्रदान की गई और अनेकों महत्वपूर्ण द्विपक्षीय उच्च स्तरीय वार्ता और सैन्य अभ्यास किए गए l इस दौरान अमेरिका भारत का मुख्य रक्षा भागीदार बन गया l

2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार के आने के बाद India-US Relations में एक नई झलक देखने को मिली जब भारत सरकार ने अमेरिका के साथ निश्चयात्मक और व्यावहारिक संबंधों पर जोर दिया जो कि उभय पक्ष आर्थिक हितों की रक्षा के लिए युक्तिपूर्ण हो l भारत ने राष्ट्रपति ओबामा, ट्रम्प और बीडेन और पुनः ट्रम्प के संबंधों को मजबूती के साथ आगे बढ़ाया आपसी संबंध को वैश्विक स्तर पर युक्तिपूर्ण भागीदारी के रूप में स्थापित किया l

चीन के प्रभुत्व को कम करने के लिए क्वाड के माध्यम से जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत और अमेरिका एक मजबूत सहयोग संधि स्थापित किया और LEMOA ( Logistic Exchange Memorandum of Agreement), COMCASA ( Communication Compatibility and Security Agreement), BECA ( Basic Exchange and Co operation Agreement) जैसे मौलिक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए l 2020 में डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे के दौरान उनके सम्मान में “नमस्ते ट्रम्प” का आयोजन किया और मोदी जी ने दो बार अमेरिकी काँग्रेस को संबोधित किया l

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पहला सम्बोधन ओबामा के कार्यकाल में 08 जून 2016 को और दूसरा बीडेन के कार्यकाल में 22 जून 2023 को l नरेंद्र मोदी उन बहुत कम वैश्विक नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने दो बार अमेरिकी काँग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किया है l इनके अतिरिक्त चर्चिल, नेल्सन मंडेला और नेतनयहू को यह सम्मान प्राप्त है l वर्तमान में भारत और अमेरिका के बीच पारस्परिक व्यापार 2,00,000 करोड़ डॉलर से ज्यादा हो गया है l भारत का निर्यात अमेरिका से आयात की तुलना में ज्यादा है l

वैश्विक भूराजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ टेलीस का मानना है कि भारत अमेरिका का तटस्थ साझीदार है l इंडो पेसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर अमेरिका भारत को क्षेत्रीय स्थिरता और संतुलन के लिए आवश्यक मानता है जबकि भारत के विदेश नीति विशेषज्ञ सी राजा मोहन के अनुसार अमेरिका भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को स्वीकारता है और और भारत के साथ मजबूत और लचीले संबंध बनाए रखने को महत्व देता है l रक्षा और तकनीक संबंधों के जानकार तन्वी मदन का मानना है कि भारत अमेरिका के साथ सुरक्षा क्षेत्र में समझौता तो करता है परंतु पुराने दोस्त रूस से भी संबंध कायम रखता है l भारत की यह बहुपक्षीय नीति अमेरिका –भारत के संबंधों की प्रगाढ़ता में अवरोधक है l

अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और व्यापारमूलक सोच रखने वाला देश है l सारे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के केंद्र में व्यापार को रखकर आगे कदम बढ़ाना अमेरिका की सोच रही है l अंतर्राष्ट्रीय संगठनों पर अमेरिका का दबदबा है, अमेरिकी मुद्रा विश्व की रिजर्व करन्सी है, अभी भी विश्व व्यापार का लगभग 50% अमेरिकी मुद्रा ( डॉलर ) में होता है, युद्ध सामग्री में वैश्विक बाजार में अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा ( 43%) है l दुनिया में काही भी होनेवाला युद्ध अमेरिका के लिए व्यापार के अवसर उत्पन्न करता है l

अतः ज्यादा लोगों का मानना है कि व्यापारिक संभावना अमेरिका से अच्छे संबंध (India-US Relations) का आधार होता है l व्यापार के अभाव में संबंध अमेरिका के लिए अप्रासंगिक हो जाते हैं l ट्रम्प 2.00 ने अमेरिका फर्स्ट नीति के तहत वैश्वीकरण के सिद्धांत को दरकिनार करते हुए संरक्षणवाद को अपनाकर टैरिफ के नाम से पूरी दुनिया के अर्थतंत्र को झकझोर कर रख दिया है जिससे अमेरिका के मित्र और दुश्मन दोनों परेशान हो कर रह गए l बहुत से देश अमेरिका के सामने झुक गए l केवल चीन ने मजबूती से अमेरिका को जवाब दिया और अब ट्रम्प प्रशासन के रुख में नरमी देखी जा रही है l अतः अमेरिका से सम्मानजनक और लाभप्रद संबंध बनाने के लिए खुद को सशक्त बनाना जरूरी है

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