अमित श्रीवास्तव

भारत के स्वर्णिम गौरव केंद्रीय विश्वविद्यालय नालंदा व तक्षशिला का इतिहास लौट कर आएगा। आज भी मेरे कानों में बोलते हैं । यह आवश्यक है कि छात्रों को भारत की पुरातन शिक्षा पद्धति और उसके गौरव इतिहास बताया जाना जरूरी है। एन. ई .पी 2020 शिक्षा में भारतीय ज्ञान विज्ञान की पुरजोर समर्थन करती है। इस इतिहास को समृद्ध बनाने में शिक्षकों की भूमिका अहम होती है।

आज भारत में शिक्षा का वर्तमान स्वरूप काफी चिंताजनक है। भारत में शिक्षक प्रशिक्षण का इतिहास उतना ही पुराना है जितना भारतीय शिक्षा का इतिहास। कालांतर में तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों का जन्म हुआ, जिसमें पूरे विश्व से ज्ञान अर्जन करने के लिए लोगों ने आना शुरू किया और भारत विश्व गुरु कहलाया। किसी भी नागरिकों का स्तर वहां दी जाने वाली शिक्षा से तय होता है। एक बड़ी मशहूर उक्ति है यदि आप किसी देश को बर्बाद करना चाहते हो तो पहले प्रहार इस शिक्षा व्यवस्था पर करो। कुछ दिनों से देश में बी.ए. चायवाला, एम.बी.ए चायवाला, इंजीनियर चायवाला जैसे दुकानों की बाढ़ सी आ गई है जो शिक्षा के स्तर में हो रही गिरावट का प्रतीक है।

भारत हमेशा से गुरुओं का आदर करने वाला देश रहा है यहां आरुणि और एकलव्य पैदा हुए। हमारी परंपरा रही है कि जहां हम गुरु को गोविंद से भी श्रेष्ठ समझते हैं जो कबीर दास लिखते हैं:
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताएं।।
वही कबीर दास जी यह लिखना भी नहीं भूले-
गुरुवा तो सस्ता भैया जैसे शेर पचास
राम नाम को बेच के कर शिष्य की आस।
यदि भारत को विश्व गुरु बनना है तो वास्तविकता में शिक्षकों को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने की आवश्यकता है जिससे सामाजिक संरचना चरित्र, ज्ञान के साथ-साथ पुण्यात पाठ्यक्रमों के द्वारा छात्रों को एक ऐसा वातावरण दिया जा सके जहां वे शोध कर सकें ना कि रटकर परीक्षा में लिख 95% अंक लाकर विवेक शून्य बने। जिन शिक्षकों के हाथ में हम अपने देश की पीढ़ी को सौंपने जा रहे हैं उनके विषय के प्रति प्रेम सीखने की भूख और निरंतर शोध की प्रवृत्ति कम ना होने का गुण होना आवश्यक है, अन्यथा आने वाली पीढ़ी को देने के लिए हमारे पास नालंदा और विक्रमशिला जैसी संस्था के नाम ही रह जाएंगे।
हमारा साझा प्रयासों की हम ऐसे पौध तैयार करें जो अपने विषय को तार्किक रूप से समझे और साथ ही उसके अंदर बाल मनोविज्ञान का खाद डालकर एक उन्नत किस्म की प्रभावी पीढ़ी तैयार करें जो भारत को आगे ले जाने का दम रखें। डॉ कलाम ने कहा था-असफलता से डरे नहीं सफल गणित की यात्रा भी शून्य से शुरू होती है।
एक शिक्षक को इस उद्देश्य के अनुसार काम करना चाहिए जो निरंतर सीखने और अपने अंदर की कमियों को जानते हुए पुणे सीखने के लिए प्रयासरत रहने का संदेश देता है-
मैं ना तो यह मानता हूं कि ब्रह्मा को अच्छी तरह जाना गया और ना यही समझता हूं कि उसे नहीं जानता इसलिए मैं उसे जानता हूं और नहीं भी जानता।
( लेखक शिक्षाविद हैं)
जब हम भारत की शिक्षा व्यवस्था की बात करते हैं तो सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि हमारे युवाओं की मानसिकता का जो प्रवाह है, वह किस दिशा में हो रहा है। सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि हमारा युवा क्या चाहता है। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश में शिक्षा का जो मूल उद्देश्य है, वह धन अर्जित करना है। क्योंकि हर बच्चा बचपन से ही अपने परिवेश में यह देखता है, महसूस करता है और अपने अभिभावकों, माता-पिता, परिवारजनों और समाज से यही सीखता है कि शिक्षा का मूल मूल्य पैसा कमाना है।
अगर हम देखें तो आज के समय में अधिकांश विद्यार्थी ऐसे विषयों का चयन करते हैं या ऐसे कोर्स करना पसंद करते हैं, जिनसे उन्हें जल्दी से नौकरी मिल सके। वे ऐसे कोर्स करना पसंद करते हैं जिनसे उनकी आय का स्रोत जल्दी से बन जाए। जैसा कि हम जानते हैं, हमारे देश का जो युवा है, वह आज के समय में करियर के नाम पर या मेडिकल और इंजीनियरिंग के नाम पर भटक रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है? अगर हम ध्यान से देखें तो हमें पता चलेगा कि इसका मूल कारण यह है कि युवा यह समझता है कि एक कोर्स करने या पढ़ाई करने से उसकी नौकरी पक्की हो जाएगी।
मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि युवा का जो मूल उद्देश्य है, वह है कि वह जल्दी से जल्दी नौकरी पा जाए और मोटा पैसा कमा ले।
अब हम आते हैं दूसरी बात पर। हमारे समाज में आज के समय में कुछ ऐसे नाम हैं जैसे “एमबीए चायवाला”, “पानी पूरी वाली” आदि। इनका उदाहरण देना सही नहीं होगा, परंतु सब जानते हैं कि ये आज के युवाओं के रोल मॉडल हैं। अब यह जानकर हैरानी होती है कि ये युवाओं के रोल मॉडल क्यों बन जाते हैं। इसका उत्तर मैंने ऊपर ही दिया है। क्योंकि युवा चाहते हैं कि उनके पास पैसा हो। कोई भी डिप्लोमा या डिग्री करने का उद्देश्य उनके लिए केवल नौकरी पाने तक सीमित है।
अगर कोई बिना पढ़ाई के अच्छा पैसा कमा रहा है, कोई यूट्यूब पर गेमिंग करके पैसा कमा रहा है, या कोई ठेला लगाकर करोड़ों रुपये कमा रहा है और प्राइवेट जेट से घूम रहा है, तो फिर उसे ज्यादा पढ़ाई-लिखाई करने की क्या जरूरत है? यही कारण है कि ऐसे लोग युवाओं के आदर्श बन जाते हैं। क्योंकि युवा भी यही चाहते हैं कि वे कुछ ऐसा कोर्स करें, जिससे उन्हें जल्दी से नौकरी मिल जाए। युवाओं को शॉर्टकट नजर आने लगता है और इस वजह से वे ज्ञान के पीछे नहीं जाते।
जिस दिन यह आदर्श, जो समाज और अभिभावकों से प्राप्त हो रहा है, बदल जाएगा और युवा सोचने-समझने की क्षमता विकसित करेगा, उस दिन युवा शोध और अनुसंधान में काम करना शुरू करेगा। उस दिन वह बड़े-बड़े अनुसंधान केंद्रों में काम करना शुरू करेगा। उस दिन देश का युवा क्रांतिकारी बनेगा और देश का भविष्य उज्ज्वल होगा।
Thanks
आपके विचारों का स्वागत है! यह सच है कि भारत की शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, और हमें अपनी पुरातन शिक्षा पद्धति और गौरवशाली इतिहास को फिर से स्थापित करने की दिशा में काम करना चाहिए।
एनईपी 2020 के माध्यम से भारतीय ज्ञान और विज्ञान को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है, जो एक सकारात्मक कदम है। शिक्षकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे छात्रों को प्रेरित और शिक्षित कर सकते हैं।
आज की शिक्षा प्रणाली में कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन हमें उम्मीद है कि भविष्य में सुधार होगा।
Thanks
Very good 👍
बहुत सुंदर रचना
Thanks
Very good 👍
Nice though for present generation.
Nice editorial