Varanasi : महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (Kashi Vidyapith) के हिंदी और अन्य भारतीय भाषा विभाग द्वारा आयोजित सावित्रीबाई फुले व्याख्यानमाला की श्रृंखला के अंतर्गत शनिवार को “प्रवास में हिंदी साहित्य” (Hindi Literature in Migration) विषय पर एक विशेष व्याख्यान आयोजित हुआ। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता रहीं डॉ. मीरा सिंह, जो अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रवाह की संस्थापक और अमेरिका में हिंदी साहित्य की प्रमुख प्रतिनिधि मानी जाती हैं।

डॉ. मीरा सिंह ने अपने व्याख्यान में प्रवासी साहित्य की भूमिका को भारत की आत्मा और संस्कृति को जीवित रखने वाला माध्यम बताया। उन्होंने बताया कि अमेरिका जैसे देशों में रह रहे प्रवासी साहित्यकारों ने भाषा, साहित्य और संस्कृति को जिंदा रखने के लिए गंभीर संघर्ष किया है। उन्होंने अपनी पुस्तकों और अनुभवों के माध्यम से प्रवासी जीवन के सांस्कृतिक संघर्ष, अस्मिता की खोज और सामाजिक यथार्थ को सामने रखा।
डॉ. सिंह ने बहुभाषिकता की अनिवार्यता पर जोर देते हुए कहा कि हिंदी को वैश्विक स्तर पर प्रसारित करने के लिए अन्य भाषाओं के साथ संवाद आवश्यक है। उन्होंने अमेरिका में मजदूर वर्ग की स्थिति, साहित्य और सांस्कृतिक गतिविधियों की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए यह भी कहा कि आधुनिकता के दौर में मरती हुई संवेदनाएं सबसे बड़ी चिंता का विषय हैं, जिन्हें साहित्य ही संजो सकता है।
कार्यक्रम में प्रो. रामाश्रय सिंह ने भारत और अमेरिका की शिक्षा व्यवस्था, संस्कृति और मानवीय संबंधों की तुलना करते हुए कहा कि भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा आज भी भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है, जबकि पश्चिमी समाज में यह संबंध अधिक औपचारिक और सीमित हैं।

विभागाध्यक्ष प्रो. राजमुनि ने स्वागत वक्तव्य में प्रमुख प्रवासी साहित्यकारों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रवासी साहित्य केवल स्मृतियों का दस्तावेज नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संवाद का जीवंत पुल है। उन्होंने बताया कि आज हिंदी साहित्य की पहचान सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसकी प्रवासी शाखाएं हिंदी को वैश्विक साहित्य में प्रतिष्ठित कर रही हैं।
कार्यक्रम का संचालन शोध छात्रा अंजना भारती ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विजय कुमार रंजन ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर प्रो. अनुकूल चंद राय, प्रो. अविनाश कुमार सिंह, एवं कई अन्य शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
