वाराणसी। डाला छठ महापर्व का आज तीसरा दिन है। आज यानी गुरुवार की शाम सूर्य देव को मुख्य अर्घ्य दिया जाएगा। षष्ठ तिथि के अवसर पर गंगा, वरुणा, गोमती और अन्य जलस्रोतों के तटों पर भक्तों का जनसैलाब उमड़ेगा जो डूबते सूर्य को जल और दूध से अर्घ्य अर्पित करेंगे। छठ पूजा में विशेष प्रसाद बनाया जाता है, जिसमें ठेकुआ और गुड़ की खीर का विशेष महत्व है, साथी इस प्रसाद को मांग कर खाने की परंपरा भी है आईए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से….
विशेष प्रसाद और पूजन सामग्री का निर्माण
बुधवार को खरना के साथ घरों में छठ के लिए विशेष भोग तैयार किया गया। प्रसाद तैयार करते समय शुद्धता का विशेष ध्यान रखा गया। महिलाएं प्रसाद के लिए ठेकुआ बनाते समय गीत गाती रहीं, जबकि पुरुष सजावट और अन्य तैयारियों में व्यस्त रहे। पीतल के डाला और सूप का विशेष महत्व होता है, इसलिए इन्हें चमकाने का काम भी किया गया।
छठ का प्रसाद मांगकर खाने की परंपरा
इस महापर्व के प्रसाद को मांगकर खाया जाता है, जो सूर्य देव और छठी मइया के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का तरीका है। मान्यता है कि प्रसाद मांगकर खाने से शारीरिक और मानसिक दोष दूर होते हैं और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।
ठेकुआ का विशेष महत्व
छठी माता के प्रसाद में ठेकुआ का विशेष महत्व है। इसे आम की लकड़ी पर मिट्टी के चूल्हे में पकाया जाता है। ठेकुआ का आकार सूर्य के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
गुड़ की खीर का महत्व
खरना के अवसर पर गुड़ की खीर बनाई जाती है, जिसमें चावल और दूध को चंद्रमा का और गुड़ को सूर्य का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि छठ के प्रसाद में विशुद्धता बनाए रखने के लिए नए चूल्हे का उपयोग किया जाता है और इसे पवित्र माना जाता है।
