वाराणसी। छठ पर वाराणसी के घाटों पर आस्था का जन सैलाब उमड़ पडा। गंगा की गोद में खड़े हो कर लाखों हाथों ने डूबते हुए सूर्य को इस कामना के साथ विदा कर रहे थे कि कल एक नए तेज के साथ आयेंगे और अपनी रौशनी से उनके घर को खुशियों से भर देंगे।
इस पूजा में पानी और सूर्य का महत्व है। रंग बिरंगे वस्त्रों में सजी संवरी सभी महिलायें आस्था के उस रंग में रंगी हैं जिसकी छटा छठी मैया के गीत से और भी अलौकिक हो उठता है।
अभी ना डुबिहे भास्कर दीनानाथ करिहे घरवा उजार हो
उगते सूरज को तो सभी सलाम करते हैं लेकिन इसे छठी मैया की कृपा ही कहें की यहाँ न सिर्फ उत्तरायण बल्कि डूबते हुए सूरज को भी अर्घ्य देकर उसका अभिनन्दन किया जाता है। ये ना सिर्फ आस्था और विश्वास बल्कि समभाव की भावना भी दिखाता है और साथ ही ये कामना भी “अभी ना डुबिहे भास्कर दीनानाथ करिहे घरवा उजार हो।”