मिथिलेश कुमार पाण्डेय
उपयुक्त और मनपसंद जीवन साथी पाने की लालसा सदैव मनुष्य के जीवन में प्रमुखता से व्याप्त रही है l विवाह संस्कार में बिल्कुल अनजान परिवेश और माहौल में से एक व्यक्ति को चुनकर उसके साथ पूरा जीवन गुजरना निश्चित ही जोखिम भरा निर्णय होता है l यह न केवल व्यक्तिगत बल्कि अपनी पुश्तैनी संपत्ति में मलिकाना हिस्सेदारी भी प्रदान करना है l अतः शादी के लिए निर्णय लेते समय यथा संभव पूरी सावधानी बरतनें की कोशिश की जाती रही है l
अभी कुछ दशक पहले तक देशभर में ज्यादातर अपने आसपास के भौगौलिक क्षेत्रों में रिश्तेदारी खोजी जाती थी जहाँ पर होनेवाले परिवार के बारे में मौलिक जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाता था l भविष्य की संभावनाओं के बारे में जानकारी के लिए भारत में वैदिक काल से ही कुंडली मिलान की परंपरा जुडी हुई है l
इसका उल्लेख वेदों, पुराणों और ज्योतिष ग्रंथों में भी मिलता है l ऋग्वेद और यजुर्वेद में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति का अध्ययन किया जाता था और ग्रहों के प्रभाव को समझने का प्रयास किया जाता था l शास्त्रों और पुराणों के काल में विस्तृत रूप से ज्योतिष का विकास हुआ और विवाह में कुंडली मिलान का महत्व बढ़ा l महर्षि पराशर द्वारा रचित बृहद पराशर होरा शास्त्र में ग्रहों, नक्षत्रो और कुंडली मिलान के सिद्धांत दिए गए है l
मध्यकाल (सन 700 से सन 1700 तक ) कुंडली मिलान विवाह का अनिवार्य हिस्सा बन गया था, विशेषतः ब्राम्हण, क्षत्रिय और वैश्य परिवारों में l विवाह के पहले मंगल दोष, नाड़ी दोष, भकूट दोष आदि की जाँच की जाने लगी l आधुनिक काल में वैज्ञानिक और व्यावहारिक सोच बढ़ने से कुछ वर्गों में इसका प्रभाव कम होने लगा l शहरी क्षेत्रों में प्रेम विवाह होने लगे जिससे कुंडली मिलान की परंपरा थोड़ी कमजोर पड़ने लगी फिर भी पारंपरिक परिवारों में आज भी यह महत्वपूर्ण माना जाता है l ऑनलाइन ज्योतिष और मैत्रिमोनिअल साइट्स के कारण अब कुंडली का मिलान डिजिटल रूप से होने लगा है l यह सारा प्रयास अनिश्चित भविष्य में निश्चिंतता की तलाश का प्रयास होता है l
वर्तमान में संचार साधन की सुलभता और बेहतर भविष्य की सम्भावना के लिए भौगौलिक दूरी अप्रासंगिक हो गया है l शिक्षा और रोजगार के लिए बच्चे दूर देश विदेश में जा रहे है और शहरीकरण के लाभ के लिए वहीँ रहने भी लग रहे हैं l इस हालत में वर वधु के चयन की पारंपरिक प्रक्रिया बहुत हद तक निष्प्रभावी हो चुकी हैं l बेहतर भविष्य के लिए अर्थोपार्जन और वित्तीय अनुशासन एक महत्वपूर्ण मापदंड हो गए हैं l CIBIL ( क्रेडिट इनफार्मेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड) स्कोर वित्तीय अनुशासन को दर्शाने वाला एक सूचकांक है l
CIBIL का पूर्णांक 900 और 625 से कम का स्कोर यह दर्शाता है कि सम्बंधित व्यक्ति आर्थिक रुप से कमजोर है और कुछ हद तक Unsecured लोन पर निर्भर है तथा किश्तों की अदायगी में भी अनियमितता हो सकती है l आजकल मैरिज ब्यूरो चलने वाले सलाहकार इस विन्दु पर भी ध्यान रखते हैं l वर वधु का चयन आजकल काफी सूक्षमता के साथ कॉर्पोरेट मूल्यांकन की तरह से किया जा रहा है l विवाह सलाहकार यह मानने लगे है कि जीवन में प्यार के साथ साथ आर्थिक सुरक्षा भी काफी महत्वपूर्ण है l
एक समय जब कुंडली मिलान शादी बनाने या न बनाने का मुख्य आधार होता था अब इसके साथ ही क्रेडिट चेक का भी बराबर महत्व हो गया है l उदहारण के लिए अभी हाल फ़िलहाल में महाराष्ट्र के अकोला जिले में कम CIBIL स्कोर के कारण शादी का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया l ऐसा लगता है कि आधुनिक पंडितजी को अब ज्योतिषीय ज्ञान के साथ साथ क्रेडिट रिपोर्ट के मूल्यांकन की भी विस्तृत जानकारी रखनी होगी l प्यार अंधा हो सकता है परन्तु जब शादी की बात हो तो वित्तीय बुद्धिमत्ता के आधार पर यह सुनिश्चित करना होगा कि प्यार दिवालिया न हो जाये।