मिथिलेश कुमार पाण्डेय
भारतीय बाज़ार नियामक SEBI ( भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ) बाज़ार की विश्वसनीयता कायम रखने के उद्देश्य से लगातार निवेशकों की हित रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाता रहा है। सख्त निगरानी के आभाव में कभी कभी कंपनियां कुछ ऐसे कदम उठती हैं जो निवेशकों के हित विरुद्ध होती हैं और इससे निवेश में जोखिम बढ़ने की सम्भावना होती है।
साथ ही निवेश से प्राप्त आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अपने 18 दिसम्बर 24 की बोर्ड मीटिंग में SEBI ने NFO ( NEW Fund Offers) के बारे में कुछ महवपूर्ण निर्णय लिए हैं ताकि इसके जरिये Mis-selling पर लगाम लगाया जा सके।
इस बोर्ड मीटिंग में लिये गये कुछ महत्वपूर्ण निर्णय निम्न है :
NFO के जरिये इकट्ठा की गयी धन राशि योजना के समाप्त होने के 30 दिनों के अन्दर निवेशित की जानी चाहिए। पहले यह अवधि 60 दिनों की थी।यदि वर्तमान योजना को NFO में बदला जा रहा है तो वितरक को दोनों में से जो कम हो वही कमीशन देय होगा।

उपर्युक्त दोनों निर्णयों के निम्नलिखित संभावित लाभ होंगे :
अवधि को घटाने से यह फ़ायदा होगा कि म्यूच्यूअल फण्ड उतनी ही धन राशि इकट्ठा करेगा जितने को वे 30 दिनों में निवेश कर सकते हैं। कभी कभी ज्यादा फण्ड जमा करके निवेश न होने पर निवेशक का नुकशान होता है और वितरक को फ़ायदा।
यदि फण्ड हाउस 30 दिनों के अन्दर निवेश करने में असफल रहता है तो निवेशक को अपने निवेश का पूरा पैसा बिना किसी कटौती के वापस किया सकता है।
यह भी देखा गया है कि वितरक अपने कमीशन के लिए निवेशकों को स्कीम बदलने के लिए प्रेरित करते थे। अब यह निर्देशित हो गया है कि दोनों में जो कम होगा वही कमीशन देय होगा तब अनावश्यक स्कीम बदलवाने का प्रयास नहीं होगा।यह सर्वविदित है कि फण्ड मैनेजमेंट का खर्चा जितना कम होगा निवेशक को फ़ायदा उतना ज्यादा होगा।
हो सकता है कि कुछ कम NFO बाज़ार में आयें, खास करके वैसे जो कि वितरकों को ध्यान में रख कर लाये जाते थे।
(लेखक पूर्व सहायक महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा एवं आर्थिक विश्लेषक हैं )

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