
वाराणसी I एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) के इलाज की दिशा में एक बड़ी पहल की जा रही है। वाराणसी स्थित शोधकर्ताओं ने एक ऐसा अभिनव चिकित्सा उपकरण विकसित करने की योजना बनाई है, जो इस गंभीर तंत्रिका विकार के इलाज में क्रांति ला सकता है। यह उपकरण 3D बायोप्रिंटिंग तकनीक और बायो-इंजीनियर्ड कोशिकाओं का उपयोग करेगा, जो ALS के प्रभावों को प्रबंधित करने और संभावित रूप से उलटने में मदद करेगा।
क्या है ALS और इससे जुड़ी चुनौती

ALS एक घातक तंत्रिका विकार है, जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की कोशिकाओं को प्रभावित करता है। यह बीमारी व्यक्ति की गति, संज्ञान और श्वसन तंत्र को बुरी तरह प्रभावित करती है, जिसके कारण अधिकतर मामलों में 2-4 वर्षों के भीतर मृत्यु हो जाती है। अब तक इसके इलाज के लिए कोई कारगर चिकित्सा उपलब्ध नहीं है, जिससे इलाज की खोज एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता बनी हुई है।
3D बायोप्रिंटिंग से इलाज की उम्मीद
इस परियोजना का नेतृत्व बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुदीप मुखर्जी कर रहे हैं। वे 3D बायोप्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करके एक ऐसा उपकरण विकसित करेंगे, जो बायो-इंजीनियर्ड कोशिकाओं से उपचारात्मक कारकों को छोड़कर ALS के प्रभावों को कम करेगा। इस उपकरण की प्रभावकारिता को चूहे मॉडल पर परीक्षण के बाद मानव क्लिनिकल परीक्षण के लिए तैयार किया जाएगा।

सह-शोधकर्ता डॉ. दीपेश कुमार ने बताया, हमारा उद्देश्य 3D बायोप्रिंटिंग और सेल-आधारित चिकित्सा का संयोजन करके ALS के इलाज में नई उम्मीदें पैदा करना है।
आनुवंशिक विश्लेषण और परीक्षण
इस परियोजना के तहत पश्चिम बंगाल के नील रतन सरकार मेडिकल कॉलेज के साथ सहयोग किया जा रहा है। इस दौरान ALS मरीजों में पाए जाने वाले जीन उत्परिवर्तनों की पहचान की जाएगी। संदिग्ध और पुष्टि किए गए मामलों पर उनके आनुवंशिक, तंत्रिका और व्यवहार संबंधी विश्लेषण किए जाएंगे।
निदेशक का बयान और अनुदान समर्थन

संस्थान के निदेशक प्रोफेसर अमित पात्रा ने इसे एक क्रांतिकारी पहल करार दिया है, जो ALS के उपचार में नई संभावनाओं को जन्म देगी। इस परियोजना को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR), नई दिल्ली से ₹97 लाख का अनुदान प्राप्त हुआ है।
यह अनुसंधान ALS मरीजों और उनके परिवारों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है, जो लंबे समय से इस बीमारी के इलाज की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
