BHU में PhD प्रवेश पर बवाल! IPR विभाग के बाहर छात्रों का अनिश्चितकालीन धरना, UGC गाइडलाइंस के उल्लंघन का आरोप

Varanasi : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में PhD प्रवेश प्रक्रिया को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस बार भारतीय दर्शन एवं धर्म (IPR) विभाग में प्रवेश प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं और प्रशासनिक असहयोग के खिलाफ तीन चयनित छात्रों ने विभाग के मुख्य द्वार पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है। यह मामला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की गाइडलाइंस के उल्लंघन और प्रशासनिक टालमटोल से जुड़ा है, जिसने छात्रों के भविष्य को अधर में लटका दिया है।

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विवाद का मूल

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भारतीय दर्शन एवं धर्म (IPR) विषय में पीएचडी के लिए चयनित तीन छात्रों को विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर के बजाय संबद्ध महाविद्यालयों में प्रवेश देने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। छात्रों का तर्क है कि UGC की 2022 की गाइडलाइंस के अनुसार, IPR विषय केवल विश्वविद्यालय स्तर पर ही संचालित हो सकता है, न कि महाविद्यालय स्तर पर। इस विसंगति को लेकर जब छात्रों ने सवाल उठाए, तो विभाग और परीक्षा नियंत्रक कार्यालय ने एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालनी शुरू कर दी।

प्रारंभ में विभाग ने परीक्षा नियंत्रक की त्रुटि को जिम्मेदार ठहराया, जबकि परीक्षा नियंत्रक का कहना था कि विभाग को प्रवेश प्रक्रिया से पहले इस विसंगति की जानकारी देनी चाहिए थी। मामला जब कार्यवाहक कुलपति प्रो. संजय कुमार के संज्ञान में आया, तो उन्होंने 21 मई 2025 को सहायक कुलसचिव (शिक्षण) के माध्यम से तीनों छात्रों को मुख्य परिसर के दर्शन एवं धर्म विभाग में स्थानांतरित करने का आदेश जारी किया।

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हालांकि, विभागाध्यक्ष प्रो. दुर्गेश चौधरी और पीएचडी परीक्षा संयोजक प्रो. आर.के. झा ने इस आदेश को “अस्पष्ट और अपर्याप्त” बताते हुए 23 मई को परीक्षा नियंत्रक को स्पष्टीकरण के लिए पत्र लिखा। छात्रों का आरोप है कि दो सप्ताह बीत जाने के बाद भी परीक्षा नियंत्रक की ओर से कोई जवाब नहीं मिला, जिससे उनकी प्रवेश प्रक्रिया रुकी हुई है।

छात्रों का कहना है कि कुलपति के स्पष्ट आदेश के बावजूद विभाग उसका पालन नहीं कर रहा है। आदेशानुसार, विभागीय अनुसंधान समिति (DRC) के माध्यम से शोध निर्देशक आवंटन की प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन प्रशासनिक टालमटोल और विभागीय असहयोग के कारण ऐसा नहीं हुआ। इससे आक्रोशित छात्रों ने विभाग के मुख्य द्वार पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है। उन्होंने आर-पार की लड़ाई का ऐलान करते हुए कहा कि जब तक उनकी माँगें पूरी नहीं होतीं, धरना जारी रहेगा।

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पहले भी रहा है विवाद

बीएचयू में PhD प्रवेश प्रक्रिया को लेकर यह पहला विवाद नहीं है। अप्रैल 2025 में हिंदी विभाग में प्रवेश अनियमितताओं के खिलाफ ABVP के नेतृत्व में छात्रों ने कुलपति कार्यालय के मुख्य द्वार को बंद कर नारेबाजी की थी। इसके बाद UGC ने बीएचयू की पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी और जांच समिति गठित की थी। हाल ही में दलित छात्र शिवम सोनकर और अर्चिता सिंह के धरने के बाद उन्हें प्रवेश दिया गया था। ये घटनाएँ विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर करती हैं।

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छात्रों का आरोप है कि विभागाध्यक्ष और पीएचडी परीक्षा संयोजक कुलपति के आदेश को नजरअंदाज कर रहे हैं, जबकि परीक्षा नियंत्रक कार्यालय ने इस मामले में कोई सक्रियता नहीं दिखाई। विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार किया, लेकिन सूत्रों के अनुसार, प्रशासन जल्द ही इस मुद्दे पर बैठक आयोजित कर सकता है।

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