Ramnagar Ki Ramleela : आधुनिकता की चकाचौंक में कायम है वर्षों पुरानी परंपरा, बिना लाइट-साउंड के होती है रामनगर की रामलीला

Ramnagar Ki Ramleela : आज के तकनीकी और आधुनिकता के दौर में भी वाराणसी के रामनगर की ऐतिहासिक रामलीला (Ramnagar Ki Ramleela) अपनी सदियों पुरानी परंपराओं के साथ जारी है। यह रामलीला अपनी सादगी और पारंपरिक तौर-तरीकों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। खास बात यह है कि इस मंचन में आधुनिक लाइटिंग, साउंड सिस्टम या तकनीकी साधनों का इस्तेमाल नहीं होता, फिर भी यह लीला अपने आप में अनूठी और जीवंत अनुभव का अहसास कराती है।

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Ramnagar Ki Ramleela : काशी नरेश ने की थी शुरूआत

रामनगर स्थित आवासीय परिसर 36वीं वजनी पीएसी रामनगर रोड पर ऐतिहासिक रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसकी शुरुआत साल 1836 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह द्वारा की गई थी। इस वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी जारी है।

Ramnagar Ki Ramleela : आधुनिकता की चकाचौंक में कायम है वर्षों पुरानी परंपरा, बिना लाइट-साउंड के होती है रामनगर की रामलीला Ramnagar Ki Ramleela : आधुनिकता की चकाचौंक में कायम है वर्षों पुरानी परंपरा, बिना लाइट-साउंड के होती है रामनगर की रामलीला

पेट्रोमैक्स की रोशनी में होता है मंचन

इस रामलीला की सबसे खास बात यह है कि इसका मंचन पांच किलोमीटर के दायरे में अलग-अलग जगहों पर होता है जिनके नाम भी रामायण काल से जुड़े हुए हैं । बिना लाइट और साउंड के यह मंचन पेट्रोमैक्स की रोशनी में किया जाता है। इसे देखने के लिए देशभर से साधु-संत और संन्यासी जुटते हैं जो पूरे एक महीने तक काशी में रहकर इस ऐतिहासिक रामलीला का आनंद लेते हैं ।

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रामलीला में पात्रों को 40 दिनों की ट्रेनिंग के बाद ही मंचन करने की अनुमति मिलती है। काशी नरेश के वंशज अनंत नारायण सिंह भी हाथी पर सवार होकर इस रामलीला को देखने पहुंचे।

इस प्रकार, आधुनिकता के इस युग में भी रामनगर की रामलीला (Ramnagar Ki Ramleela) न सिर्फ अपनी परंपरा और संस्कृति को बनाए हुए है, बल्कि यह एक उदाहरण है कि कैसे बिना तकनीकी साधनों के भी एक कला-प्रदर्शन लोगों के दिलों को छू सकता है।

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