रामनगर की रामलीला: 200 वर्षों की परंपरा पर मंडराया खतरा, यूनेस्को धरोहर की सुरक्षा पर सवाल

वाराणसी। काशी की सांस्कृतिक विरासत रामनगर की रामलीला, जो 200 वर्षों से अधिक पुरानी परंपरा को संजोए हुए है, आज संकट में है। इसे यूनेस्को द्वारा धरोहर का दर्जा दिया गया है और यह न केवल भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है, बल्कि भगवान राम के आदर्शों को जनमानस तक पहुंचाने का माध्यम भी है।

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इस रामलीला की अनोखी विशेषता यह है कि यह स्थायी मंच पर नहीं, बल्कि रामकथा के घटनास्थलों का प्रतिनिधित्व करते हुए, शोध के आधार पर चयनित स्थलों पर होती है। इन्हीं स्थलों में से एक जनकपुर मंदिर है, जहां रामलीला के महत्वपूर्ण दृश्यों का मंचन तीन दिनों तक होता है।

जनकपुर मंदिर भारत में अपनी तरह का इकलौता मंदिर है, जो नेपाल के जनकपुर का प्रतिनिधित्व करता है। यहां भगवान राम, उनके चारों भाई और उनकी पत्नियां एक साथ विराजमान हैं, जो अन्यत्र दुर्लभ है। इस मंदिर की संरचना भी अनोखी है यहां कोई शिखर नहीं है। इसके बजाय, मंदिर का शिखर सिंहद्वार पर स्थित है, जहां भगवान राम का धनुष और माता सीता का प्रतीक कलश निर्मित है।

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सिंहद्वार को तोड़े जाने का विवाद :-

वर्तमान में सड़क चौड़ीकरण और सीवर लाइन बिछाने के कार्य के लिए इस ऐतिहासिक सिंहद्वार को तोड़े जाने का निर्णय लिया गया है। स्थानीय जनमानस में इस निर्णय से गहरा असंतोष है, क्योंकि यह सिंहद्वार मंदिर का अभिन्न अंग और आस्था का केंद्र है।

विशेषज्ञों और भक्तों का कहना है कि सीवर लाइन को सिंहद्वार के पीछे से भूमिगत रूप से ले जाया जा सकता है, जिससे संरचना को कोई नुकसान नहीं होगा। यदि यह सिंहद्वार क्षतिग्रस्त होता है, तो रामलीला की परंपरा प्रभावित होगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि धूमिल हो सकती है।

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स्थानीय लोग और रामनगर रामलीला समिति सरकार से अपील कर रहे हैं कि विकास कार्यों के साथ-साथ इस ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण सुनिश्चित किया जाए। यदि सिंहद्वार और मंदिर की सुरक्षा की जाएगी, तो यह भारतीय संस्कृति और उसकी पहचान को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

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