Rana Saga Controversy : राज्यसभा सांसद के खिलाफ दाखिल परिवाद खारिज, राणा सांगा के ख़िलाफ़ की थी अमर्यादित टिप्पणी

Rana Saga Controversy : संसद के सदन और भिन्न – भिन्न प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया में राणा सांगा (Rana Saga Controversy) को गद्दार कहते हुए उनपर अमर्यादित टिप्पणी करने के मामले में राज्य सभा सांसद रामजी लाल सुमन को कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई। अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (चतुर्थ)/एमपी-एमएलए कोर्ट नीरज कुमार त्रिपाठी की अदालत ने इस मामले में दाखिल परिवाद को सुनवाई के बाद पोषणीय नहीं मानते हुए निरस्त कर दिया। अदालत में राज्य सभा सांसद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनुज यादव कोर्ट में उपस्थित रहे।

प्रकरण के अनुसार राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के वाराणसी इकाई के जिलाध्यक्ष एवं पार्वती नगर कॉलोनी निवासी आलोक कुमार सिंह ने अदालत में परिवाद दाखिल किया था। आरोप था कि समाजवादी पार्टी के राज्य सभा सांसद एवं राष्ट्रीय महासचिव ने 21 मार्च 2025 को दोपहर 2.10 बजे सदन में परिवाद के पूर्वज राणा सांगा को गद्दार और क्षत्रिय कौम को गद्दार की औलाद बताया गया। जो तमाम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं प्रिंट मीडिया से प्रसारित हुआ। जिससे परिवादी एवं संपूर्ण क्षत्रिय समाज गंभीर रूप से आहत हुआ। विपक्षी के इस अशोभनीय स्पीच को सभापति ने डिलीट करने का आदेश पारित किया।

बावजूद इसके राज्य सभा सांसद रामजी लाल सुमन ने सदन के बाहर भी आकर उक्त स्पीच को विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक्स एवं प्रिंट मीडिया में बयान दिया गया। जिसमें उनके द्वारा राणा सांगा (Rana Saga Controversy) को गद्दार एवं समस्त क्षत्रिय समाज को गद्दार की औलाद कहा गया। इतना ही नहीं बाबर को भारत में लाने वाला राणा सांगा को बताया गया और राणा सांगा को गद्दार और समस्त क्षत्रिय समाज को गद्दार की औलाद कहा गया। जिससे उसे और समस्त क्षत्रिय समाज को राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा दिए गए अमर्यादित बयान से काफी ठेस पहुंचा है और इससे वह एवं क्षत्रिय समाज काफी अपमानित महसूस कर रहा है।

ऐसे में अदालत ने राज्यसभा सांसद को तलब कर दंडित किए जाने की कोर्ट से मांग की गई थी। अदालत ने इस मामले में सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि न्यायालय की राय में विपक्षी द्वारा राज्य सभा में दिए गए वक्तव्य के संबंध में उसे अनुच्छेद 105 (2) भारतीय संविधान का संरक्षण प्राप्त होने के कारण प्रस्तुत परिवाद दर्ज किए जाने योग्य नहीं है।

अदालत ने कहा कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत तीन वीडियो क्लिप विपक्षी द्वारा न्यूज चैनलों में दिए गए साक्षात्कार की रिकॉर्डिंग है। जिनमें ऐसी कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है, जिसके आधार पर विपक्षी के विरुद्ध धारा 197, 299, 302, 356(2), 356(3) बीएनएस के अपराध कारित करने का कोई मामला नहीं बनता है। ऐसे में अदालत ने उक्त परिवाद को पोषणीय न होने के कारण ग्राहता के स्तर पर ही निरस्त किया जाता है।

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