दुनियाभर में बढ़ती क्रॉनिक बीमारियों के लिए लाइफस्टाइल और खान-पान में गड़बड़ी को प्रमुख कारण माना जाता है। इसी बीच हालिया अध्ययन (Research) में यह सामने आया है कि च्युइंग गम चबाने से शरीर में माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा बढ़ रही है, जिससे क्रॉनिक बीमारियों का खतरा पैदा हो सकता है।
च्युइंग गम से निकलते हैं सैकड़ों माइक्रोप्लास्टिक्स
अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (ACS) की बैठक में इस Research पर चर्चा की गई, जिसमें शोधकर्ताओं ने बताया कि एक ग्राम च्युइंग गम से औसतन 100 माइक्रोप्लास्टिक रिलीज होते हैं। कुछ गम से 600 से अधिक माइक्रोप्लास्टिक्स निकलने की संभावना भी जताई गई है। एक व्यक्ति जो साल में 180 च्युइंग गम चबाता है, वह 30,000 माइक्रोप्लास्टिक्स निगल सकता है।

माइक्रोप्लास्टिक्स का बढ़ता खतरा
शोधकर्ताओं ( Research) ने पहले भी चेतावनी दी है कि शरीर में माइक्रोप्लास्टिक्स की बढ़ती मात्रा स्वास्थ्य के लिए खतरे का कारण बन सकती है। किचन में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं, प्लास्टिक की बोतलों और यहां तक कि हवा में भी माइक्रोप्लास्टिक्स पाए जा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप फेफड़े, रक्त, मस्तिष्क और अन्य अंगों में इनका असर देखा गया है।
मस्तिष्क में बढ़ते माइक्रोप्लास्टिक का प्रभाव
शोधकर्ताओं ने बताया कि माइक्रोप्लास्टिक्स मस्तिष्क की संरचना में बदलाव ला रहे हैं, जिसके चलते डिमेंशिया, स्ट्रोक और हार्ट अटैक के खतरे में वृद्धि हो रही है।
प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल से बढ़ रहा है खतरा
स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार प्लास्टिक के उपयोग को लेकर चेतावनी दे रहे हैं, क्योंकि प्लास्टिक में मौजूद बिस्फेनॉल ए (बीपीए) जैसे रसायन शरीर में जमा हो सकते हैं, जो कैंसर का कारण बन सकते हैं।