रूस और यूक्रेन (Russia-Ukraine) के बीच 2014 से चला आ रहा युद्ध अब एक निर्णायक मोड़ पर है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के साथ अलग-अलग मुलाकातें कीं, जिनमें युद्धविराम, शांति समझौता, और क्षेत्रीय समाधान पर चर्चा हुई। रूस का नाटो के प्रति अविश्वास और यूक्रेन की नाटो सदस्यता की मांग इस युद्ध का मूल कारण बनी हुई है। भारत की तटस्थ कूटनीति और मध्यस्थता की संभावनाएं वैश्विक मंच पर सुर्खियां बटोर रही हैं। इस युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, रूस के नाटो विरोध, और भारत की स्थिति को समझने के लिए आइए विस्तार से जानें।

1. ट्रंप-पुतिन और ट्रंप-ज़ेलेंस्की मुलाकात: क्या हुई बात?
15 अगस्त 2025 को अलास्का में डोनाल्ड ट्रंप (USA) और व्लादिमीर पुतिन (Russia) के बीच तीन घंटे की बैठक हुई, जिसमें यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए एक स्थायी शांति समझौते पर चर्चा हुई। ट्रंप ने सुझाव दिया कि यूक्रेन (Ukraine) क्रीमिया और डोनबास क्षेत्र रूस को सौंप दे और नाटो में शामिल होने की मांग छोड़ दे। पुतिन ने अपनी पुरानी शर्तों को दोहराया, जिसमें क्रीमिया, डोनेत्स्क, लुहान्स्क, ज़ापोरिज़िया और खेरसॉन पर रूसी संप्रभुता की मान्यता शामिल है।
18 अगस्त 2025 को वाशिंगटन डी.सी. में ट्रंप ने ज़ेलेंस्की से मुलाकात की, जिसमें यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन, नाटो महासचिव मार्क रट, यूके के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और इतालवी प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी शामिल थे। ज़ेलेंस्की (Ukraine) ने जोर दिया कि शांति समझौते में यूक्रेन की सुरक्षा गारंटी सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने $90 बिलियन के अमेरिकी हथियारों की खरीद की बात की, जिसे जल्द अंतिम रूप दिया जा सकता है। ट्रंप ने ज़ेलेंस्की पर रूस की कुछ शर्तों पर विचार करने का दबाव बनाया, लेकिन ज़ेलेंस्की ने क्षेत्रीय रियायतों को खारिज कर दिया।
ट्रंप (USA) ने घोषणा की कि वह जल्द ही पुतिन और ज़ेलेंस्की (Russia-Ukraine) के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक आयोजित करेंगे। यूरोपीय नेताओं को आशंका है कि ट्रंप रूस के पक्ष में रियायतें दे सकते हैं। फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कि पुतिन की शांति की मंशा पर भरोसा करना मुश्किल है।

2. रूस और अमेरिका के बीच संबंध
अलास्का में ट्रंप और पुतिन की मुलाकात ने रूस-अमेरिका (Russia-USA) संबंधों में कुछ नरमी लाने की कोशिश की। पुतिन का रेड कार्पेट पर स्वागत हुआ और दोनों नेताओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। ट्रंप ने दावा किया कि अगर वह पहले सत्ता में होते, तो युद्ध शुरू ही नहीं होता। पुतिन ने तत्काल युद्धविराम को खारिज किया, लेकिन 30 दिनों के लिए यूक्रेन (Ukraine) के ऊर्जा ढांचे पर हमले रोकने पर सहमति जताई, जिसका पूरी तरह पालन नहीं हुआ।
परमाणु युद्ध की आशंका भी चर्चा में रही। ट्रंप ने परमाणु युद्ध की तैयारियों का जिक्र किया, जबकि रूस ने बेलारूस में मिसाइलें तैनात की हैं। ट्रंप ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों की धमकी दी, अगर वह युद्धविराम पर सहमत नहीं होता।

3. रूस का नाटो पर अविश्वास और यूक्रेन की सदस्यता पर आपत्ति

रूस (Russia) का नाटो (NATO) के प्रति अविश्वास शीत युद्ध के समय से चला आ रहा है। 1990 के दशक में, जब सोवियत संघ का विघटन हुआ, तो नाटो ने पूर्वी यूरोप में विस्तार शुरू किया। रूस का मानना है कि नाटो ने वादा किया था कि वह पूर्व की ओर विस्तार नहीं करेगा, लेकिन पोलैंड, हंगरी, चेक गणराज्य और बाल्टिक देशों को शामिल करके नाटो ने इस वादे को तोड़ा। यूक्रेन (Ukraine) की नाटो सदस्यता की मांग रूस के लिए “लाल रेखा” रही है, क्योंकि यूक्रेन की सीमा रूस के करीब है और नाटो की सैन्य उपस्थिति वहां रूस की सुरक्षा के लिए खतरा मानी जाती है।
2008 में नाटो ने बुखारेस्ट शिखर सम्मेलन में यूक्रेन और जॉर्जिया को भविष्य में सदस्यता का वादा किया था, जिसे रूस ने अपनी सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखा। पुतिन ने बार-बार कहा कि यूक्रेन का नाटो में शामिल होना रूस के लिए अस्वीकार्य है, क्योंकि इससे नाटो की मिसाइलें और सैन्य ठिकाने रूस की सीमा के और करीब आ जाएंगे। 2021-22 में, रूस ने यूक्रेन पर हमले से पहले नाटो और अमेरिका से लिखित गारंटी मांगी थी कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाएगा, लेकिन यह मांग खारिज कर दी गई।
4. रूस-यूक्रेन युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

रूस और यूक्रेन (Russia-Ukraine) के बीच तनाव की जड़ें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भू-राजनीतिक हैं। दोनों देशों की साझा स्लाविक विरासत और रूसी साम्राज्य व सोवियत संघ का हिस्सा होने के कारण रूस यूक्रेन को अपने प्रभाव क्षेत्र में मानता है। 2014 में यूक्रेन में यूरोमैदान आंदोलन के बाद, रूस समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को सत्ता से हटा दिया गया और यूक्रेन ने यूरोपीय संघ के साथ करीबी संबंधों की ओर रुख किया। रूस ने इसे अपने हितों के खिलाफ माना और क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। साथ ही, डोनबास क्षेत्र (डोनेत्स्क और लुहान्स्क) में रूस समर्थित अलगाववादियों को समर्थन दिया।
2022 में रूस (Russia) ने पूर्ण पैमाने पर आक्रमण शुरू किया, जिसे उसने “विशेष सैन्य अभियान” कहा। रूस का दावा था कि वह यूक्रेन (Ukraine) में “नाज़ीकरण” को रोकना चाहता है और रूसी भाषी आबादी की रक्षा करना चाहता है। हालांकि, यूक्रेन और पश्चिमी देशों ने इसे रूस की साम्राज्यवादी नीति करार दिया।
5. रूस की शर्तें और यूक्रेन-अमेरिका की प्रतिक्रिया

रूस ने 2021 और 2022 में अपनी मांगें स्पष्ट की थीं:
क्षेत्रीय मान्यता: क्रीमिया, डोनेत्स्क, लुहान्स्क, ज़ापोरिज़िया और खेरसॉन को रूस का हिस्सा मानना।
नाटो सदस्यता: यूक्रेन का नाटो में शामिल न होना।

सैन्य सीमाएं: यूक्रेन की सेना का आकार कम करना और विदेशी सैन्य उपस्थिति खत्म करना।
चुनाव और शासन: यूक्रेन में रूस समर्थक शासन की स्थापना या नए सिरे से चुनाव।
यूक्रेन की प्रतिक्रिया: यूक्रेन (Ukraine) ने क्षेत्रीय रियायतों को पूरी तरह खारिज किया। ज़ेलेंस्की ने कहा कि रूस (Russia) को युद्ध शुरू करने की सजा भुगतनी होगी। यूक्रेन ने नाटो सदस्यता को अपनी संप्रभुता का हिस्सा बताया और सुरक्षा गारंटी की मांग की। हाल की मुलाकात में, यूक्रेन ने हवाई और समुद्री युद्धविराम का प्रस्ताव दिया, ताकि नागरिक ढांचे पर हमले रोके जाएं।
अमेरिका की प्रतिक्रिया: अमेरिका (USA) ने रूस (Russia) की क्षेत्रीय मांगों को अस्वीकार किया, लेकिन ट्रंप ने संकेत दिया कि क्रीमिया वापस लेना अव्यवहारिक है। नाटो (NATO) सदस्यता पर ट्रंप ने यूक्रेन (Ukraine) को इसे छोड़ने की सलाह दी है, जो यूरोपीय सहयोगियों के लिए चिंता का विषय है। अमेरिका ने युद्धविराम और 1200 किलोमीटर की फ्रंटलाइन की निगरानी का प्रस्ताव रखा है।

6. भारत की स्थिति
भारत ने युद्ध में तटस्थ रुख अपनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुतिन और ज़ेलेंस्की (Russia-Ukraine) से कई बार बात की और शांति के लिए कूटनीति पर जोर दिया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर मतदान से परहेज किया, जिससे उसकी निष्पक्षता बनी रही। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की हालिया मॉस्को यात्रा ने भारत की मध्यस्थता की संभावनाओं को बढ़ाया है। भारत का रूस के साथ रक्षा और ऊर्जा व्यापार का पुराना संबंध है, लेकिन वह यूक्रेन के साथ भी संबंध बनाए रखना चाहता है। ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने पर भारत पर 25% टैरिफ लगाया है, जिसके जवाब में भारत ने अस्थायी रूप से तेल खरीद रोकी है। यह भारत की रणनीतिक कूटनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) युद्ध का समाधान जटिल है, क्योंकि रूस का नाटो के प्रति अविश्वास और यूक्रेन की सुरक्षा मांगें आमने-सामने हैं। ट्रंप की मध्यस्थता और त्रिपक्षीय बैठक की योजना युद्ध को खत्म करने की दिशा में एक कदम हो सकती है, लेकिन क्षेत्रीय रियायतों और नाटो सदस्यता पर गहरे मतभेद बने हुए हैं। भारत की तटस्थता और मध्यस्थता की संभावनाएं उसे वैश्विक कूटनीति में महत्वपूर्ण बनाती हैं। रूस की पुरानी शर्तें और पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया इस युद्ध के भविष्य को तय करेंगी। क्या यह युद्ध शांति की ओर बढ़ेगा, यह आने वाले महीनों में स्पष्ट होगा।