Sawan 2025 : काशी को यूं ही भगवान शिव की नगरी नहीं कहा जाता। यहां हर गली, हर मोड़ और हर कण में शंकर विराजमान है। इस पवित्र नगरी में एक ऐसा भी शिव मंदिर है, जिसे महादेव का ससुराल कहा जाता है। यहां पूरे सावन महीने (Sawan 2025) अपने साले के साथ महादेव विराजमान रहते है। आइए जानते है कि वाराणसी में यह मंदिर कहां है।
Sawan 2025 : कहां है यह अद्भुत मंदिर?
वाराणसी के सारनाथ क्षेत्र में स्थित सारंगनाथ मंदिर (Sarang Nath Temple) पौराणिक रूप से भगवान शिव के साले सारंग ऋषि को समर्पित है। मान्यता है कि सावन महीने में खुद भगवान शिव यहां अपने साले सारंग ऋषि के साथ शिवलिंग रूप में विराजते हैं। मंदिर के पुजारी शिव शंकर सिंह रेड्डी के अनुसार, जो श्रद्धालु सावन में एक बार भी सारंगनाथ के दर्शन करता है, उसे श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने के समान पुण्य प्राप्त होता है।

पौराणिक कथा जो इस मंदिर को विशेष बनाती है
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती का विवाह शिवजी से किया, उस समय उनके भाई सारंग ऋषि तपस्या में लीन थे और विवाह में उपस्थित नहीं हो सके। बाद में जब उन्हें विवाह की जानकारी मिली तो वह चिंतित हो उठे कि उनकी बहन का विवाह एक औघड़, भस्मधारी योगी से हो गया है।
अपनी बहन से मिलने के लिए जब वह काशी पहुंचे तो रास्ते में थककर एक स्थान पर सो गए। स्वप्न में उन्हें काशी की दिव्यता का बोध हुआ और अपने विचारों पर पछतावा हुआ। उन्होंने वहीं पर तपस्या शुरू कर दी और शिव-पार्वती ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए।


गोंद चढ़ाने की परंपरा और चर्म रोग से मुक्ति
तप के दौरान सारंग ऋषि के शरीर से गोंद निकलने लगी। इसी स्थान पर उन्होंने बाबा विश्वनाथ की कठिन तपस्या की। मान्यता है कि भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि जो कोई चर्म रोगी सच्चे मन से तुम्हें गोंद चढ़ाएगा, वह ठीक हो जाएगा। आज भी यह परंपरा सारंगनाथ मंदिर में जीवंत है।
जीजा-साले की पूजा का अनोखा स्थल
भगवान शिव से आशीर्वाद मिलने के बाद सारंग ऋषि यहीं रहने लगे और तब से उनका नाम सारंगनाथ पड़ा। शिवजी भी उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर यहां सोमनाथ स्वरूप में विराजमान हो गए। इस मंदिर को इसलिए जीजा-साले के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
श्रद्धालुओं का मानना है कि सावन (Sawan 2025) में बाबा विश्वनाथ यहीं निवास करते हैं और जो भक्त श्री काशी विश्वनाथ मंदिर नहीं जा पाता, वह यदि यहां दर्शन कर ले तो उसे समान पुण्य मिलता है।
शंकराचार्य से जुड़ा ऐतिहासिक पहलू
जब बौद्ध धर्म अपने चरम पर था, तब आदि शंकराचार्य ने पूरे देश में भ्रमण कर शिवलिंगों की स्थापना की थी। यह मंदिर उन्हीं की स्थापना का हिस्सा माना जाता है, जो इसे ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से विशेष बनाता है।