पहलगाम आतंकी हमले के बाद (India vs Pakistan) भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की आपात बैठक बुलाई। इस बैठक में कई बड़े फैसले लिए गए, जिनमें 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करना भी शामिल था। इसके जवाब में पाकिस्तान ने अचानक भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करने की घोषणा कर दी, जिसमें ऐतिहासिक शिमला समझौता भी शामिल है।

पाकिस्तान का जोखिम भरा कदम
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि देश अब भारत के साथ सभी द्विपक्षीय संधियों को स्थगित करने के अधिकार का उपयोग करेगा। इस बयान में केवल अधिकार की बात नहीं की गई, बल्कि इसे लागू करने की मंशा भी स्पष्ट रूप से जताई गई है। इसका तात्पर्य है कि पाकिस्तान ने वास्तव में इन समझौतों को निलंबित करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।
शिमला समझौते का निलंबन – भारत को मिली खुली छूट
1972 में हुए शिमला समझौते की प्रमुख शर्त नियंत्रण रेखा (LoC) की मर्यादा बनाए रखना थी। लेकिन अब जब पाकिस्तान इस समझौते से पीछे हट गया है, तो भारत पर LoC की पाबंदी नहीं रह गई है। इसका मतलब है कि भारत LoC पार करके आतंक के ठिकानों पर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है। यह पाकिस्तान के लिए एक कूटनीतिक और सामरिक झटका साबित हो सकता है।

कश्मीर नीति पर भारत को मजबूत आधार
शिमला समझौता इस बात को सुनिश्चित करता था कि कश्मीर विवाद केवल आपसी बातचीत से हल होगा। लेकिन इसके स्थगन से भारत को यह दावा करने का मौका मिलेगा कि पाकिस्तान ने खुद इस प्रक्रिया को खारिज कर दिया है। इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने रुख को और मजबूत करने की वैधता मिल सकती है।
परमाणु और मिसाइल समझौतों पर मंडराता खतरा
भारत और पाकिस्तान के बीच अतीत में हुए परमाणु दुर्घटनाओं और मिसाइल परीक्षणों से जुड़े दो अहम समझौते अब खतरे में हैं। पाकिस्तान की घोषणा अगर वास्तव में सभी समझौतों को निलंबित करने की दिशा में है, तो यह परमाणु क्षेत्र में गंभीर गलतफहमियों को जन्म दे सकती है और क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ सकता है पाकिस्तान
इस तरह के निर्णय पाकिस्तान की वैश्विक छवि को और कमजोर कर सकते हैं। पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए अब अंतरराष्ट्रीय मदद हासिल करना और भी कठिन हो जाएगा। वैश्विक समुदाय इसे एक गैर-जिम्मेदाराना कदम के रूप में देख सकता है।

धार्मिक यात्राओं और उड़ान सेवाओं पर भी असर
1974 के तीर्थयात्रा समझौते और करतारपुर कॉरिडोर समझौते पर भी इस निलंबन का प्रभाव पड़ेगा। इससे सिख तीर्थयात्रियों को नुकसान होगा, जबकि पाकिस्तान इस मुद्दे का इस्तेमाल भारत में धार्मिक विभाजन पैदा करने के लिए कर सकता है। वहीं उड़ान अधिकारों के निलंबन से पाकिस्तान को वित्तीय घाटा होगा क्योंकि उसे भारतीय एयरलाइनों से होने वाली आय से हाथ धोना पड़ेगा।

पाकिस्तान की जल्दबाजी में उठाया गया यह कदम उसकी रणनीतिक चूक साबित हो सकता है। भारत को अब कूटनीतिक और सैन्य मोर्चे पर अधिक स्वतंत्रता मिल गई है। एलओसी पर पाकिस्तान की स्थिति कमजोर हो सकती है और वैश्विक मंच पर उसकी जवाबदेही और अधिक बढ़ जाएगी।