मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद: Allahabad High Court ने मस्जिद को ‘विवादित ढांचा’ घोषित करने की याचिका की खारिज

Lucknow : मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में Allahabad High Court ने एक अहम फैसला सुनाते हुए हिंदू पक्ष की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें मस्जिद को ‘विवादित ढांचा’ घोषित करने की मांग की गई थी। यह याचिका अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से सूट नंबर 13 में एप्लीकेशन A-44 के तहत दाखिल की गई थी, जिसमें आग्रह किया गया था कि सभी आगामी कानूनी कार्यवाहियों में शाही ईदगाह मस्जिद को ‘विवादित ढांचा’ कहा जाए।

High Court के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने यह याचिका नामंजूर कर दी। मुस्लिम पक्ष द्वारा इस प्रार्थना पत्र पर आपत्ति दर्ज की गई थी, जिसे High Court ने स्वीकार करते हुए हिंदू पक्ष की मांग खारिज कर दी। इस निर्णय को मुस्लिम पक्ष के लिए बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है।

Allahabad High Court
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क्या है मथुरा का विवाद?

यह मामला मथुरा के कटरा केशव देव क्षेत्र की 13.37 एकड़ जमीन से जुड़ा है, जिसमें 11 एकड़ क्षेत्र पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर है, जबकि 2.37 एकड़ पर शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह भूमि भगवान श्रीकृष्ण के गर्भगृह का हिस्सा है और मस्जिद का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब द्वारा 17वीं शताब्दी में मंदिर तोड़कर किया गया था।

1968 का समझौता विवाद की जड़

1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें भूमि का बंटवारा किया गया। अब हिंदू पक्ष इस समझौते को अवैध बताकर चुनौती दे रहा है, यह कहते हुए कि सेवा संघ को ऐसा समझौता करने का अधिकार नहीं था।

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पक्षों की प्रमुख दलीलें

हिंदू पक्ष:

  • मस्जिद मंदिर तोड़कर बनाई गई।
  • यह क्षेत्र भगवान कृष्ण के गर्भगृह का हिस्सा है।
  • 1991 का Places of Worship Act लागू नहीं होता।
  • वक्फ बोर्ड ने बिना अधिकार के जमीन पर दावा किया।

मुस्लिम पक्ष:

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  • 1968 का समझौता वैध।
  • 1991 का कानून कहता है कि धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 जैसी ही बनी रहनी चाहिए।
  • मामला सिविल कोर्ट का नहीं, वक्फ ट्रिब्यूनल का है।
  • लिमिटेशन एक्ट के तहत याचिका समयबद्ध नहीं है।
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आगे की दिशा

श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद से जुड़ी अभी तक कुल 18 याचिकाएं दायर हो चुकी हैं, जिनकी सुनवाई जारी है। High Court का यह ताजा फैसला संकेत देता है कि न्यायपालिका इस अत्यंत संवेदनशील मामले को कानूनी प्रावधानों और तथ्यों के आधार पर ही सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ रही है।

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